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पाक को मिले अमेरिकी झटके के बाद अब भारत भी सख्त कदम उठाए

काफी दिनों से ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान के साथ रिश्तों की समीक्षा कर रहा था. ऐसा लगता है कि अब अमेरिका ने तय कर लिया है कि वो पाकिस्तान के झांसे में नहीं आने वाला

Kamlendra Kanwar

अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली हर तरह की आर्थिक मदद रोकने का फैसला कर लिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट किया कि पाकिस्तान हिंसा और आतंक फैलाने वालों को पनाह देता रहा है और हम उसे मदद देते रहे हैं. अब ऐसा नहीं चलेगा. अमेरिका का पाकिस्तान को मदद रोकने का फैसला ये जताता है कि भारत की मुहिम रंग ला रही है. हम काफी दिनों से दुनिया को ये यकीन दिलाने में जुटे हैं कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा और पनाह देता है.

जाहिर है अमेरिका झिड़केगा तो पाकिस्तान का चीन की गोद में जाकर बैठना तय है. और पूरी दुनिया जानती है कि चीन बिना किसी फायदे के किसी को एक फूटी कौड़ी भी नहीं देता. अब जबकि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का काम पूरा होने वाला है. चीन इसमें भी पाकिस्तान से और मुनाफा मांग रहा है. जबकि आर्थिक गलियारे की वजह से चीन की रणनीतिक तौर पर अहम ठिकाने तक सीधी जमीनी पहुंच हो जाएगी. अब तक आर्थिक तौर पर पाकिस्तान अमेरिका के सहारे था. अब वो अपना वजूद बचाने के लिए चीन के भरोसे हो जाएगा.


अपना फायदा ढूंढेगा चीन

हालात ऐसे हैं कि पाकिस्तान अब चीन का आर्थिक उपनिवेश बनने के कगार पर पहुंच गया है. फौरी आर्थिक फायदे के लिए पाकिस्तान के हुक्मरान चीन के समर्थन की आने वाले वक्त में भारी कीमत चुकाएंगे. वो ये दूर की बात अभी देख नहीं पा रहे हैं.

पाकिस्तान की विदेश नीति पर जनरलों का दखल रहा है. पाकिस्तान की फौज के कमांडर विदेशी मदद से अपनी जेबें भरते रहे हैं. वो पाकिस्तानियों को भारत का डर दिखाकर देश के संसाधन लूटते आए हैं. अब वो चीन के पैसे से भी अपने खजाने को ही भरेंगे.

ट्रंप ने नए साल की शुरुआत में ट्विटर पर ऐलान किया कि वो पाकिस्तान को अब किसी भी तरह की मदद नहीं देंगे. ट्रंप ने लिखा कि पिछले पंद्रह सालों में अमेरिका ने पाकिस्तान को 33 अरब डॉलर की मदद देकर बेवकूफी ही की है. जबकि अमेरिका जिन आतंकवादियों को अफगानिस्तान से खदेड़ता है, उन्हें पाकिस्तान पनाह देता है.

लेकिन, चीन ऐसी मूर्खता नहीं करेगा. वो ये तय करने के बाद ही पाकिस्तान को पैसे देंगे कि उनकी मदद के बदले चीन के हितों को फायदा हो. या फिर वो पाकिस्तान को मदद देकर ब्लैकमेल करेंगे. पाकिस्तान के जनरलों को विदेशी मदद से अपनी जेबें भरते की लत लगी हुई है. देश को भले ही नुकसान हो, मगर वो अपने निजी फायदे के लिए इसकी कोई परवाह नहीं करेंगे.

अमेरिका कर रहा है समीक्षा

पाकिस्तान, उन 16 देशों में शुमार है, जो नाटो देशों की बराबरी के अमेरिकी सहयोगी माने जाते हैं. पाकिस्तान को इस वजह से अरबों डॉलर की अमेरिकी मदद मिलती है. साथ ही वो ऊंचे दर्जे के अमेरिकी हथियार और नई-नई तकनीक भी हासिल करता रहा है. 2017 में अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 35 करोड़ डॉलर की मदद रोक दी थी. अमेरिका का कहना था कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पूरी तरह से मदद नहीं कर रहा है. हालांकि अमेरिका और पाकिस्तान की दोस्ती पर इतना बड़ा सवालिया निशान नहीं लगा था.

लेकिन काफी दिनों से ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान के साथ रिश्तों की समीक्षा कर रहा था. ऐसा लगता है कि अब अमेरिका ने तय कर लिया है कि वो पाकिस्तान के झांसे में नहीं आने वाला. अब अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के हिसाब से ही अमेरिका, पाकिस्तान के साथ अपने रिश्ते चलाएगा.

