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संडे हो या मंडे, मत खाइए अंडे...क्योंकि ये अंडा नहीं ज़हर है!

भारत में हम खाने वाली हर चीज में फिप्रोनिल का इस्तेमाल करते हैं. निरक्षर किसानों को पूरी आजादी से बेचे जा रहे हमारे कीटनाशकों में फिप्रोनिल होता है

Maneka Gandhi

समूचे यूरोप में अंडों में खतरनाक कीटनाशक फिप्रोनिल पाया गया है. सबसे पहले ये अंडे हॉलैंड के पॉल्ट्री फॉर्म से आए. जांच के दौरान फिप्रोनिल के अवैध इस्तेमाल का पता चलने पर 180 बड़े मुर्गी पालन केंद्रो को बंद कर दिया गया. लाखों अंडे और अंडे आधारित उत्पाद जैसे सलाद, सैंडविच और मियोनीज सुपरमार्केट के तहखानों से वापस मंगा लिए गए हैं.

अब तक बेल्जियम, हॉलेंड, जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन, ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया, आयरलैंड, इटली, लक्ज्मबर्ग, पोलैंड, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवानिया, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड और हॉन्गकांग ने अपने यहां अंडों में फिप्रोनिल पाया है. फिप्रोनिल ऐसा कीटनाशक है जिसे जानवरों के चारे या मानव खाद्य श्रृंखला के किसी उत्पाद में उपयोग नहीं किया जाता.


इसके खाने से क्या होता है असर? 

पसीना, मतली, उल्टी, सिरदर्द, पेट दर्द, चक्कर आना, कमजोरी और दौरे. अगर इसे इंसान खाए तो यह थायरॉयड, लीवर और किडनी को खराब कर सकता है. चूकि अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि नर और मादा दोनों चूहों को ऊंची खुराक देने पर उनमें थॉयरॉयड ट्यूमर पाया गया, इसे अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने ‘पॉसिबल ह्यूमन कॉर्सियोजेन’ के रूप में वर्गीकृत किया.

चूहों को फिप्रोनिल खिलाने वाले वैज्ञानिकों ने पाया कि उन्हें दौरे अधिक आने लगे हैं. एक अन्य अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि अधिक समय तक फिप्रोनिल की मौजूदगी से चूहों की प्रजनन क्षमता पर भी इसका असर पड़ा, उनमें संभोग घटा, गर्भधारण में कमी आई, उनका आकार छोटा होने लगा और गर्भ गिरने की घटनाएं बढ़ गई. वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि उनकी उम्र घट गई है और वंश विकास में देरी होने लगी.

आरम्भिक जांच में पता चला है कि बेल्जियम की पॉल्ट्री विजन नाम की कंपनी ने रोमानिया से फिप्रोनिल खरीदा, इसके साथ DEGA-16 को मिलाया, जो सफाई के काम आने वाला प्रमाणित उत्पाद है. कंपनी ने आगे उसे हॉलेन्ड में मुर्गीपालकों को बेच दिया, जिन्होंने उसे पॉल्ट्रीज में कीटनाशक नियंत्रण सेवा के तौर पर बेचा.

सबसे निराशाजनक ‘चिक फ्रैंड’ के मालिक मार्टिन वान डि ब्राक और माथीज्स ईज़रमैन से जुड़ी हैं, जिन्होंने मुर्गियों में जूं की पीड़ा का चमत्कारिक इलाज हासिल किया और एक समय मुर्गियों को संक्रमण से बचाने में सक्षम थे, मगर ऐसा नहीं हो सका.

यूरोपीय संघ अंडे में फिप्रोनिल की अधिकतम अवशेष सीमा (एमआरएल) 0,005 मिलीग्राम/किग्रा तय किया गया जैसा कि यूरोपीय संसद के विनियमन (ईसी) संख्या 396/2005 में उल्लेखित है.

द डच फूड एंड प्रॉडक्ट सेफ्टी बोर्ड (एनवीडब्ल्यूए) ने रिपोर्ट दी कि नीदरलैंड के एक पॉल्ट्री फॉर्म से आए अंडों के एक बैच में एमआरएल 0.72 मिलीग्राम/किग्रा से अधिक पाया गया. बहुत बुरे तरीके से चल रहा पॉल्ट्री घुन की चपेट में था जिसका कभी सक्षम स्वास्थ्य इन्स्पेक्टरों के द्वारा निरीक्षण नहीं किया जाता. बस रिश्वत के लिए ये निरीक्षक आया करते थे.

