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जेएनयू, डीयू के अध्यापकों पर एफआईआर भ्रष्टतम कार्रवाई

छत्तीसगढ़ पुलिस ने दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर नंदनी सुंदर समेत 11 लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया है.

Krishna Kant

छत्तीसगढ़ पुलिस ने दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर नंदनी सुंदर समेत 11 लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया है.

इन 11 लोगों में जेएनयू की प्रोफेसर अर्चना प्रसाद, नक्सली नेता विनोद, श्यामला, और सीपीआई नेता संजय पराते के भी नाम हैं.


शुक्रवार रात को हथियारबंद माओवादियों ने सुकमा के कुम्माकोलेंग के नामा गांव में सोमनाथ बघेल नाम के आदिवासी कि उसके घर में घुसकर हत्या कर दी थी. मुकदमा जगदलपुर जिले के तोंगपाल थाने में दर्ज किया गया है.

इन सभी के खिलाफ हत्या, आपराधिक साजिश रचने, घर में घुसने, बलवा करने और अवैध रूप से हथियार रखने के आरोप लगाए गए हैं.

पुलिस का कहना है कि इन प्रोफसरों और नेताओं ने गांव वालों को छह माह पहले नक्सलियों की ओर से जान से मारने की धमकी दी थी. इसके बाद सोमनाथ की हत्या कर दी गई. उसकी पत्नी ने सभी लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज करवाई है.

नंदिनी सुंदर को फंसाया गया!

छह महीने पहले इस गांव में नंदिनी सुंदर समेत कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने यहां पर ग्रामीणों के साथ सभा की थी, जिसके बाद उन सभी पर आरोप लगे कि उन्होंने नक्सलियों के पक्ष में गांववालों को डराया है.

इस पर कुछ ग्रामीणों की ओर से दरभा थाने में एक लिखित शिकायत भी दर्ज करवाई थी. हालांकि इस शिकायत के ही फर्जी होने का आरोप लगा था.

तब से कई बार छत्तीसगढ़ में सुरक्षा कर्मियों की ओर से और कुछ समूहों की ओर से नंदिनी सुंदर और अन्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ कई बार प्रदर्शन किया जा चुका है.

हाल ही में नंदिनी ने छत्तीसगढ़ की समस्या पर 'द बर्निंग फॉरेस्ट: इंडियाज वॉर इन बस्तर' शीर्षक से एक किताब लिखी थी, जिसकी काफी तारीफ हुई थी.

हमने जगदलपुर के कलेक्टर नीरज से फोन पर बात की तो उन्होंने मामला दर्ज होने के मसले से अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि 'मुझे पता लगाना पड़ेगा. मुझे इसके बारे में डिटेल लेना पड़ेगा. अभी हमारे पास जानकारी आई नहीं है.'

नंदिनी सुंदर ने ईमेल पर फर्स्टपोस्ट को बताया, 'ये एफआईआर पूरी तरह बकवास है. हम पर हत्या और दंगा भड़काने का आरोप कैसे लग सकता है, जबकि हम वहां पर थे ही नहीं. स्पष्ट तौर पर यह पत्रकारों, वकीलों, शोधकर्ताओं, नेताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को डराने और प्रताड़ित करने का आईजी कल्लूरी का प्रयास है, क्योंकि उन लोगों ने बस्तर में फर्जी एनकाउंटर, सामूहिक बलात्कार आदि की सत्ता को नंगा किया है.'

लिखने-पढ़ने वाले लोगों को डराने की कोशिश

जेएनयू की प्रोफेसर अर्चना प्रसाद ने कहा, 'हम शोधकर्ता हैं. हमारे लिखने—पढ़ने से भी उनको दिक्कत है इसलिए ऐसा कर रहे हैं. वे कह रहे हैं कि हमने हत्या के लिए उकसाया, हम इस बारे में क्या बोलें. वे तो हमेशा ऐसे आरोप लगाते हैं. हम हर बार यही कहते हैं कि हमने जो भी लिखा पढ़ा है, आप उसे देख लीजिए. मार रहे हैं वो लोग, संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं वो लोग, बोल हमें रहे हैं. खुद छत्तीसगढ़ सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन कर रही है.'

