view all

मंदसौर ग्राउंड रिपोर्ट: वो सेना में शामिल होना चाहता था लेकिन 'किसान' की मौत मारा गया!

घर के भीतर एक कमरे से आती सिसकियों की आवाज लगातार सुनी जा सकती है

Debobrat Ghose

17 वर्षीय अभिषेक पाटीदार और 23 वर्षीय चैनराम पाटीदार मध्य प्रदेश में मंदसौर जिले के छोटे किसानों के बेटे थे. दोनों ने ही अपने लिए कुछ अलग भविष्य के सपने देखे थे. एक डॉक्टर बनना चाहता था, तो दूसरा भारतीय सेना में 'जवान' बन कर देश की सेवा करना चाहता था. लेकिन पुलिस फायरिंग ने दोनों का जीवन खत्म कर दिया. पुलिस की गोलियों ने इन दोनों नौजवानों और उनके परिवारों के सपने बिखेर दिए. 6 जून को हुई 6 लोगों की मौत में चार अन्य के साथ इन दोनों को भी मौत ने लील लिया. बाकी अब सब इतिहास हो चुका है.

गुमनाम जिले को मिली पहचान


किसान आंदोलन और उसके नतीजे के रूप में मंदसौर में भड़की हिंसा ने मध्य प्रदेश के इस गुमनाम से जिले को अब राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला खड़ा किया है. मंदसौर से करीब 25 किलोमीटर दूर बरखेडा पंथ के किसान और अभिषेक के पिता, दिनेश कुमार पाटीदार बिलखते हुए पछताते हैं कि उन्होंने अपने सबसे छोटे बेटे को घर से तीन किलोमीटर दूर पिपलिया के किसान आंदोलन में जाने की अनुमति क्यों दी, जहां पुलिस ने भीड़ पर सीधी गोलियां चला दीं.

"उसने मुझसे इजाजत मांगी कि वह अपने मित्रों और पड़ोसियों के साथ जाकर किसान आंदोलन देखना चाहता है. मैंने उसे अनुमति दे दी क्योंकि यह आंदोलन किसानों के अधिकारों के लिए था. लेकिन कुछ घंटों बाद मेरे बेटे के बजाय उसका शव घर पहुंचा," घर के बाहर अपने पड़ोसी किसानों के साथ बैठे दिनेश कुमार पाटीदार ने फर्स्टपोस्ट को बताया.

तभी एक दूसरी गोली पीठ में लगी

एक पड़ोसी के मुताबिक, अभिषेक अपने दोस्तों के साथ पिपलिया मंडी पुलिस स्टेशन के दूसरे सिरे पर खड़ा था और स्टेट हाईवे जाम करने वाले करीब 5000 किसानों का प्रदर्शन देख रहा था. "पुलिस ने जब भीड़ को तितर बितर करना चाहा तो धीरे धीरे प्रदर्शन उग्र होने लगा. अचानक ही पुलिस ने गोलीबारी कर दी, जिसमें एक गोली अभिषेक के पेट में जा धंसी. वह गिर पड़ा. लेकिन हमने उसे उठने में मदद की तो उसने दौड़ना शुरू कर दिया. लेकिन तभी एक दूसरी गोली उसकी पीठ में लगी और वह सीधा गिर पड़ा," अभिषेक के पिता के बराबर में बैठे पड़ोसी ने ये बात कही.

गोलियां खाने वाले दो अन्य किसानों के साथ अभिषेक को मंदसौर राजकीय अस्पताल से इंदौर रेफर कर दिया गया, लेकिन उसने रास्ते में ही दम तोड़ दिया. अपने परिवार में पहला डॉक्टर बनने के लिए जीव विज्ञान चुनने वाले 12 वीं कक्षा के छात्र की जिंदगी समय से पहले ही काल के गाल में समा गई.

राजनीतिक नेतृत्व से लेकर प्रशासन तक कोई नहीं पहुंचा घर

किसानों और मृतक परिवारों को शांत करने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पुलिस फायरिंग में मारे गए किसानों के परिवारों को हड़बड़ी में एक करोड़ रुपये मुआवजे की घोषणा कर दी. दिनेश सवाल करते हैं, "पहले सरकार ने 5 लाख का ऐलान किया, फिर 10 लाख का, इसके बाद 1 करोड़ का. क्या सरकार शवों की नीलामी की कोशिश कर रही है."

बहरहाल, अब तक राजनीतिक नेतृत्व से लेकर प्रशासन तक, कोई भी अभिषेक के घर नहीं पहुंचा है. न परिवार को सांत्वना देने, और न ही मुआवजे के बारे में कोई सूचना देने.

अभिषेक के पिता ने बताया, मेरे तीन बेटों में, बड़ा बेटा खेती में मदद करता है. दूसरा, एक प्राइवेट नौकरी में है. अभिषेक खेती में मेरी मदद करता था, लेकिन वह डॉक्टर बनना चाहता था. क्योंकि खेती अब नुकसान का काम रह गया है.