लाल घुन, जिसे मुर्गी घुन के रूप में भी जाना जाता है, ने मुर्गियों को अपनी चपेट में ले लिया. जबरदस्त संक्रमण ने मुर्गों की प्रजनन क्षमता को घटा दिया, मुर्गियों में अंडों का उत्पादन कम हो गया और छोटी मुर्गियों का वजन बढ़ना कम हो गया. वे एनीमिया और मौत की वजह भी बनने लगे. दूसरे घुन जैसे डिप्लमिंग घुन पंख के खानों में जगह बनाते हैं जिस वजह से जलन, पंख नोचना और त्वचा में घाव होते हैं.

अलग-अलग घुन मुर्गियों के अलग-अलग हिस्सों में हमला करते हैं 

पंख घुन, पैर के कीड़े, उष्णकटिबंधीय मुर्गी घुन, मांसपिस्सू, फसल के घुन, त्वचा की कोशिकाओं और लिम्फ में लाल कीड़े. अधिक कीटनाशक खाने वाली पक्षियां उड़ नहीं पातीं, खाने से मना कर दी हैं और भूख और थकान की वजह से उनकी मौत हो जाती है. छोटे-छोटे कीड़ों की संख्या न बढ़े, इसके लिए सफाई की अच्छी आदत होनी चाहिए. लेकिन, ज्यादातर पॉल्ट्री इसके बजाए असरदार रासायनिक का इस्तेमाल करते हैं.

अगर अंडों में फिप्रोनिल हैं, निश्चित रूप से मुर्गियों के मांस में भी यह होगा. अगर किसी फॉर्म में कीट मारने के लिए फिप्रोनिल का उपयोग होता है तो जानवरों की त्वचा इन कीटनाशकों को अवशोषित कर लेती हैं.

द डच फूड सेफ्टी एजेन्सी, एनवीडब्ल्यूए, के अधिकारी मांस के लिए पैदा हुई मुर्गियों की जांच कर रहे हैं. प्रतिबंध होने के बावजूद पॉल्ट्री में फिप्रोनिल के इस्तेमाल का उपयोग रह गया है या नहीं, इस बारे में ओ ग्रेग ने 11 मई 2012 में ब्लॉग लिखा था :

'मैं लॉस एंजेलिस एरिया में प्रोफेसर हूं और अंडों में फिप्रोनिल (फ्रन्टलाइन) पर अध्ययन करना चाहता हूं. कुत्ते-बिल्लियों में पिस्सुओं पर नियंत्रण के लिए फ्रंट लाइन सामान्य उपचार है. कई लोग अपनी मुर्गियों के लिए पिस्सुओं और घुनों पर नियंत्रण के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जो बात सामने आती है वो ये कि इस पर कोई आंकड़ा नहीं है कि उसके संघटक (फिप्रोनिल) वास्तव में इसे अंडों में बनाते हैं.

हालांकि फ्रन्टलाइन मुर्गियों में प्रभावशाली होता है, लेकिन कोई आंकड़ा नहीं है कि क्या यह खून में प्रवेश करता है और फिर अंडों में. मैं यह अध्ययन करना चाहता हूं कि क्या यह अंडों में प्रवेश करता है? इस साल फ्रन्टलाइन का इस्तेमाल कहीं करने की आप सोच रहे हैं? अगर हां, तो कृपया मुझसे bodhiroc@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते हैं.

फिप्रोनिल देने से पहले मैं आपकी मुर्गियों के कुछ अंडे पाना चाहूंगा और फिर कुछ हफ्तों के बाद (हर अंडे नहीं, बस हफ्ते में एक या ऐसा ही). मैं अपने अनुभवों के नतीजों को आपसे और पूरे LAUC समुदाय से साझा करने का वादा करता हूं.'

भारत में हो रहा धड़ल्ले से इस्तेमाल 

अंडों पर ही ऐसा प्रभाव क्यों है जबकि फिप्रोनिल भारत में हमारे सभी अनाज और सब्जियों पर इस्तेमाल किए जा रहे हैं. फिप्रोनिल को रॉन पॉलेन्क ने विकसित किया था और यूएस पेटेन्ट संख्या यूएस 5232940 बी2 के तहत इसे 1993 में वे बाजार लेकर आए थे. 2003 से BASF के पास फिप्रोनिल आधारित उत्पादों के पेटेंट अधिकार हैं.

