केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने एयर इंडिया के निजीकरण की वकालत की है. उन्होंने कहा कि एयरलाइंस का मार्केट शेयर केवल 14 फीसदी है, ऐसे में करदाताओं के 55 से 60 हजार करोड़ रुपए का इस्तेमाल कितना जायज है.
उन्होंने कहा कि सरकार को 15 साल पहले एयर इंडिया से बाहर हो जाना चाहिए था. वित्त मंत्री ने कहा कि वह नीति आयोग के कर्ज में डूबी एयरलाइंस के निजीकरण के विचार से सहमत हैं लेकिन इस मुद्दे पर सरकार ही निर्णय लेगी.
जेटली ने कहा कि एविएशन सेक्टर भारत में सफलता की एक नई कहानी बनता जा रहा है. जिसमें निजी क्षेत्र की कई कंपनियां काफी कुशलता से एयरलाइंस चला रही हैं.
उन्होंने कहा कि देश के हवाईअड्डे दुनिया में अधिकतर हवाईअड्डों से बेहतर हैं. देश में क्षेत्रीय संपर्क के लिए भी बहुत से हवाईअड्डे हैं.
जेटली ने सोमवार को सीएनबीसी टीवी 18 से कहा, ‘इसीलिए क्या यह सही है कि सरकार बाजार में मात्र 14 फीसदी हिस्सेदारी रखे. और इसके लिए करदाताओं का 50 से 60 हजार करोड़ रुपए डालना पड़े.’
एयर इंडिया पर 50 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज
एयर इंडिया के उपर 50 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है. इसका मुख्य कारण उच्च रखरखाव लागत और पट्टा किराया है. वित्त वर्ष 2015-16 को छोड़कर कंपनी को शायद ही कभी मुनाफा हुआ.
जेटली ले कहा, ‘मुझे लगता है कि जितनी जल्दी सरकार इससे बाहर होगी उतना बेहतर होगा. इसे डेढ़ दशक पहले ही इससे बाहर हो जाना चाहिए था लेकिन तब ऐसा नहीं हुआ.’
कुछ दिन पहले नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने भी कहा था कि 52 हजार करोड़ रुपए के कर्ज के बोझ के तले दबे एयर इंडिया को बेचना ‘बहुत मुश्किल’ है. उन्होंने कहा था कि सरकार को इस बारे में फैसला करना होगा कि एयरलाइन के कर्ज को आंशिक रूप से या हमेशा के लिए बट्टे खाते में डाला जाए.