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डोकलाम से ग्राउंड रिपोर्ट-1: भारत-चीन की दिमागी जंग के बीच दम साधे डटे हैं हिंदुस्तानी फौजी

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के छोटे सैनिकों को अपनी गर्दन खूब ऊंची ताननी होगी तब जाकर जाट रेजिमेंट के ये 250 सैनिक उन्हें नजर आएंगे

Manoj Kumar

( संपादकीय नोट: भारत और चीन के बीच कायम तनातनी की घट-बढ़ के बीच डोकलाम के जमीनी हालात के बारे में तीन रिपोर्टों की सीरिज की यह पहली कड़ी है. )

भारत और चीन के बीच सिक्किम में चल रहे सीमा-विवाद के बीच डोकलाम ट्राई जंक्शन (तिमुहाने) पर हालात संगीन बने हुए हैं.


नई दिल्ली और बीजिंग के बीच एक दूसरे को दिमागी खेल में मात देने की कोशिशों के बीच बर्फीले डोकलाम में एक अलग ही तरह का मुकाबला दरपेश है जहां भारत के 250 सैनिक चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सामने डटे हुए हैं.

बीते 2 अगस्त को चीन ने एक फैक्टशीट जारी किया. इसमें दावा किया गया कि भारत ने डोकलाम में अपने सैनिकों की तादाद 400 से घटाकर 40 कर दी है. भारत ने एकबारगी इसका जवाब दिया. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सैनिकों की तादाद में कमी से इनकार किया और मंत्रालय ने उनकी बात का समर्थन किया.

क्या है चीनी दावे की हकीकत?

फ़र्स्टपोस्ट को हासिल सूचना के मुताबिक डोकलाम में जुझारु तेवर वाले जाट रेजिमेंट के 250 सैनिक दो स्तरों पर तैनात किए गए हैं. करगिल की जंग में कमाल दिखाने वाले बोफोर्स गन सहित तोपों की एक तीसरी पांत भी डोकलाम में तैनात है जो दुश्मन के परखच्चे उड़ाने का माद्दा रखती है.

भारत और चीन के बीच एक करार है. इस करार के मुताबिक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों को समान संख्या में सैनिक तैनात करने होते हैं. इस कारण सैनिकों की तैनाती की संख्या दोनों तरफ से बराबर ही है.

चीन के रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने 24 जुलाई को बड़बोलापन दिखाते हुए कहा कि 'पहाड़ को हिलाना आसान है लेकिन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को नहीं.'

शायद चीनी रक्षा मंत्रालय को ब्रिटिश पत्रकार एडमंड कैंडलर की लिखी हुई बात याद आ गई होगी. कैंडलर ने अपनी किताब द सिपॉय में जाट रेजिमेंट के सैनिकों के बारे में लिखा है, 'जिस जगह पर इन जंग-जुझारु जवानों को तैनात कर दिया जाता है वहां से इन्हें तभी डिगाया जा सकता है जब भूकंप आ जाए या कोई ज्वालामुखी फूट पड़े.'

जाट रेजिमेंट के जवानों को अभी डोकलाम की सरजमीं पर तैनात किया गया है और सारे अनुमान यही संकेत करते हैं कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी के लिए अपनी सरजमीं पर डट कर खड़े इन लंबे-तगड़े जवानों को डिगाना बहुत मुश्किल साबित होगा. यह संभावना इसलिए भी बनती है क्योंकि डोकलाम का इलाका अपनी बनावट में भारतीय फौज के अनुकूल है, हिंदुस्तानी फौज को पहाड़ी इलाकों की जंग में महारत हासिल है.

डोकलाम में भारत और चीन की सेनाएं पिछले लगभग दो महीने से अधिक समय से तैनात हैं

तैयारी भरपूर है...