यह फिनाइलपाइराजोल केमिकल परिवार से संबंधित है. यह सफेद पाउडर होता है जिसमें हल्की गंध होती है, जो कीटनाशक उत्पाद के अलग-अलग प्रकारों में इस्तेमाल होती हैं. जिसके जरिए चीटियों, बीटल्स, तिलचट्टा, फ्लीस, टिक्स, दीमक, तिल क्रिकेट, थ्रिप्स, रूटवॉर्म्स, वेइविल, स्टेम बोरर्स, प्लांट हॉपर, लीफ फोल्डर्स, पित्त मिडीज, व्होर्ल मैगॉट्स और पतिंगों को मारा जाता है.

भारत में हम खाने वाली हर चीज में फिप्रोनिल का इस्तेमाल करते हैं. निरक्षर किसानों को पूरी आजादी से बेचे जा रहे हमारे कीटनाशकों में फिप्रोनिल होता है जो धान के पौधों की जड़ों और चावल को ढंकने वाली पत्तियों पर लगे कीड़ों को मारता है.

इसके अलावा गन्ना और मक्का के पौधों की जड़ों और पत्तियों में शुरूआती दौर में लगने वाले कीटों को मारते हैं. हम दीमक पर नियंत्रण करने में इसका इस्तेमाल करते हैं. हम इसका इस्तेमाल गोल्फ कोर्स और व्यावसायिक पिच पर करते हैं. हम मिर्च, फल और गोभियों में भी इसे इस्तेमाल करते हैं.

घरों में आप कुत्तों और बिल्लियों पर छोटे कीड़ों को मारने में इसका इस्तेमाल करते हैं. उम्मीद की जाती है कि इस दौरान आप अपने मुंह और आंख ढंके रहते हैं, प्लास्टिक दस्ताने का इस्तेमाल करते हैं, कुत्ते के गले में एक बूंद डालते हैं या फिर उसके बालों के नीचे स्प्रे करते हैं. इसे रगड़ना नहीं होता है. यह बीमा या उम्रदराज जानवरों पर इस्तेमाल नहीं हो सकता. फेंकने से पहले इसे कागज की परतों पर बहुत सावधानी के साथ मोड़कर रखा जाता है ताकि दूसरों को इसके जहर से नुकसान ना हो.

इस्तेमाल से बीमार हो जाते हैं जानवर 

मेरा अस्पताल उन कुत्तों पर इसका उपयोग करता है जो लोग लेकर उनके पास आते हैं. यह हमारा आखिरी उपाय होता है क्योंकि इसके इस्तेमाल के बाद बहुत सारे जानवर बीमार हो गए. कई जानवरों के अंगों ने काम करना बंद कर दिया. केवल अंतिम उपाय के तौर पर ही मैं इसके इस्तेमाल की बात कहूंगा.

फ्रंटलाइन टॉप स्पॉट, फिप्रोग्राउन्ड, फ्लेवॉक्स और पेटआर्मल, श्वानफिप्रोप्लस, फिप्रोस्पर्ट, फ्लिप स्पेर, फिप्रोनिल, फिप्रोनिल एस-मेथोस्पेन स्पॉट ऑन, फिप्रोवेट स्पेर, प्रोटेक्टर स्प्रे के रूप में कुछ पालतू जानवरों के लिए उत्पाद हैं.

तिलचट्टों के लिए यह जेल (Gel) के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है जिसे केयर एंड गार्ड कॉकरोच किलर और रेंजर कहते हैं. कृत्रिम तौर पर रीजेंट के व्यापार नाम से इसका इस्तेमाल कीटों, तितलियों, टिड्डियों, बीटल्स और थ्रिप्स पर किए जाते हैं. गोलियाथ और नेक्सा नाम से यह तिलचट्टे और चींटियों पर नियंत्रण के लिए उपयोग होता है.

