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सिर्फ कर्जमाफी से नहीं होगा कृषि संकट का हल: पी. साईनाथ

देश में किसानों की हालत और कृषि संकट के बारे में उन्होंने कहा कि इस मसले को कर्ज और कर्जमाफी तक सीमित करके नहीं देखा जाना चाहिए

FP Staff

वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ ने रविवार को यूट्यूब के माध्यम से मंदसौर और देशभर चल रहे किसान-आंदोलन पर अपनी राय रखी. देश में किसानों की हालत और कृषि संकट के बारे में उन्होंने कहा कि इस मसले को कर्ज और कर्जमाफी तक सीमित करके नहीं देखा जाना चाहिए. यह समस्या इससे कहीं अधिक गंभीर है.

उन्होंने कहा कि बीजेपी ने वादा किया था कि वो सत्ता में आते ही स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट को लागू करेगी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि उपज की कीमतों को तय करते वक्त यह ध्यान रखना चाहिए कि किसानों को फसल की लागत पर 50 फीसदी का मुनाफा मिले. 2014 के चुनावी घोषणा पत्र में बीजेपी ने इसे लागू करने का वादा भी किया था.


खेती की लागत लगे लगाम 

कृषि उपज में बढ़ती लागत के बारे में साईनाथ ने कहा कि सिर्फ मोदी सरकार ने ही नहीं बल्कि इससे पहले की सभी सरकारों ने कंपनियों को उर्वरकों, कीटनाशकों और बीजों के दाम बढ़ाने की खुली छूट दे रखी है.

इस वजह से पिछले 25 वर्षों में खेती की लागत में दो गुनी से चार गुनी तक बढ़ोतरी हो चुकी है. जबकि इस दौरान किसानों को मिलने वाली उपज की कीमतों में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है.

उन्होंने कहा कि कृषि संकट किसानों की समस्या से कहीं अधिक गहरी है. उन्होंने कहा कि सिर्फ मोदी सरकार के समय में ही नहीं बल्कि कांग्रेस सरकार के समय में भी कृषि संकट पर करीब 250 लेख लिखे हैं. साईनाथ ने कहा कि शरद पवार के कृषि मंत्री रहते सबसे अधिक किसानों ने आत्महत्या की है.

साईनाथ ने एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि खेती की लागत की परिभाषा को फिर से गढ़ने की जरूरत है. इसमें किसानों के शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी जरूरी सेवाओं पर किए जाने वाले खर्चों को भी शामिल करने की जरूरत है.

कृषि संकट पर हो संसद का विशेष सत्र 

साईनाथ ने कहा कि कृषि संकट पर गंभीर चर्चा के लिए 10 दिनों का संसद का विशेष सत्र बुलाना चाहिए. जिसमें एक दिन स्वामीनाथन रिपोर्ट पर ठीक से चर्चा हो. किसानों की आत्महत्या और फसलों की एमएसपी कीमतों के निर्धारण पर भी गंभीर चर्चा हो.

किसानों को दी जाने वाली कर्जमाफी से जुड़े एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अधिकतर जरूरतमंद किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है. यूपीए के समय दिए गए कर्जमाफी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कई किसानों के पास बैंक खाते भी नहीं होते हैं. ऐसे किसानों को कर्जमाफी का लाभ नहीं मिल पाया.

उन्होंने महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए बताया कि कर्जमाफी के लिए कृषि जोत की सीमा निर्धारित कर देने से भी कई किसानों को कर्जमाफी नहीं मिली. उन्होंने कहा कि पश्चिम महाराष्ट्र में 2 एकड़ रखने वाला किसान विदर्भ में 5 एकड़ रखने वाले किसान से अधिक बेहतर हालात में है लेकिन कर्जमाफी के लिए जोत की सीमा तय कर देने से विदर्भ के ऐसे किसानों को कर्जमाफी नहीं मिली.

हालांकि उन्होंने किसानों की कर्जमाफी का समर्थन करते हुए कहा कि विजय माल्या को 9000 करोड़ रुपए का कर्ज दिया गया जिसे उन्होंने नहीं चुकाया. इसके मुकाबले किसानों को दी जाने वाली कर्जमाफी कुछ भी नहीं है.

जीएम फसलों से नहीं निकलेगा कृषि संकट का हल 

हालांकि पी. साईनाथ ने यह भी कहा कि किसानों के लिए अभी तक जितनी भी कर्जमाफी की घोषणा की गई है उसका लाभ छोटे कर्जदार किसानों को नहीं मिला है और न मिलने की संभावना है.

साईनाथ ने जीएम फसलों से कृषि समस्या के समाधान के रास्ते का भी विरोध किया. साईनाथ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जीएम फसलों पर वैज्ञानिकों की जो टीम गठित की है उसने भी जीएम फसलों को दिए रहे बढ़ावे को खतरनाक बताया है. साईनाथ ने बताया कि उन्होंने अपने लेख में बीटी कॉटन की सफलता झूठे दावों का खुलासा भी किया है.

साईनाथ ने दिन-ब-दिन खेती करने वाले किसानों की जनसंख्या में हो रही कमी को चिंताजनक बताया. उन्होंने कहा कि पिछले साल खेती करने वालों की संख्या में 50 लाख की कमी आई है यानी हर दिन खेती करने वाले लोगों की संख्या में 2000 की कमी आ रही है. साईनाथ ने कहा कि इस बात पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि इन किसानों की जमीन कहां जा रही है और ये किसान कहां जा रहे हैं.