हिंदुस्तानी फौज की पहली पांत में छह फुट लंबे जाट सैनिक तैनात किए गए हैं. इन सबके पास कैमरा है. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के छोटे सैनिकों को अपनी गर्दन खूब ऊंची ताननी होगी तब जाकर ये सैनिक उन्हें नजर आएंगे. इन सैनिकों को आदेश है कि दुश्मन पर निगाह जमाए रखिए और उनकी गतिविधियों की टोह लेते रहिए. पहली पांत के जवानों में से कुछ को मंदारिन (चीनी) भाषा आती है. साथ ही आसपास की हर आहट की खोज-खबर रखने के लिए इन सैनिकों के कान एकदम सतर्क हैं.

अगर पीपल्स लिबरेशन आर्मी हमले की कोई हरकत करती है तो हिंदुस्तानी फौज की पहली पांत उसके निशाने पर होगी, ये सैनिक उनसे जूझ पड़ेंगे लेकिन पूरी उम्मीद बांधी जा सकती है कि हमले की खबर वे पिछली पांत के अपने साथी सैनिकों को पहुंचा देंगे जो कि जंगी साजो-सामान के साथ मौके पर आगे बढ़ने के इशारे के इंतजार में खड़े हैं.

दूसरी पांत के सैनिकों को चेतावनी दी गई है कि मुस्तैदी में जरा भी ढील नहीं आनी चाहिए और दुश्मन के खेमे से जैसे ही हमले का कोई संकेत मिले, सारे हथियारों के साथ एकबारगी उसपर टूट पड़ना है.

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डोकलाम में धीरज ही कामयाबी का मूलमंत्र है. यहां जो छवि आपके मन में सबसे पहले कौंधती है वह घात लगाकर छुपे बैठे ड्रैगन और पूरे चौकन्नेपन के साथ दम साधकर खड़े बाघ की है.

पानी का घूंट भरना हो, भोजन का निवाला मुंह में रखना हो या फिर चंद घड़ी की झपकी लेनी हो- यहां अपने शिविर में सैनिक सबकुछ बहुत जल्दी-जल्दी करते हैं. इन्हें नींद जब आ जाए उसका उसी दम स्वागत है क्योंकि इससे तनी हुई नसों को कुछ देर का आराम मिलता है.

ज्यादातर हिंदुस्तानी फौज ट्राइ जंक्शन से 10 किलोमीटर की दूरी पर काबिज है. एक पंजाबी सैनिक ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि 'डोकलाम में हमलोग दुश्मन के बिल्कुल करीब हैं. उनके और हमारे बीच बस 250 मीटर का फासला है.'

एक सैनिक ने कहा कि सीमा-विवाद के भड़कने पर सबसे पहले वहां ब्लैककैट प्लाटून की तैनाती हुई. इसके बाद नाथू ला के बेसकैंप से जाट रेजिमेंट की टुकड़ी बुलायी गई. वहां मौजूद एक और पत्रकार ने इस बात की पुष्टी की. उसने कहा कि मैं डोकलाम में भारतीय सैनिकों की तैनाती की जगह तक जा चुका हूं.

भारतीय सेना की तैयारियों के बारे में इस पत्रकार ने लिखा है कि 'नए बंकर बनाये गए हैं. चीनी सैनिकों के हमले को नाकाम करने के लिए जमीनी तैयारी की गई है. रणनीतिक अहमियत की जगहों पर मशीनगन का पूरा जाल बिछा दिया गया है और सैनिक दिन में दो बार जंगी कवायद (ड्रिल) कर रहे हैं.'

चौकस हैं भारतीय फौजी

शायद यही वजह रही होगी जो फ़र्स्टपोस्ट की टीम को नाथू ला में एक खास मुकाम के बाद आगे नहीं जाने दिया गया. डोकलाम को मीडिया की पहुंच से दूर रखा गया है क्योंकि चीन अपने राजकीय नियंत्रण वाली मीडिया के जरिए इस इलाके की खबरों को तोड़-मरोड़कर पेश करने के दूसरे रास्ते तलाश सकता है.

