किसान आंदोलन के बाद सरकार की कोशिश है कि हर तरह से किसानों की नाराजगी को दूर किया जाए. मध्यप्रदेश से निकली आंदोलन की आग ने धीरे-धीरे देश भर में किसान संगठनों और किसानों को एक प्लेटफॉर्म थमा दिया है.
इससे सरकार को डर सता रहा है कि कहीं मध्यप्रदेश की तरह ही हालात बाकी जगहों पर भी बिगड़ न जाए. पहले से ही ऐतिहातन तैयारी हो रही है और नाराजगी को दूर करने के लिए केंद्र की तरफ से नए-नए वादे और फैसले किए जा रहे हैं.
दो दिन पहले ही कैबिनेट की बैठक में सरकार ने फैसला किया कि किसानों को मिलने वाले कर्ज पर 5 फीसदी की माफी दी जाएगी. यानी 9 फीसदी ब्याज दर पर फसली ऋण लेने वाले किसानों को महज 4 फीसदी ही ब्याज देना होगा.
कैबिनेट के फैसले के मुताबिक, 9 फीसदी के दर से ब्याज में 2 फीसदी सब्सिडी दी जाएगी जबकि सही वक्त पर ब्याज चुकाए जाने पर 3 फीसदी की और छूट मिलेगी. जिससे ब्याज की राशि 5 फीसदी कम होकर महज 4 फीसदी ही रह पाएगी.
सरकार ने फसली ऋण के सभी एकाउंट को इस साल आधार से लिंक करने का फैसला किया है. केंद्र सरकार के इस फैसले का फायदा एक साल तक के लिए तीन लाख रुपए तक का फसली ऋण लेने वाले किसान ही उठा पाएंगे. इस साल केंद्र ने इस योजना के लिए 20,339 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं.
हालांकि ये योजना पिछले दस साल से चली आ रही थी लेकिन, मौजूदा वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए भी इस योजना को लागू कर दिया गया है. ऐसा देश भर में किसान आंदोलन के बाद बने हालात को देखकर किया गया है.
उधर, सरकार की तरफ से किसानों को दी जाने वाली बीज और कीटनाशक के दामों में भी कमी करने की तैयारी हो रही है. कृषि लागत में बढ़ोत्तरी और उसके अनुपात में किसानों को फसल का मूल्य नहीं मिलने की शिकायत पहले से ही रही है. किसानों के आंदोलन के दौरान भी सरकार से उस वादे की याद दिलाई जा रही है जिसमें बीजेपी ने किसानों को कृषि लागत का 50 फीसदी तक लाभकारी मूल्य देने की बात कही गई थी.
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सरकार का डर है आंदोलन की आग दूसरे राज्यों तक न पहुंचे
सरकार को लगता है कि लागत को कम किया जाए लिहाजा कीटनाशक और बीज दोनों के दामों को कम किया जा रहा है.
जबकि समर्थन मूल्य में भी भारी बढ़ोत्तरी की तैयारी की जा रही है. खास तौर से दाल की पैदावार बढ़ने के बाद इस साल किसान परेशान हैं. लिहाजा दाल के समर्थन मूल्य में एकमुश्त ज्यादा वृद्धि कर सरकार इस मसले पर भी किसानों की नाराजगी दूर करना चाहती है.
हालांकि केंद्र सरकार की तरफ से वित्त मंत्री अरूण जेटली ने पहले ही साफ कर दिया है कि किसानों की कर्जमाफी का फैसला राज्यों का विषय होगा और इसका फैसला संबंधित राज्य सरकारों को ही करना होगा. इसके बाद महाराष्ट्र की सरकार ने भी कर्ज माफी का फैसला किया है.
सरकार की पूरी कवायद के पीछे उसका डर सता रहा है कहीं आंदोलन की आग दूसरे राज्यों में भी जोर न पकड़ ले. लेकिन, किसान संगठन अभी भी दबाव बनाए हुए है. 16 जून को 62 किसान संगठनों की तरफ से देश भर में नेशनल हाइवे पर चक्का जाम करना इस बात का गवाह भी है. किसान संगठनों ने पूरे देश में आंदोलन को और तेज करने की धमकी भी दी है.
विपक्ष सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रही
विपक्ष की तरफ से भी सरकार को घेरने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा जा रहा है. विपक्ष ने किसानों की लड़ाई को संसद से सड़क तक ले जाने की तैयारी कर ली है. विपक्ष इस बात की कोशिश में है कि किसानों के मुद्दे को लेकर संयुक्त रूप से भारत बंद कर सरकार को घेरा जाए.
इसके बाद जुलाई के मध्य में शुरू होने वाले मानसून सत्र में पूरा विपक्ष एक साथ सरकार पर हमलावर होने की तैयारी में है.
सरकार किसान संगठनों की रणनीति और विपक्ष के हमले की धार को कुंद करने के लिए ही किसान हितैषी कदम उठा रही है.
वरना किसानों की आमदनी दोगुना करने के सपने से पहले ही किसनों की नाराजगी सरकार के अभियान में पलीता लगा देगी.