पिछले हफ्ते अमेरिकी उप-राष्ट्रपति माइक पेंस ने अफगानिस्तान का दौरा किया था. पेंस ने तब कहा था कि, 'राष्ट्रपति ट्रंप ने पाकिस्तान को नोटिस दे दिया है'. ऐसा लगता है कि उस चेतावनी पर अब अमेरिका अमल करने वाला है. हालांकि ट्रंप पर पूरी तरह से भरोसा करना ठीक नहीं है. खास तौर से तब और जब वो अक्सर पाकिस्तान की चिकनी-चुपड़ी बातों के जाल में फंसते आए हैं. नए साल पर अपने ट्वीट में ट्रंप ने पाकिस्तान को बिना लाग-लपेट के चेतावनी दी है. ट्रंप ने लिखा कि, 'पाकिस्तान ने हमारे साथ छल किया, झूठ बोला. वो हमारे नेताओं को मूर्ख समझता रहा'.

पिछले हफ्ते न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा था कि ट्रंप सरकार पाकिस्तान को दी जाने वाली 25.5 करो़ड़ अमेरिकी डॉलर की मदद रोकने पर गंभीरता से विचार कर रहा है. ये रकम पाकिस्तान को पहले ही दी जानी थी. लेकिन आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई न करने की वजह से ये रकम अमेरिका ने रोक रखी थी.

हालांकि अमेरिका अपने हित साधने के लिए ये कदम उठा रहा है. मगर इससे भारत को भी फायदा पहुंचेगा. हमें अमेरिकी एक्शन के हिसाब से पाकिस्तान को लेकर अपनी रणनीति में बदलाव की जरूरत है.

 भारत वापस ले 'मोस्ट फेवर्ड नेशन' का दर्जा 

भारत ने काफी वक्त से पाकिस्तान को 'मोस्ट फेवर्ड नेशन' का दर्जा दे रखा है. जबकि पाकिस्तान ने अब तक ऐसा नहीं किया है. अब भारत को भी पाकिस्तान से ये दर्जा वापस ले लेना चाहिए.

हालांकि, भारत अब सीमा पार से फायरिंग का तगड़ा जवाब देने लगा है, लेकिन हमें पाकिस्तान को और भी मुंहतोड़ जवाब देने के बारे में सोचना चाहिए. अब जबकि अमेरिका और भारत दोनों ये मानते हैं कि पाकिस्तान आतंकवादियों की पनाहगाह है, तो हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के खिलाफ मुहिम छेड़नी चाहिए. अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस बात के लिए राजी करना चाहिए कि पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित किया जाए.

अब तक अमेरिका कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकियों की मौजूदगी और सीमा पार स्थित आतंकवादी कैंपों को लेकर आंखें मूंदे रहा है. अब जबकि ट्रंप प्रशासन आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर कार्रवाई की बात कर रहा है, तब भी उसकी नजर पाकिस्तान के भारत के खिलाफ फैलाए जा रहे आतंकवाद पर नहीं है. अमेरिका का निशाना सिर्फ हक्कानी नेटवर्क पर है, जो कि अफगानिस्तान तालिबान का सहयोगी है. हक्कानी नेटवर्क पाकिस्तान से ही चलता है. इसने अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज को काफी नुकसान पहुंचाया है.

इन देशों को आना होगा साथ

अमेरिका के बार-बार कहने के बावजूद पाकिस्तान ने हक्कानी नेटवर्क के खात्मे के लिए ठोस कदम नहीं उठाया है. इसीलिए अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली मदद को हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई से जोड़ दिया है. इन सब बातों की जड़ में पाकिस्तान की फौज है. वहीं वहां की सरकार के पास न तो हिम्मत है और न ही ये इच्छाशक्ति कि वो फौज को कोई फरमान दे. पाकिस्तान की सरकार लाचार है. वहीं वहां की फौज के जनरल अपनी जेबें भर रहे हैं. देश और दुनिया को आतंकवाद से नुकसान हो रहा है. मगर पाकिस्तानी जनरलों को इसकी परवाह ही नहीं.

भारत की तरह अमेरिका भी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का विरोधी है. अब अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया को एकजुट होकर चीन से मुकाबले की रणनीति बनानी चाहिए. इन देशों को चाहिए कि वो समुद्री रास्तों पर अपनी ताकत बढ़ाएं, ताकि समुद्री रास्ते से कारोबार में कोई बाधा ना पहुंचे.