प्रसाद ने कहा,'आजकल जिस तरह का माहौल है, वे कुछ भी आरोप लगा सकते हैं. ऐसी निकम्मी सरकारें, जो लोगों की समस्या हल नहीं कर सकतीं, उससे और क्या उम्मीद करें. जो भी लोगों के हक में लड़ता है, उसे बार-बार फंसा रहे हैं. इसे लोकतंत्र नहीं, इसे फासीवाद कहते हैं.'

आगे के कदम के बारे में पूछने पर अर्चना प्रसाद ने कहा, 'हम कोर्ट जाएंगे. वकील से संपर्क करेंगे. छत्तीसगढ़ पुलिस के पास इतनी सलीका भी नहीं है कि वह हमसे एक बार बात करती. हमसे बिना कुछ पूछे, बिना संपर्क किए अचानक एफआईआर दर्ज करा दी. पूछताछ क्यों नहीं की? आईजी कल्लूरी खुद फंसे हुए हैं, इसलिए ऐसा कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ में ये सभी जानते हैं. इनका वश चलता तो हमें पहले ही अंदर कर देते.'

छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बीच सक्रिय सोनी सोरी ने कहा, 'मैंने आज ही सुना है कि माओवादियों ने मार दिया है, उसी मामले में पुलिस ने केस दर्ज किया है. मैं उस गांव में जाकर ही स्पष्ट बता सकती हूं कि ऐसा क्यों हुआ? यह पुलिस की साजिश हो सकती है. ये स्पष्ट कैसे होता है कि माओवादियों ने नंदिनी सुंदर का नाम लेकर हत्या की. माओवादियों की तरफ से कोई बयान आया है क्या? यह तो अभी पुलिस कह रही है. मैं गांव में जाकर ही कुछ कहूंगी.'

पुलिस का बेहूदा आरोप

मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने फर्स्टपोस्ट से कहा, 'ये पूरा पुलिस का किया कराया नजर आ रहा है. इतना फर्जी, इतना बेहूदा आरोप. पुलिस का कहना है कि गांव वालों की तरफ से एक शिकायत दर्ज की गई है, जिसमें इन इन लोगों को नाम है. पहली बात तो ये है कि इन गांव वालों से इन लोगों की कोई दुश्मनी थी?'

उन्होंने कहा,' अभी चंद दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सीबीआई जांच में ये पाया गया कि सुरक्षा बलों के लोग गांव जलाने, स्त्रियों के बलात्कार और हत्याओं में शामिल हैं, जिनमें बच्चों तक की हत्या की गई. इससे बौखला कर पुलिस के लोगों ने इन कार्यकर्ताओं का पुतला फूंका था. ये पुलिस की तरफ से इन लोगों को घेरने की कोशिश है. इसके लिए इन्होंने इतना बेहूदा तरीका अपनाया है.'

नवलखा ने कहा,' ये साफ दर्शाता है कि किस तरह की अराजकता और पुलिस राज आज बस्तर में है. न वहां संविधान है, न सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन हो रहा है. तमाम चीजों की अवहेलना की गई है. यह अवमानना भी नहीं है, यह अपने आप में एक अपराध है. पुलिस महकमे की एकदम साफ भूमिका है. आईजी कल्लूरी पहले भी ऐसा करते रहे हैं. अपने को देशभक्त कहकर, दूसरे को देशद्रोही और गद्दार कहने वाले ऐसे घटिया अफसर की वहां तैनाती अपने आप में बताती है कि किस तरह का शासन वहां पर लागू है.'

इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने ट्वीट किया, 'मैं जितनी बहादुर और सभ्य महिलाओं को जानता हूं, प्रोफेसर नंदिनी सुंदर उनमें से एक हैं. छत्तीसगढ़ सरकार की कार्रवाई भ्रष्टतम कदम है.'

गुहा ने एक दूसरे ट्वीट में लिखा, 'यह निंदनीय और प्रतिशोधी एफआईआर यह साबित करती है कि छत्तीसगढ़ एक 'पुलिस स्टेट' है.'

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया, 'यह चौंकाने वाला है. रमन सिंह के हत्यारे पुलिस अधिकारी कल्लूरी ने प्रोफेसर नंदिनी सुंदर के खिलाफ केस दर्ज किया है जो सलवा जुडूम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई थीं.'

इसके अलावा बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ पुलिस ने इस कदम की तीखी निंदा की है.