view all

किसानों की आत्महत्या का मसला रातोंरात नहीं सुलझ सकता: सुप्रीम कोर्ट

किसान समर्थक योजनाओं के प्रभावी नतीजे आने के लिए कम से कम एक साल के समय की आवश्यकता है

Bhasha

सुप्रीम कोर्ट ने फसल बीमा योजना पर केंद्र की दलील से सहमति व्यक्त की है. केंद्र ने कहा था कि किसान समर्थक योजनाओं के प्रभावी नतीजे आने के लिए कम से कम एक साल के समय की आवश्यकता है. इस पर कोर्ट ने कहा कि किसानों के आत्महत्या के मामले को रातोंरात नहीं सुलझाया जा सकता है.

चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा, ‘हमारा मानना है कि किसानों के आत्महत्या के मसले से रातोंरात नहीं निपटा जा सकता है. अटॉर्नी जनरल की ओर से प्रभावी नतीजों के लिए समय की आवश्यकता की दलील न्यायोचित है.’ पीठ ने केंद्र को समय देते हुए गैर सरकारी संगठन सिटीजन्स रिसोर्स एंड एक्शन इनीशिएटिव की जनहित याचिका पर सुनवाई छह महीने के लिए स्थगित कर दी.


केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने राजग सरकार द्वारा उठाये गए ‘किसान समर्थक’ तमाम उपायों का हवाला दिया और कहा कि इनके नतीजे सामने आने के लिए सरकार को पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि 12 करोड़ किसानों में से 5.34 करोड़ किसान फसल बीमा सहित अनेक कल्याणकारी योजनाओं के दायरे में शामिल हैं. उन्होने कहा कि फसल बीमा योजना के अंतर्गत करीब 30 फीसदी भूमि है और 2018 के अंत तक इस आंकड़े में अच्छी खासी वृद्धि हो जाएगी.

किसानों की आत्महत्या में वृद्धि हुई है

कोर्ट ने शुरू में कहा कि किसानों की आत्महत्या के मामलों में वृद्धि हो रही है परंतु बाद में वह सरकार की दलील से सहमति हो गया और उसे समय प्रदान कर दिया.

इस बीच, पीठ ने केंद्र से कहा कि वह किसानों के आत्महत्या के मामले से निबटने के उपाय करने के बारे में गैर सरकारी संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोन्सालिवज के सुझावों पर विचार करे.

कोर्ट गुजरात में किसानों के आत्महत्या के मामले बढ़ने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था. बाद में कोर्ट ने इसका दायरा बढ़ाकर अखिल भारतीय कर दिया था.