जंगी तैयारी की असली जगह से कई किलोमीटर पहले रोक दिए जाने पर फ़र्स्टपोस्ट ने नाथू ला में सैनिकों से बात की. सैनिकों ने हमें बताया कि जाट रेजिमेंट से शांति बनाए रखने को कहा गया है साथ ही पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की खुद को किसी लत्तर की तरह आगे बढ़ाते जाने की रणनीति के प्रति सतर्क रहने को कहा गया है.

नई दिल्ली का मानना है कि बीजिंग दरअसल सभी देशों के साथ मनोवैज्ञानिक जंग की रीत अपनाता है और फिलहाल मनोवैज्ञानिक युद्ध लड़ने के ख्याल से ही वह अपने मुहावरों की पेशबंदी कर रहा है. लेकिन नई दिल्ली का मानना है कि चीनी मुहावरों की एक नहीं चल रही है, भारत ने अपने जवाब से उन्हें भोथरा कर दिया है.

नाथू ला में तैनात एक सैनिक का कहना था कि 'पीपुल्स लिबरेशन आर्मी डोकलाम में क्लास 4 रोड के विस्तार की कोशिशों से पहले ही तैयारी में जुटी हुई थी.' सैनिक ने यह भी बताया कि भारतीय फौज ने मेकशिफ्ट (बनाओ-हटाओ) किस्म के बंकर बनाए हैं लेकिन चीनी सेना के बनाए बंकर स्थायी किस्म के हैं. इस सैनिक का कहना था, 'लेकिन हम जवाबी हमले के लिए तैयार हैं. हमारी सप्लाई-लाइन बिना किसी बाधा के जारी है और तीन परतों वाला हमारा सुरक्षा घेरा अभेद्य है.'

सेना के एक अधिकारी ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि सितंबर आने के बाद डोकलाम बर्फ से ढंक जाएगा. उसने बताया कि 'बंकर साफ कर दिए गए हैं. बड़ी संभावना है कि सितंबर से अक्तूबर के बीच मौसम यहां खूब सर्द रहे. हर बंकर में सात सैनिक रह सकते हैं.' अनुमान है कि नाथू ला में तकरीबन 1200 बंकर होंगे.

खैर, इस दरम्यान चीन अपने मुहावरों को धार देने में लगा है. बीते 4 अगस्त को चीन का धीरज जवाब दे गया और उसने मांग कर दी कि डोकलाम से भारतीय सेना तुरंत वापस बुली ली जाए.

ऐसा जान पड़ा कि सुषमा स्वराज ने 3 अगस्त को राज्यसभा में जो अमन और शांति की बात की थी, वह सब व्यर्थ साबित हुआ.

नाथू ला धरातल से 14000 फीट की ऊंचाई पर है. ट्राइ-जंक्शन पर कटार के आकार वाली चुंबी घाटी है जहां से ठीक सीध में हमारा सिलीगुड़ी वाला गलियारा नजर आता है. काफी तंग होने के कारण इसे चिकेन नेक (मुर्ग की गर्दन) कहा जाता है.

भूटान डोकलाम को एक विवादित क्षेत्र मानता है और भारत का मानना है कि डोकलाम इलाके में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की सड़क बनाने की कोशिश उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्रत्यक्ष खतरा है. भारत का सुरक्षा-तंत्र चिंतित है कि कहीं चीन पूर्वोत्तर के इलाके से भारत का संपर्क काट देने का खेल तो नहीं रच रहा हो.

एक सैनिक ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि, 'हमें डोकलाम में चीनियों की घुसपैठ को रोकने का आदेश मिला है लेकिन जबतक हम उन्हें सचमुच रोक पाए उसके पहले ही उनलोगों ने लालटन चौकी के हमारे कुछ बंकरों को नष्ट कर दिया था.'

इस सैनिक ने बताया कि जहां दोनों देशों की सेना आमने-सामने डटी हैं वहां से हमारी सेना का बेस कैंप केवल 15 किलोमीटर दूर है.

