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EXCLUSIVE: सीवीसी के निशाने पर पीएनबी का शीर्ष नेतृत्व

सीवीसी ने दस से ज्यादा उन वैधानिक ऑडिटरों से पूछताछ की जिन्होंने ब्रैडी हाउस ब्रांच के खातों की ऑडिटिंग की थी

Yatish Yadav

लगभग 14 हजार करोड़ रुपए के पीएनबी घोटाले की तह में पहुंचने की कोशिश में देश की जांच एजेंसियां लगी हुई हैं. देश की अग्रणी भ्रष्टाचार निरोधक संस्था केंद्रीय सतर्कता आयोग को भी इस घोटाले के जांच में नई-नई जानकारी मिल रही है.

सीवीसी पंजाब नेशनल बैंक के ऑडिटरों के लापरवाही भरे रवैये से खासी नाराज है. उसे ये समझ में नहीं आ रहा है कि ठीक ऑडिटरों की नाक के नीचे से इतना बड़ा बैंकिंग घोटाला सालों से कैसे चलता रहा.


सीवीसी ने कहा कि ऑडिटरों को मालूम था कि गड़बड़ी हो रही है

फ़र्स्टपोस्ट के हाथ सीवीसी का एक नोट लगा है जिसमें ये खुलासा किया गया है कि बैंक के वैधानिक ऑडिटरों जिन्होंने पीएनबी के ब्रैडी हाउस ब्रांच की ऑडिटिंग की थी, उनसे जब सीवीसी ने 14 हजार करोड़ रुपए के घोटाले के बारे में पूछा तो उन्होंने उसका जवाब अनमने तरीके से देते हुए घोटाले का उद्भेदन न करने के लिए पूरा का पूरा दोष दूसरे बैंक अधिकारियों के मत्थे मढ़ दिया.

सीवीसी के मुताबिक उन्होंने जितने ऑडिटरों से इस संबंध में बात की उनमें से अधिकतर ने ये दलील दी कि उन्हें व्यक्तिगत इंट्रीज की जांच का अधिकार नहीं है ऐसे में इसकी जांच या तो रेवन्यू ऑडिटर कर सकते हैं या फिर समवर्ती ऑडिटर कर सकते हैं. सीवीसी ने संकेत दिए हैं कि बैंक के वैधानिक ऑडिटर मामले को गोपनीय बनाए रखने के लिए भ्रामक बयान दे रहे हैं.

सीवीसी ने ऑडिटरों को जिम्मेदार बताते हुए अपने सख्त टिप्पणी में कहा है कि ‘वैधानिक ऑडिटरों ने खातों में गड़बड़ियों को बारे में जिक्र किया है लेकिन उसे महज छोटी से टिप्पणियों में, बिना गड़बड़ी के बारे में स्पष्ट जानकारी देते हुए, समेट दिया है. इसका मतलब ये है कि उन्हें मालूम था कि कुछ गड़बड़ी हो रही थी लेकिन उन्होंने उसकी तह में जाने का फैसला नहीं किया,चाहे इसकी वजह कोई भी रही हो.’

यहां ये बताना जरूरी है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी पीएनबी घोटाले में ऑडिटरों की भूमिका पर सवाल उठाए हैं. जेटली ने कहा कि कई स्तरों पर ऑडिटिंग होने के बाद भी ऑडिटरों का इतना बड़े फ्रॉड को पकड़ पाने में नाकाम रहना समझ से परे है. सीवीसी के द्वारा कमियों के उजागर करने के बाद जांच ऐजेंसियां अब बैंक के शीर्ष प्रबंधन द्वारा ऑडिटरों की नियुक्तियों की भी जांच कर सकती है.

सीवीसी ने दस से ज्यादा उन वैधानिक ऑडिटरों से पूछताछ की जिन्होंने ब्रैडी हाउस ब्रांच के खातों की ऑडिटिंग की थी. सीवीसी ये जानकर हैरान रह गयी कि कुछ ऑडिटर तो कमीशन के सामने बिना किसी तैयारी और बैक अप रिपोर्ट्स के बिना पहुंच गए थे. इन ऑडिटरों से जब नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के जलासाजी के बारे में पूछा गया तो वो अस्पष्ट और संदिग्ध जवाब देकर चलते बने. सीवीसी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि लगता है कि ये ऑडिटर्स इस पूरे मसले से अंजान होने का नाटक कर रहे हैं.

ऊपर बैठे अधिकारियों ने कमियां छुपाने के लिए दिए एक से जवाब

सीवीसी के मुताबिक ऑडिटर्स इस बात की स्पष्ट जानकारी नहीं दे सके कि उनसे किसके सत्यापन की उम्मीद की जाती है, उन्होंने क्या सत्यापित किया और कौन से ऐसे क्षेत्र रहे जिसमें वो सत्यापन करने में नाकाम रहे. सीवीसी के अनुसार ‘ऑडिटर्स ये बताने में नाकाम रहे कि उन्होंने किन किन क्षेत्रों में आरबीआई द्वारा निर्धारित मापदंडों के आधार पर टेस्ट चेकिंग को अंजाम दिया. ऑडिटर्स के द्वारा निरीक्षण के परिणामों को ऑडिट कमिटी और ऑडिट कमिटी ऑफ बोर्ड्स के पास भेजा गया लेकिन इन पर बोर्ड्स के द्वारा क्या निर्णय लिया गया ये अब तक स्पष्ट नहीं हुआ है.’

