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डोकलाम से ग्राउंड रिपोर्ट-2: इस मुल्क की सरहद की निगहबान हैं एक संत की आंखें!

हमारे सैनिकों का विश्वास है कि सीमा पर जान लुटाने वाले उनके साथी अब संत बन चुके हैं

Manoj Kumar

(संपादकीय नोट: भारत और चीन के बीच जारी तनातनी की घट-बढ़ के बीच डोकलाम के जमीनी हालात का जायजा लेती श्रृंखला की यह दूसरी रिपोर्ट है. पिछली रिपोर्ट में आप पढ़ चुके हैं कि दिल्ली और बीजिंग के बीच एक-दूसरे को दिमागी तौर पर मात देने की कोशिशों के बीच भारतीय सेना मौके पर पूरे धीरज और साहस के साथ डटी हुई है.)

पीपल्स लिबरेशन आर्मी हमारी सीमा पर आ धमकी है, वो जंगी कवायद में जुटी है और युद्ध के बोल निकाल रही है. लेकिन अनुभव की कच्ची चीनी सेना के दिमाग में यह सवाल तो कौंधता ही होगा कि वह बाबा हरभजन सिंह का क्या करेगी, क्या चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बाबा हरभजन सिंह के बारे में सोचा है जिनका राज उन ऊंची हिमालयी चोटियों पर चलता है?


भारत के साथ लड़ाई ठानने के मामले में डोकलाम से ज्यादा बुरी जगह चीनी सेना के लिए शायद कोई और नहीं. ट्राइ-जंक्शन सफेद घोड़ों पर सवार प्रेतों की प्रिय जगह है. ये प्रेत पूर्वी हिमालयी इलाके की वास्तविक नियंत्रण रेखा की रखवाली करते हैं. भारतीय सेना जितना यहां अपनी सांसों के दम पर कदम आगे बढ़ाती है उतना ही आस्था की ताकत पर अपने विश्वास के सहारे. पूरब से पश्चिम भारत की सीमा पर शहीद सैनिकों के स्मृति-स्थल बने हैं, उनकी आत्मा सीमा पार दुश्मन की कवायद पर नजर रखती है.

शहीद हुए सैनिकों की ताकत पर हिंदुस्तानी फौज की आस्था की व्याख्या के लिए कोई भी बात नाकाफी है. हमारे सैनिकों का विश्वास है कि सीमा पर जान लुटाने वाले उनके साथी अब बम और मिसाइल की मारक ताकत से ऊपर उठ चुके हैं, वे अब संत बन चुके हैं और उन्हें ऋषियों के समान ही ताकत हासिल है.

सिपाही हरभजन सिंह की जान 1968 में एक ग्लेशियर में डूबने से हुई, तब उनकी उम्र केवल 22 साल थी. लेकिन वो आत्मा के रूप में सेना की नौकरी करते रहे और बर्फ में दफन होने के 38 साल बाद 2006 में औपचारिक तौर पर सेना की नौकरी से रिटायर हुए. बीच की अवधि में हरभजन सिंह को उसी तरह सेना के ऊंचे ओहदों पर तरक्की दी गई जैसा कि भारतीय सेना के बाकी फौजियों के साथ होता है. रिटायरमेंट के समय हरभजन सिंह कैप्टन के ओहदे पर थे.

बीते शनिवार को चीन ने धमकी दी कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय फौज को धूल चटाने के मामले में चीनी सेना पूरी तरह से तैयार है और उसके पास हिंदुस्तानी सेना को मटियामेट कर देने के लिए जरुरत से ज्यादा सैन्य साजो-सामान हैं. लेकिन शायद पीपल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिकों को हाल-फिलहाल उस इकलौते भारतीय फौजी के दर्शन नहीं हुए हैं जो वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हफ्ते के सातों दिन और चौबीसों घंटे अपनी ड्यूटी निभाते रहता है.

हो सकता है चीन के ग्लोबल टाइम्स या फिर वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अभी बाबा हरभजन सिंह की प्रचलित किवदंती नहीं सुनी. अगर सचमुच ऐसा है तो फिर हिंदुस्तानी फौजी शिविर में स्थिति इसके एकदम उलट है.