एक फौजी की समझ

एक सैनिक ने व्हाटस्ऐप संदेशों की पूरी लड़ी दिखाते हुए कहा, 'सिर्फ सीमा पर ही नहीं घर में भी तनाव का माहौल है. हम सीमा पर कायम तनाव से निबटें या घर के तनाव से?'

मनोबल को ऊंचा बनाए रखने के लिए सेना के अधिकारी ट्राइ-जंक्शन पर तैनात सैनिकों को जोश जगाने वाले संदेश देते हैं. सैनिकों को वे पूरे एहतराम से याद दिलाते हैं कि चाहे जो भी कीमत चुकानी पड़े लेकिन निशाना बनाए रखते हुए मुस्तैदी बरकरार रखनी है.

एक फौजी ऑफिसर ने कहा कि 'जब भी सैनिक अपनी ड्यूटी से लौटते हैं, वरिष्ठ अधिकारी उनसे भेंट करने का कोई मौका नहीं चूकते. हमलोग सैनिकों से बात करते हैं और उनकी चिंताओं को दूर करते हैं. अगर हमें सैनिकों में क्रोध, निराशा या बेचैनी के लक्षण दिखाई देते हैं तो हम उन्हें ड्यूटी से हटा लेते हैं. दोनों तरफ से जारी मनोवैज्ञानिक युद्ध की स्थिति सबसे बेहतरीन सैनिक को भी अपने चपेट में ले लेती है. ऐसी तनाव भरी हालत में यह ध्यान रखना बहुत अहम है कि हर सैनिक का मनोबल ऊंचा बना रहे.'

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इस सैन्य अधिकारी ने बताया कि 18 जून को हुई तनातनी के बाद गंगटोक में कायम सेना की एक पूरी कंपनी डोकलाम में तैनात कर दी गई. सेना की एक कंपनी में 3 हजार सैनिक होते हैं. भारत के इस कदम के जवाब में चीन ने भी ऐसा ही किया.

हिंदुस्तानी फौजियों ने सिक्किम के पहाड़ी इलाके में हैलीपैड बनाए हैं. कुपुक और जुलुक नाम के गांव के बाशिन्दों की मदद से लंबी-लंबी झाड़ियों को हटाकर जगह चौरस कर दी गई है. सैनिक स्थानीय लोगों के साथ चाय-पान करते हुए उन्हें अपना दोस्त बना लेते हैं.

नाथू ला

कुपुक गांव के निवासी मंगलजीत राय ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि 'मेरा बेटा सेना में है. इसलिए मुझे पता है कि इन वर्दीधारी लोगों को देशसेवा करते हुए किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इन सैनिकों के कारण हमारी जिंदगी महफूज है.'

मंगलजीत राय का कहना है कि जुलुप गांव के तीन नौजवानों ने सैनिकों के प्रति अपना सम्मान जताने के ख्याल से उन्हें कुछ मुर्गे भेंट किए.

गांव के बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि अगर जंग छिड़ी तो वे सैनिकों के कंधे से कंधा मिलाकर दुश्मन का मुकाबला करेंगे... पूर्व सैनिक केबी राय का कहना था कि जाड़े के दिनों की शुरुआत होने पर गांववाले गंगटोक के बेसकैंप मे चले जाएंगे.

लेकिन, जाट रेजिमेंट के फौजी अपनी जगह पर कायम रहेंगे, वे ट्राइ-जंक्शन तक विस्तृत सीमा-क्षेत्र की रखवाली करेंगे. वे इस बात की निगहबानी करेंगे कि उनके आगे का मंजर क्या करवट लेता है.

(मनोज कुमार फ्रीलांस लेखक हैं, चंडीगढ़ में रहते हैं और जमीनी स्तर से रिपोर्टिंग करने वाले संवाददाताओं के एक अखिल भारतीय नेटवर्क 101Reporters.com के सदस्य हैं.)