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नारीवाद सभी पितृसत्तात्मक मानसिकता वाले लोगों की स्वीकृति चाहता है:सना मुनीर

पाकिस्तानी लेखिका सना मुनीर का कहना है कि नारीवाद एक पंथ नहीं है जो सर्वोच्चता या विशेषाधिकार चाहता है बल्कि इसके बजाए वह पितृसत्तात्मक मानसिकता वाले लोगों की स्वीकृति मांगता है

FP Staff

पाकिस्तानी लेखिका सना मुनीर का कहना है कि नारीवाद एक पंथ नहीं है जो सर्वोच्चता या विशेषाधिकार चाहता है बल्कि इसके बजाए वह पितृसत्तात्मक मानसिकता वाले लोगों की स्वीकृति मांगता है चाहे वह पुरुष हो या महिला हो.

लाहौर की लेखिका की नई किताब 'अनफेटेड विंग्स:एक्स्ट्राऑर्डनेरी स्टोरिज ऑफ ऑर्डनेरी वूमैन' आई है. लेखिका का मानना है कि बात करने के लिए किसी को नारीवादी होने की जरूरत नहीं है.


उन्होंने ‘पीटीआई’ से एक साक्षात्कार में कहा,'उत्पीड़न के खिलाफ बोलने के लिए समाज से समर्थन की कमी के कारण प्राय: साहस कमजोर हो जाता है. पाकिस्तान में नारीवाद के पुनर्जन्म में कुछ दशक लग गए हैं.1940 के दशक के अंत से 1970 तक राजनीतिक गलियारों, साहित्यिक, नागरिक समाज और शिक्षा क्षेत्र में महिलाओं का वर्चस्व था.

पाकिस्तान और भारत में कई महिलाएं हैं, जिनके पास बेहतर बौद्धिक क्षमता है और उन्होंने अपनी बुद्धि से ही सम्मान अर्जित किया है. मेरी कहानियों के माध्यम से, मैंने इस तथ्य को व्यक्त किया है कि महिलाएं अपने विशेष समाजशास्त्रीय रूप में मजबूत व्यक्ति हैं जो अपनी परिस्थितियों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकती हैं.'

मुनीर ने कहा कि ऐसी पाकिस्तानी महिलाएं भी हैं जो अपने पूरे जीवन पर्दे में रहती है, तो ऐसी भी महिलाएं हैं जो स्वतंत्र जीवन को चुनती हैं. दोनों ही समाज में योगदान करती है. दोनों स्वीकृति, सम्मान और न्याय की हकदार है.

किताब में मौजूद 10 कहानियों को लिखने में मुनीर को छह महीने का समय लगा है.