चिप्को चॉइस नाम से इसका इस्तेमाल व्यावसायिक लॉन केयर, गोल्फ कोर्स और कॉर्नफील्ड के लिए किया जाता है. एडोनिस नाम से इसका इस्तेमाल टिड्डी नियंत्रण के लिए किया जाता है. टर्माइडर, अल्ट्राथोर और टॉरस, कॉम्बैट एंट-रिड, रेडिएट का इस्तेमाल दीमक और चीटियों को नियंत्रित करने में होता है.

इनके भारतीय नाम हैं रेस, वीड कंट्रोल, फ़िपरोसिक, सीजेन्ट, रिजल्ट, प्रिंस, फिप्सकोर, ऑफिसर, एफिप्रो-सी 5, गेटर, रेप्लेक्स, प्रिऩॉल, एजेंट, वी गार्ड, हिमजेंट, शार्प, ग्लाइडर, रीसेन्ट, क्वेंचर, एजेंट- 5, मॉलगेंट, फरारी, एजेंडा, जूम, बलवीर, राइडर (जो खुद को जैविक और प्राकृतिक रूप में बढ़ावा देता है), एग्रिकन फाइटर, रिजेन्ट, रिवोल्ट, भीम, सुल्तान, रेलिंग्टन, वाइपर, फिप्रॉन, आशीर्वाद, फिप्रोफोर्ट, रेफरी, फिप्रोफिट.

पशु-डेयरी गायों पर फिप्रोनिल के इस्तेमाल की अनुमति नहीं 

लेकिन, भारत में कुछ फिप्रोनिल आधारित उत्पाद खुले तौर पर गायों के लिए लिए भी इसका विज्ञापन करते हैं. अध्ययन के मुताबिक दूध पिलाने वाले जीवों में छिपा फिप्रोनिल दूध के जरिए मानव शरीर में लगातार जहर पहुंचाता है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इससे लीवर, थॉयरॉयड और किडनी खराब हो सकते हैं अगर लम्बे समय तक अधिक मात्रा में यह शरीर तक पहुंचता है.

फिप्रोनिल मिट्टी में जाकर एक साल तक जीवित रह सकता है. यह मछली, क्रस्टेशियन्स और मीठे पानी में रहने वाले पक्षियों, मधु मक्खियों, खरगोशों और मुर्गियों के लिए अत्यधिक जहरीला है. अध्ययन बताता है कि वैसे इन्सेक्ट जो लक्ष्य नहीं किए जाते हैं उन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है.

मई 2003 में फ्रांस में कृषि मंत्रालय के डायरेक्ट्रेट जनरल ऑफ फूड ने तय किया कि दक्षिणी फ्रांस में देखा गया सामूहिक तौर पर मधुमक्खियों की मृत्यु दर का संबंध फिप्रोनिल के ज़हर से था और तभी फिप्रोनिल युक्त फसल संरक्षण उत्पाद की बिक्री फ्रांस में रोकने का फैसला लिया गया.

फिप्रोनिल उन रासायनों में है जिन्हें मधुमक्खियों के कम होने की वजह माना जाता है. 2013 में यूरोपियन फूड सेफ्टी अथॉरिटी ने फिप्रोनिल की पहचान मधुमक्खियों के लिए ‘अत्यन्त ज़ोखिम भरा’ के तौर पर की, जबकि इसका इस्तेमाल मक्का के बीज पर उपचार के तौर पर किया गया.

यूरोप में लग चुका है प्रतिबंध 

16 जुलाई 2013 में यूरोपियन यूनियन ने मक्का और सूरजमुखी पर इसके इस्तेमाल पर अपने यहां प्रतिबंध लगाने के पक्ष में मतदान किया. अगर यूरोप में फूड फैक्ट्रियों के निरीक्षण में दिक्कत है तो क्या आप सोच सकते हैं कि भारत में काया हो रहा है जहां FSSAI के पास इन्सपेक्टर नहीं हैं और कानून की निगरानी के लिए उपकरण तक नहीं हैं.

यूरोप किस तरह अपराधियों को पकड़ेगा? यूरोपीय यूनियन में हर अंडे पर एक नम्बर की मुहर लगी होती है. उपभोक्ता यह पता लगा सकते हैं कि किस देश का अंडा है और किस फार्म कैसे यह अंडा आया है. मीडिया ने वह सूची जारी कर दी है जिन अंडों में संक्रमण है. भारत में आपको पता नहीं होता कि अंडे, मांस या दूध कहां से आते हैं.