उन्होंने आगे कहा कि पिछले तीन वर्ष किसानों के लिए खेती के बहुत खराब वर्ष साबित हुए हैं, जिसके कारण यह किसान आंदोलन खड़ा हुआ." उनके पास 28 बीघा जमीन है, जिसमें वह सोयाबीन, चना और प्याज उगाते हैं.

युवा किसानों को बुरी तरह पीटा गया

पेशे से बढ़ई और पाटीदार के पड़ोसी लक्ष्मी नारायण कहते हैं, "अगर विरोध जताने के लिए बुलाए गए बंद की अपील सुन ली गई होती, तो किसान उग्र न हुए होते. लेकिन सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. सत्ताधारी दल की छत्रछाया वाले कुछ व्यापारियों ने इस बंद को विफल करना चाहा और स्थानीय बाजार में कुछ युवा किसानों को बुरी तरह मारा पीटा गया. लेकिन किसानों की हालत की चिंता किसी को नहीं है."

चैन राम की कहानी भी उतनी ही झकझोरने वाली है, जितनी अभिषेक की. दो भाई बहनों में बड़े चैनराम के पिता गनपत लाल पाटीदार एक गरीब किसान हैं. चैनराम सेना में जवान के रूप में सेवा देना चाहता था. उसके घर का रास्ता बरखेड़ा पंथ से करीब 20 किलोमीटर दूर दोनों तरफ खेतों के बीच एक सर्पीली पगडंडी से होकर जाता है.

चैनराम के पिता गनपत लाल करीब 400 वर्ग फुट के अपने छप्पर वाले घर के बाहर परिवार के अन्य बुजुर्गों के साथ बैठे मिले.

वह कहते हैं, "मेरे पास केवल दो बीघा जमीन है. हमारी गरीबी देख कर बेटा सेना में भर्ती होना चाहता था. उसमें देश सेवा का जुनून था. उसने इसके लिए सभी परीक्षाएं पास कर ली थीं. सिर्फ आई-टेस्ट की एक परीक्षा बाकी थी, जो आगे होने वाली है," घटना से टूट चुके गनपत लाल ने फर्स्टपोस्ट से अपना दर्द बयान किया.

लगातार आ रही थी सिसकियों की आवाज

सबसे दर्द भरी कहानी तो यह है कि चैनराम की अभी अप्रैल में ही शादी हुई थी. घर के भीतर एक कमरे से आती सिसकियों की आवाज लगातार सुनी जा सकती है. चैनराम के छोटे भाई और 12वीं के छात्र गोविंद पाटीदार ने बताया, "मेरा भाई कुछ पड़ोसियों के साथ पिपलिया मंडी गया था. वह किसानों के हुजूम से दूर खड़ा था. पुलिस ने जब फायरिंग शुरू कर दी, तो सभी भागने लगे. लेकिन मेरा भाई गिर पड़ा. उसके सिर में गोली लगी. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई है कि उसकी मौत सिर के बिलकुल ऊपरी सिरे में गोली लगने से हुई है. वहां मौजूद लोगों ने बताया कि पुलिस वालों ने मेरे भाई की टांग पकड़ कर घसीटा भी."

"जिस खेती से हम अपनी लागत भी नहीं निकाल सकते, अब वह खेती कोई नहीं करना चाहता. परिस्थितियां धीरे-धीरे मुश्किल होती जा रही हैं. मेरे पास बहुत थोड़ी सी जमीन है, जिसमें हम प्याज उगाते हैं. आप देख सकते हैं कि यहां प्याज का ढेर लगा है. क्योंकि कीमत नहीं मिल रही है और यह बिक नहीं रहा है. अब मेरे पास उम्मीद के नाम पर सिर्फ गोविंद है, जो खेती के बजाय कोई दूसरा धंधा चुन सकता है," शोक में डूबे गनपत लाल अपने छोटे बेटे की तरफ देखते हैं.

जो हंगामे में नहीं थे शामिल  उन्हें क्यों मारा गया

गांव वाले पूछते हैं कि उनके गांव के इन दो युवकों को क्यों मार दिया गया, जो किसी तरह के हंगामे में शामिल नहीं थे. अभिषेक पाटीदार की तरह ही, चैनराम के घर भी सिवाय स्थानीय पटवारी और सरपंच के कोई राजनीतिक प्रतिनिधि या प्रशासनिक अधिकारी अब तक नहीं पहुंचा.

ग्रामीणों के मन में फिलहाल सबसे बड़ा सवाल सिर्फ खेती में अंधेरे भविष्य का ही नहीं है, बल्कि उन जिंदगियों का भी है जो इस गोलीकांड में अचानक खत्म हो गईं. वे नहीं समझ पा रहे हैं कि अब किस पर भरोसा करें.