सीवीसी ने इस मामले को लेकर पंजाब नेशनल बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर सुनील मेहता से भी बात की. इसके अलावा सीवीसी ने वित्त मंत्रालय के अधिकारियों, पीएनबी के चीफ विजिलेंस ऑफिसर और उन बैंकों के सीवीओ से भी बात की जिन्होंने फर्जी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग के आधार पर नीरव मोदी और गीतांजलि ग्रुप ऑफ कंपनीज को भारी कर्ज दे दिया था.

सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि सीवीसी के सवालों का जवाब सभी ऑडिटरों ने लगभग एक समान तरीके से दिया है जो कि ये दर्शाने के लिए काफी है कि वो इस घोटाले की कमियों को छिपाने के लिए पहले से तैयार किया हुआ जवाब सीवीसी के सामने रख रहे थे. ये तथ्य ऑडिटरों के द्वारा दो पर्यवेक्षणों से साफ होता है और जिसे सीवीसी ने भी अपने नोट में लिखा है. इस आब्जर्वेशन में कहा गया है कि कुछ ऑडिटरों का कहना था कि उन्होंने लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग के बारे में कभी कुछ नहीं सुना जबकि एक ऑडिटर ने सीवीसी के सवाल जवाब में इसके उलट जवाब दिया. उसका कहना था कि उसने स्विफ्ट मैसेज की हार्ड कॉपी एक व्यक्तिगत लोन के केस में देखी थी लेकिन उसने स्विफ्ट मैसेज की पड़ताल करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई.

वैधानिक ऑडिटरों की दलील है कि उनका काम बैलेंसशीट के स्वरुप को देखना है और उनका ऑडिट का करने का तरीका चार तरह से होता है. पहला दस्तावेजों की ऑडिटिंग, दूसरा बंधकों का सृजन, तीसरा परिचालन संबंधी मामले और चौथा विश्लेषण.

वास्तविक ऑडिट टेस्ट भी नहीं किए गए

सीवीसी के सामने ऑडिटर्स ने कहा कि ‘वैधानिक ऑडिटरों से ये उम्मीद नहीं की जाती है कि वो लेनदेन की ऑडिटिंग करें, बल्कि उनका काम है कि वो बैलेंस शीट की ऑडिटिंग करने के साथ साथ रिपोर्ट की गई संपत्ति और उनकी देनदारियों का सत्यापन करें. बैंक या उसकी शाखाओँ के वैधानिक ऑडिट करने के लिए निर्धारित किए गए कार्य दिवस वैसे ही काफी कम होते हैं और ये मानवीय रुप से संभव नहीं है कि किसी भी वड़ी शाखा की सभी इंट्रीज की जांच और सत्यापन निर्धारित किए गए समय में पूरा किया जा सके. ऐसे में टेस्ट चेक और उस साल बैंकों में किए गए अन्य कई तरह के ऑडिट के परिणामों पर भरोसा किया जाता है.

उदाहरण के तौर पर इंटरनल ऑडिट,रेवन्यू ऑडिट और समवर्ती ऑडिट आदि के परिणामों पर नजर डालकर कमजोर क्षेत्रों के बारे में जानकारी रखी जाती है. बायर्स क्रेडिट ट्रांजेक्शन के गैप को 2009-10 और 2010-11 के लांग फार्म क्रेडिट रिपोर्ट के माध्यम से पहले ही सामने लाया जा चुका है. लेकिन बायर्स क्रेडिट ट्रांजेक्शन की समस्या पूरे पंजाब नेशनल बैंक की समस्या है न कि केवल ब्रैडी हाउस ब्रांच की.’

हालांकि सर्वोच्च निगरानी संस्था का मानना है कि ऑडिटर्स हाई वैल्यू इंट्रीज की रिवर्स जांच करने में नाकाम रहे. अगर इसकी जांच होती तो ब्रैडी हाउस ब्रांच की गड़बड़ियां पहले ही पकड़ में आ जाती. उसी तरह से अलग अलग तिमाहियों में कमीशनों का सही तरीके से विश्लेषण किया जाता तो भी ये घोटाला समय रहते सामने आ जाता. लेकिन ऑडिटरों ने ये भी नहीं किया. बिजनेस ग्रोथ का विश्लेषण वैधानिक ऑडिटरों के जिम्मे है कि नहीं इसे वैधानिक ऑडिटरों के द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया. वैसे अगर इन सबकी जांच रेवेन्यू ऑडिटर और समवर्ती ऑडिटरों ने भी नहीं की तो फिर पीएनबी की ऑडिटिंग गंभीर सवाल खड़े करती है.

सीवीसी ने नियमों के अनुपालन पर भी सवाल खड़े किए हैं. सीवीसी का कहना है कि इस मामले में देनदारियों को चिन्हित नहीं किया गया और वास्तविक ऑडिट टेस्ट भी नहीं किए गए.

फ़र्स्टपोस्ट के पास फायरस्टार इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड द्वारा वार्षिक रिटर्न फाइल किए जाने की कॉपी है. फायरस्टार इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड नीरव मोदी के स्वामित्व वाली कंपनी है. कंपनी ने अपने दाखिल रिटर्न में कहा है कि उसने 1518 करोड़ रुपए का सुरक्षित कर्ज प्राप्त किया हुआ है जबकि अनसिक्योर्ड लोन महज दस करोड़ रुपए का है. जबकि जबरदस्त जालसाजी बायर्स क्रेडिट के नाम पर की गयी. फायरस्टार की आंतरिक ऑडिट कमिटी की मीटिंग अक्टूबर 2016, फरवरी 2017 और मार्च 2017 में की गयी थी.