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देश के लिए कुर्बान हो गए DSP अयूब, कश्मीर बताए उनका कसूर क्या था?

उन्मादी भीड़ ने डीएसपी मोहम्मद अयूब को मार कर एक तरह से मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर फेंका है.

Kinshuk Praval

जिस भीड़ के हाथों में पत्थर और सिर पर खून सवार हो तो वो भीड़ जन्नत को दोज़ख़ की आग में जलाने पर आमादा दिखाई देती है. श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में जामा मस्जिद से इबादत के बाद बाहर निकली भीड़ एक शख्स को पीट पीट कर मार डालती है. शबे कद्र का मौका, जुमे की रात और मस्जिद में इबादत के बाद बाहर निकलती भीड़ का अचानक बदला चेहरा हैरान कर देने वाला था.

डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित को भीड़ के कुछ लोग पहचान कर उन पर हमला बोल देते हैं. डीएसपी अयूब सादी वर्दी में थे और जामा मस्जिद के सामने ड्यूटी पर तैनात थे.


बताया जा रहा है कि डीएसपी मस्जिद से बाहर आने और भीतर जाने वालों को फोटो खींच रहे थे. जिससे  भीड़ को उन पर मुखबिर होने का शक हुआ और हमला कर दिया.

सवाल ये है कि आखिर डीएसपी कौन सी और किसकी मुखबिरी कर रहे थे? जाहिर तौर पर वो सुरक्षा के चलते अपनी ड्यूटी पर तैनात थे.

सवाल ये है कि मस्जिद में ऐसे वो कौन लोग थे जिन्हें फोटो खिंचने पर ऐतराज था?

माना जा रहा है कि जिस वक्त डीएसपी अयूब पर हमला हुआ उस समय मस्जिद में उदारवादी हुर्रियत कांफ्रेंस के प्रमुख मीरवाईज और मौलवी उमर फारुक लोगों को इस्लाम का पाठ पढ़ाते हुए अमन और भाईचारे की सीख दे रहे थे.

शब-ए-कद्र के मौके पर डीएसपी की हत्या

लेकिन विडंबना ये है कि शब-ए-कद्र के मौके पर मस्जिद के बाहर ड्यूटी पर तैनात एक इंसान जो अवाम के लिये मुहाफिज़ था उसकी जान भीड़ ले रही थी. अयूब ने लोगों को समझाया भी कि वो डीएसपी हैं उसके बावजूद हमलावर भीड़ ने उन पर तरस नहीं खाया. भीड़ ने पहले अयूब के कपड़े उतारे और उसके बाद उन्हें लाठी और पत्थरों से तब तक मारती रही जब तक कि उनकी जान नहीं चली गई.

डीएसपी की हत्या में साजिश का अंदेशा

बीती रात साढ़े बारह बजे की ये घटना इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली है. रमजान में जुमे की आखिरी नमाज को देखते हुए सुरक्षा के इंतजाम किये गए थे. गुरूवार रात शब-ए-कद्र मनाई जा रही थी. शबे कद्र में रात भर जाग कर मस्जिदों और दरगाहों में इबादत होती है. गुनाहों से तौबा करते हुए खुदा की इबादत करते हैं.

लेकिन रात के पहर में बाहर निकली भीड़ मानों हमले के लिये तैयार कर बाहर भेजी गई. डीएसपी अयूब के साथ सिर्फ एक कमी ये थी कि वो सादी वर्दी में थे. अगर वो खाकी में होते तो शायद ऐसा नहीं होता. लेकिन ऐसा अब कहना भी ठीक नहीं. घाटी में जम्मू-कश्मीर पुलिस पर लगातार हमले बढ़े हैं. कई पुलिसवालों की हत्याएं हुईं है. लेकिन भीड़ ने जिस तरह से अयूब को बेदर्दी से मारा उसे देखते हुए वर्दी की दलील गले नहीं उतर सकती. सादी वर्दी में भले ही डीएसपी अयूब पंडित थे लेकिन उनको भीड़ के कुछ लोगों ने पहचान लिया था. हालांकि एक तरफ ये कहा जा रहा है कि डीएसपी अयूब का फोटो खींचना ही उनकी मौत की वजह बना. ऐसे में माना जा सकता है कि ये अचानक हुआ हमला नहीं बल्कि सुनियोजित षडयंत्र था. भीड़ में कुछ लोग ऐसे भी शामिल थे जिन्हें अपना चेहरा सामने आने पर पकड़े जाने का खौफ था या फिर मस्जिद के भीतर बैठे कुछ लोग ये नही चाहते थे कि उनसे मिलने जुलने आए खास लोगों के फोटो सामने आए.