भारतीय सेना में जनरल से लेकर सिपाही तक के ओहदे पर मौजूद हर कोई अपने दिल पर हाथ रखकर आपसे यही कहता हुआ मिलेगा कि कैप्टन (रिटायर्ड) बाबा हरभजन सिंह ड्यूटी पर तैनात हैं. पीपल्स लिबरेशन आर्मी हिन्दुस्तानी फौज को धूल चटाने की कवायद करती रहे. लेकिन वह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती.

नाथू ला में बाबा हरभजन की याद में दो स्मृति-स्थल बने हैं. इनमें से एक है ओल्ड बाबा मंदिर जो ओल्ड सिल्क रोड पर बना है. दूसरा न्यू बाबा मंदिर कहलाता है. यह नाथू ला में ही है लेकिन डोकलाम से नजदीक है. नए और पुराने दोनों मंदिरों में सालभर हर दिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. श्रद्धालुओं की हिफाजत के लिए हफ्ते में हर दिन चौबीसों घंटे फौजी तैनात रहते हैं. फौजियों को अपने शहीद साथियों की रुहानी ताकत पर पूरा यकीन है.

क्या कहती हैं लोककथाएं?

सेना के रिकॉर्ड के मुताबिक कपूरथला (पंजाब) के निवासी हरभजन सिंह 1956 में पंजाब रेजिमेंट में शामिल हुए. कुछ समय बाद उनकी तैनाती नाथू ला में हुई. 1968 में एक दिन वे खच्चर की एक रेहड़ के साथ पहाड़ी रास्ते पर जा रहे थे. ऐसे में वे अपने खच्चर के साथ एक ग्लेशियर में गिर गए (कुछ लोग कहते हैं कि उफनती नदी में गिरे). उन्हें खोजा गया लेकिन वे नहीं मिले. सेना के किसी जवान ने यह खबर भी फैला दी कि हरभजन सिंह गायब हो गए हैं.

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लेकिन हरभजन सिंह से जुड़ी लोककथा में सामने आता है कि वे अपने एक फौजी दोस्त प्रीतम सिंह के सपने में आए और बताया कि मेरा शव फलां जगह मिलेगा. प्रीतम को सपने में मृत सैनिक हरभजन सिंह ने जो संदेश दिया था उस पर भारतीय सेना ने अमल किया और फिर एक चमत्कार हुआ. स्वर्गीय सैनिक हरभजन सिंह का शव ठीक उसी स्थान पर मिला जहां सपने में निर्देश हुआ था!

इसके बाद फिर सपना आया, स्वर्गीय सैनिक हरभजन सिंह ने सेना को एक दफे फिर बताया कि आगे क्या करना है. सपने में निर्देश हुआ कि शव का अंतिम संस्कार नाथू ला में ही किया जाए और इस जगह पर उनकी याद में एक मंदिर बनाया जाए. सैनिक इस मंदिर की हिफाजत में हमेशा तैनात रहें क्योंकि हरभजन सिंह की आत्मा भी सीमा पर निगरानी की अपनी ड्यूटी निभाती रहेगी!

मुकामी तौर पर किवदंती चलती है कि बाबा हरभजन सिंह इलाके के ग्रामीणों और भारतीय सैनिकों को शैतानी आत्माओं और पीपल्स लिबरेशन आर्मी के छल-छद्म से बचाते हैं. अपनी ड्यूटी निभाते हुए जब भी उनकी नजर किसी सोते हुए सैनिक पर पड़ती है तो वे उसे थप्पड़ मारकर जगा देते हैं!

आज जब पीपल्स लिबरेशन आर्मी रोज एक धमकी जारी कर रही है तो यह लड़ाई विशालकाय ‘चीनी ड्रैगन’ और ‘भारतीय संत-प्रहरी’ के बीच चल रही जंग में तब्दील हो चुकी ह. सोचिए कि इस लड़ाई में दरअसल हो क्या रहा है. भारत का संत-प्रहरी चीनी सैनिकों पर भारी पड़ रहा है!

