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प्रदूषण के खिलाफ दिल्ली-NCR में सरकार की फिर बनाई आपात योजना कितनी होगी सफल?

पराली जलाने से किसान खुद धुएं से होने वाली सांस संबंधी परेशानियों से जूझ रहे हैं, लेकिन विकल्प की कमी होने की वजह से उन्होंने पराली जलाना बंद नहीं किया है

Ravishankar Singh

दिल्ली-एनसीआर में हवा के गिरते स्तर को देखते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने सोमवार से इमरजेंसी एक्शन प्लान लागू कर दिया है. इस एक्शन प्लान के लागू हो जाने के बाद भी अगर हवा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं होता है तो फिर कई और जरूरी कदम उठाए जा सकते हैं. सीपीसीबी आपात योजना के तहत ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (जीआरएपी) के तहत दिल्ली में कई सख्त कदम उठाने जा रही है.

CPCB यह फैसला तभी करेगी जब वायु की गुणवत्ता खतरनाक स्तर पर पहुंच जाएगी


राजधानी में डीजल गाड़ियों की आवाजाही पर रोक से लेकर पार्किंग फीस में भी कई गुना बढ़ोतरी की जा सकती है. दिल्ली में कचरा फेंकने वाले स्थानों पर कचरा जलाने से रोका जा सकता है. ईंट, भट्ठे और औद्योगिक कल-कारखानों को भी कुछ दिनों के लिए बंद किया जा सकता है. दिल्ली में भारी ट्रकों की आवाजाही पर भी रोक लगाई जा सकती है. लेकिन, सीपीसीबी यह फैसला तभी करेगी जब यहां वायु की गुणवत्ता खतरनाक स्तर पर पहुंच जाएगी.

पिछले कई साल से सर्दियों के मौसम शुरु होते ही दिल्ली-एनसीआर में हवा की गुणवत्ता काफी खराब हो जाती है. इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने इस साल विंड ऑग्मेंटेशन प्यूरिफाइंग यूनिट नाम की एक मशीन दिल्ली के कुछ इलाकों में लगानी शुरू की है. कुछ महीने पहले इस योजना का उद्धघाटन केंद्रीय पर्यावरण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने किया था.

केंद्रीय मंत्री ने उस समय कहा था कि 15 अक्टूबर से पहले दिल्ली के 54 सबसे व्यस्त स्थानों पर इन मशीनों को लगाए जाएंगे. यह मशीन सीएसआईआर (काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च) और एनईईआरआई (नेशनल इंनवायरनमेंटल रिसर्ट इंस्टीट्यूट) द्वारा बनाई गई है. इस परियोजना का खर्च विज्ञान और तकनीक विभाग उठा रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि विंड ऑग्मेंटेशन प्यूरिफाइंग यूनिट लगने के बाद यह मशीन 500 वर्गमीटर तक के वातावरण को प्रदूषण मुक्त कर सकता है.

पिछले वर्ष दिल्ली में वायु प्रदूषण घटाने के लिए खास मशीनों का उपयोग किया गया था

बता दें कि पिछले 2 साल सर्दियों के दौरान राजधानी दिल्ली धुंध में डूबी रही. लगातार तीसरे साल भी ऐसे ही हालात पैदा होने लगे हैं. ऐसे में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अभी से हाथ-पांव फूलने लगे हैं. बीते कई दिनों से केंद्रीय पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) की 41 टीमें धुंध से लड़ने का प्लान बनाने में जुटी हुई थी. सीपीसीबी ने 15 अक्टूबर से प्रदूषण और धुंध को लेकर अपनी योजना का कार्यान्वयन शुरू कर दिया है.

प्रदूषण कम करने के लिए EPCA, DPCC कुछ प्रयोग करने वाले हैं

इस योजना में सीपीसीबी के साथ कई संस्थाएं शामिल हैं. पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण एवं संरक्षण प्राधिकरण (ईपीसीए) और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) भी कुछ प्रयोग करने वाले हैं.

इस बार बहुविभागीय जिम्मेदारी बांटी गई है. दरअसल पिछले साल सीपीसीबी, ईपीसीए, डीपीसीसी और एनजीटी की तरफ से अलग-अलग आदेश दिए गए थे, जिसकी वजह से निचले स्तर पर काफी उलझनें पैदा हो गई थीं और आदेश प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पाए थे, लेकिन इस बार ऐसी स्थितियों से बचने के प्रयास हैं. इसलिए काम एक महीने पहले ही शुरू कर लिया गया है. इसकी एक और वजह यह भी है कि बीते कुछ दिनों से एयर इंडेक्स में लगातार गिरावट हो रही है. अब बारिश होने के भी ज्यादा आसार नहीं हैं, जिससे तापमान कम होगा और हवा का स्तर भी कम होगा.

बीते कुछ महीने से मॉनसून की अच्छी बारिश के बाद खुली और साफ हवा में सांस ले रहे दिल्लीवालों का अब एक बार फिर से दम घुटने लगा है. बीते दो साल की तरह इस साल भी अक्टूबर महीने में राजधानी में रहने वाले लोगों को प्रदूषण से निजात मिलता नहीं दिख रहा है. पंजाब-हरियाणा में किसानों के पराली जलाने के कारण दिल्ली की हवा की गुणवत्ता में एक बार फिर से गिरावट आने लगी है.