दूसरी तरफ ये भी कहा जा रहा है कि खुद डीएसपी भी साधारण कपड़ों में जामा मस्जिद में नमाज पढ़ने आए थे. बाहर निकलते वक्त कुछ लोगों ने उन्हें पहचान लिया और उन पर हमला बोल दिया. जिसके बाद उन्होंने खुद के बचाव के लिये फायरिंग भी की. इसके बाद लोगों ने उनकी रिवॉल्वर छीन कर उन्हें मारना शुरू कर दिया.

भीड़ का ये सुनियोजित हमला पहले से तय लगता है

डीएसपी अयूब की हत्या को सिर्फ और सिर्फ अचानक भीड़ का हमला कह कर खत्म नहीं किया जा सकता है. भीड़ के हाथ में हमले का हथियार देने वालों का भी हिसाब होना चाहिये. अबतक दो लोग इस मामले में गिरफ्तार हो चुके हैं. लेकिन सोचने वाली बात ये है कि घाटी का युवा किस जेहाद के आगोश में सेना और पुलिस को निशाना बना रहा है.  हर जुमे की नमाज के बाद सड़कों पर सेना पर पत्थर फेंकती भीड़, पाकिस्तान के नारे लगाता हुजूम और भारत के खिलाफ आग उगलते पोस्टर कब तक सेना और पुलिस के धैर्य का इम्तिहान लेते रहेंगे?

डीएसपी मोहम्मद अयूब अपना काम कर रहे थे. बगैर जान की परवाह किये मुल्क के लिये अपना फर्ज निभा रहे थे. अयूब ये जानते थे कि वो जहां तैनात हैं उस भीड़ में 'गुनाहों के देवता' बहुत हैं. लेकिन अयूब ये नहीं जानते थे कि उनकी जान को खतरा हो सकता है. क्योंकि अयूब खुद को कश्मीरी और लोकल समझते थे. इसलिये उन्हें आम कश्मीरी पर अपनी हत्या कर देने का कभी शक भी नहीं हुआ होगा. लेकिन अयूब ये जानने में भूल कर गए कि घाटी में अलगाववादियों और आतंक के सौदागरों ने आम कश्मीरी को भी सेना और पुलिस के नाम पर बांट दिया है. अयूब की मौत उसी नफरत और ज़हर का नतीजा है जिसने अपनी ही घाटी के बाशिंदे को सेना और पुलिस का मुखबिर बता कर मार डाला.

मधुमक्खी के छत्ते पर फेंक दिया पत्थर

जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने डीएसपी अयूब को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि जिस दिन पुलिस का सब्र टूटा तो मुश्किल हो जाएगी. जाहिर तौर पर जम्मू-कश्मीर की पुलिस वहीं के बाशिंदों से बनी टीम है. घाटी में सेना से ज्यादा पुलिस का तंत्र ज्यादा सक्रिय और फैला हुआ होता है. चाहे गांव हो या कस्बा हो या फिर घाटी का कोई सा भी कोना क्यों न हो लेकिन जम्मू-कश्मीर पुलिस की मदद के बिना सेना के बड़े ऑपरेशन्स भी कामयाब नहीं हो सकते. ऐसे में उन्मादी भीड़ ने डीएसपी मोहम्मद अयूब को मार कर एक तरह से मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर फेंका है.

पत्थरबाजों की ये पीढ़ी जिसका हीरो आतंकी बुरहान वानी हो , वो न मालूम कौन से जिहाद और किस आजादी के लिये कश्मीर के जख्म को देश के लिये नासूर बनाने पर आमादा है. हुक्मरानों पर आरोप लगता है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से कश्मीर के हालात बिगड़े हैं. ये भी कहा जाता है कि अलगवावादियों के साथ बातचीत के जरिये कश्मीर में अमन वापस लाया जाए. लेकिन जब भीड़ के सिर पर ही सेना और पुलिस के खिलाफ जुनून हावी हो तो यहां बात होगी भी तो क्या बात होगी.