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दुनिया का पहला चेरी ब्लॉसम फेस्ट शिलांग में

केंद्र सरकार के सहयोग से मेघालय सरकार द्वारा 8 नवंबर को इस महोत्सव का आगाज होगा

Bhasha

चेरी ब्लॉसम का जिक्र आते ही जेहन में जापान और अमेरिका के वे ठंडे इलाके याद आते है जहां चेरी के फूलों से लदे बागान सर्द मौसम का स्वागत करने को बेताब दिखते है. लेकिन अब चेरी की रंगत का लुत्फ उठाने के लिए जापान या अमेरिका जाने की जरूरत नहीं होगी. सर्द मौसम की आमद पर भारत ने दुनिया भर के सैलानियों को चेरी ब्लॉसम की खुशनुमा रंगत से लुभाने की तैयारी कर ली है.

भारत में दुनिया का पहला अंतरराष्ट्रीय चेरी ब्लॉसम महोत्सव मेघालय की राजधानी शिलांग में आयोजित किया जा रहा है. अपने तरह के इस अनूठे आयोजन की विस्तृत रूपरेखा का खुलासा मेघालय के मुख्यमंत्री मुकुल एम संगमा करेंगे. केंद्र सरकार के सहयोग से मेघालय सरकार द्वारा 8 नवंबर को इस महोत्सव का आगाज होगा.


केंद्र सरकार के जैव प्रोद्यौगिकी विभाग द्वारा मणिपुर के इम्फाल में संचालित जैव संसाधन एवं सतत विकास संस्थान (आईबीएसडी ) और राज्य सरकार चार दिन तक चलने वाले इस महोत्सव का आयोजन कर रहे है.

चेरी की बहार हर साल नवंबर में पूरे उफान पर होती है

संस्थान के वैज्ञानिक सचिव अलबर्ट चिआंग ने बताया कि आसमान को अपनी ऊंचाई से नीचे होने का एहसास कराने वाली मेघालय की गगनचुंबी पहाड़ियों में चेरी की बहार हर साल नवंबर में पूरे उफान पर होती है. कुदरत के इस नायाब तोहफे से दुनिया को रू-ब-रू करने के लिए वैश्विक स्तर के आयोजन की रुपरेखा बनाई गई है.

जापान में 'सकुरा' कही जाने वाली गुलाबी रंग की जिस चेरी के पतझड़ को देखने के लिए सैलानी खिंचे चले जाते है, उस चेरी की दोहरी रंगत सैलानियों को शिलांग और यहां की विश्व प्रसिद्ध झील 'वार्ड लेक' का रुख करने को मजबूर कर देगी, जहां सड़क के दोनों ओर गुलाबी और सफेद चेरी से ढके पेड़ 'चेरी ब्लॉसम' का अनूठा अहसास कराएंगे.

चिआंग ने बताया कि जापान में पांचवी सदी में राजकीय तौर पर चेरी ब्लॉसम को पारंपरिक पर्व के रूप में मनाने की पहल दूसरे महायुद्ध के बाद विश्व शांति की पहल में तब्दील हो गई. तब जापान ने चेरी के हजारों पौधे मैत्री संदेश वाहक के रूप में अमेरिका को तोहफे में दिए जो अब वाशिंगटन में स्थानीय स्तर पर हर साल होने वाले चेरी ब्लॉसम महोत्सव में दुनिया भर के सैलानियों को लुभाते है.