राजधानी में बीते शनिवार से हवा का स्तर बेहद खराब हो गया है. मौसम विभाग के अनुसार अगले कुछ दिन तक हवा की गुणवत्ता में लगातार गिरावट दर्ज होती रहेगी. अक्टूबर और नवंबर की शुरुआत में ही पंजाब-हरियाणा के किसान पराली जलाना शुरू करते हैं. दिल्ली-एनसीआर में इस दौरान प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण यही होता है.

हर साल इस मौसम में पंजाब और हरियाणा के किसान अपने खेतों में पराली जलाते हैं जो वायु प्रदूषण की मुख्य वजह है (फोटो: पीटीआई)

केंद्र संचालित सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च (साफार) के अनुसार, बीते शनिवार को राजधानी की वायु गुणवत्ता सूचकांक 300 पहुंच गई थी. 300 का यह आंकड़ा वायु गुणवत्ता के इंडेक्स में खराब बताया जाता है. सोमवार को तो वायु की गुणवत्ता इंडेक्स 300 को भी पार कर गई, जो बेहद ही खराब मानी जाती है.

हवा की गुणवत्ता इंडेक्स 0-50 के बीच में रहती है तो इसे अच्छा माना जाता है, 51-100 के बीच संतोषजनक, 101-200 के बीच मध्यम, 201-300 के बीच खराब, 301-400 के बीच बेहद खराब और 401-500 गंभीर.

आने वाले दो दिनों में वायु की गुणवत्ता और भी खराब हो सकती है

केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक सोमवार को स्कूल, कॉलेज सब खुले होते हैं, ट्रैफिक ज्यादा होती है इसलिए इस दिन प्रदूषण का स्तर बढ़ा है. वहीं वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान और अनुसंधान केंद्र ने कहा है कि आने वाले दो दिनों में वायु की गुणवत्ता और भी खराब हो सकती है.

बता दें कि पूरा उत्तर भारत पूरी तरह से स्मॉग समस्या से ग्रस्त होता जा रहा है. किसान कहते हैं कि फसल कटाई के मौसम के अंत में उनके पास खेतों को खाली करने के लिए पराली को जलाने के सिवा कोई विकल्प नहीं है. इन किसानों में ज्यादातर कर्ज में डूबे हुए हैं.

वहीं पंजाब और हरियाणा की सरकारें पराली जलाने से रोकने के लिए किसानों पर जुर्माना लगाने, पराली की सफाई के लिए मशीनरी पर सब्सिडी और उपग्रह इमेजरी के माध्यम से पराली-जलाने की निगरानी जैसे तरीके अपना रही हैं.

पर्यारवरण विशेषज्ञों का मानना है कि ‘अधिकांश किसानों की माली हालत इतनी खराब है कि वो पराली को नष्ट करने के लिए न तो मानवीय श्रम और ना ही यांत्रिक श्रम का सहारा ले सकते हैं. सरकार को यह समझना होगा कि धान ऐसी फसल नहीं है जो पंजाब की थी. इसे हरित क्रांति के दौरान राज्य में लाया गया था और, इसे न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ, राज्य के फसल चक्र में दाखिला दिलाया गया.'

ऐसे में सरकार द्वारा इन किसानों पर एफआईआर दर्ज करने और जुर्माना लगाने जैसी धमकियों से भी कोई मदद नहीं मिल रही है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पहले ही फसल के अवशेष जलाने वाले किसानों पर 2,500 से लेकर 15 हजार रुपए तक के जुर्माने का आदेश दे रखा है.

दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण बढ़ने पर अस्थमा और सांस संबंधित बीमारियों में इजाफा हो जाता है

हालांकि, केंद्र सरकार पराली जलाने पर रोक लगाने और इसके लिए बेहतर मशीनों को किसानों के बीच पहुंचाने के लिए लगभग 1 हजार करोड़ की रकम खर्च कर रही है. पंजाब सरकार ने भी पराली के प्रबंधन के लिए मशीनरी पर 50 प्रतिशत की सब्सिडी दे रखी है. लेकिन, इस प्रक्रिया में इतनी औपचारिकताएं हैं कि किसान उन्हें पूरा करने के बजाय पराली जलाने को ज्यादा आसान समझते हैं.

पराली जलाने से जहरीली गैसें निकलती हैं, जो दमा, अस्थमा जैसी बीमारियां पैदा करती हैं

पराली जलाने से किसान खुद धुएं से होने वाली सांस संबंधी परेशानियों से जूझ रहे हैं, लेकिन उन्होंने पराली जलाना बंद नहीं किया है. डॉक्टरों का मानना है कि एक टन पराली जलाने से इतनी जहरीली गैसें निकलती हैं, जो दमा, अस्थमा जैसी बीमारियां पैदा करने के लिए काफी हैं. अगर एक टन पराली जलाई जाए तो उससे 1700 किलोग्राम के आसपास पार्टिकुलेट मैटर CO, CO2, SO2 और राख निकलती हैं. इससे मिट्टी अपनी उपजाऊ क्षमता भी खोती है.

दिल्ली सरकार ने भी पिछले दिनों अपने स्तर पर कई कदम उठाए थे. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में पूरे दिल्ली में सबसे बड़े पौधारोपण अभियान को लॉन्च किया था. इस अभियान में हजारों लोगों ने उनका साथ दिया था. अभियान के तहत दिल्ली सरकार ने पूरे शहर में एक दिन में 5 लाख से ज्यादा पेड़ लगाने का काम किया था. इस कैंपेन में तकरीबन 1 लाख छात्रों और दिल्ली के निवासियों ने हिस्सा लिया था.