बाबा भारतीय सैनिकों के सपने में आते हैं और चीनी सैनिकों के भी. लेकिन भारतीय सैनिकों के सपने में बाबा आशीर्वाद देने वाले संत के रूप में आते हैं जबकि चीनी सैनिकों के सपने में उनका आना बदला लेने पर उतारु किसी फरिश्ते के रुप में होता है जो अपने सफेद खच्चर पर सवार है और बड़ी तेजी से उनकी तरफ झपटते हुए आ रहा है. यहां तैनात सैनिकों के मन में यही विश्वास बैठा है.

अटूट आस्था

इलाके में तैनात भारतीय सेना के सभी जवान बाबा के मंदिर में मत्था टेकने जाते हैं, सिक्किम बेस पर अपनी ड्यूटी के निर्वाह के क्रम में उनसे आशीर्वाद मांगते हैं. माना जाता है कि बाबा हरभजन सिंह जेलेपा दर्रे से नाथू ला दर्रे तक भारतीय सीमा-क्षेत्र की रक्षा करते हैं. माना जाता है कि वे उस वक्त भी निगरानी का अपना काम कर रहे होते हैं जब बर्फीले इलाकों में पाए जाने वाले तेंदुए तक सो रहे होते हैं और इलाके के याक ऊंघ रहे होते हैं.

कोई भी टुकड़ी बाबा के आगे मत्था टेककर ही आगे बढ़ती हैं.

न्यू बाबा मंदिर उस डोकलाम से चार किलोमीटर की दूरी पर है जिस पर आज सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. इस मंदिर में सैनिकों और आम जनता का श्रद्धालु के रूप में आना पूरे दिन भर जारी रहता है, श्रद्धालुओं की तादाद में कोई कमी नहीं आई है. श्रद्धालु प्रार्थना करने और मन्नत मांगने आते हैं. कैप्टन हरभजन सिंह की सेवा में नंगे पैर तैनात सैनिक हर श्रद्धालु को प्रसाद के रुप में सूखे मेवे तथा हलवा देते हैं.

लोगों का विश्वास है कि बाबा संकट-हरण हैं. श्रद्धालु मंदिर में पानी की बोतल लेकर पहुंचते हैं और बोतल को वहां हफ्ते भर के लिए छोड़ देते हैं. वे दुबारा जब इस बोतल को उठाते हैं तो उस घड़ी तक बोतल का पानी तमाम रोगों की दवा में तब्दील हो चुका होता है. स्थानीय स्तर पर मान्यता यही है. मंदिर की रखवाली पर तैनात सैनिकों ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि इलाके में तैनात सेना की हर टुकड़ी बाबा से आशीर्वाद मांगती है.

बाबा के मंदिर में केंद्रीय कक्ष में पीतल की बनी उनकी एक आवक्ष प्रतिमा रखी है. 1968 में मारे गए नौजवान सैनिकों की बड़ी आकार की फ्रेम मढ़ी तस्वीरें भी केंद्रीय कक्ष में रखी हैं. पूरे दिन यहां भजन-कीर्तन चलता है. जो दिनचर्या सैनिक की होती है, माना जाता है कि वह सारी दिनचर्या बाबा भी निभाते हैं. मंदिर के अंदर बाबा के लिए एक विशेष बंकर बना है. उसमें उनका बिछावन लगाया जाता है. उनके कपड़े, जूते और अन्य महत्वपूर्ण सामान भी मंदिर के अंदर रखे गए हैं.

बाबा का बिछावन.

मंदिर में वर्दीधारी सैनिक तैनात किए गए हैं. वे बाबा की बिछावन लगाते हैं, उनके कपड़े धोते हैं और उनके जूतों पर पॉलिश करते हैं. कवायद की एक रस्म यह भी है कि दिन के एक खास वक्त में बाबा की तस्वीर केंद्रीय कक्ष से बाबा के बेडरुम में लाई जाती है. मंदिर में ड्यूटी पर तैनात सैनिक हमेशा नंगे पांव रहते हैं. वे कसम खाने के अंदाज में कहते हैं कि बाबा वास्तविक नियंत्रण रेखा की पेट्रोलिंग का काम अंजाम देकर हर रात अपनी बिछावन पर सोते हैं. वे सबूत के तौर पर बताते हैं कि देखिए बिछावन की चादर पर सिलवटें पड़ी हैं और स्नो-बूट के निशान दिख रहे हैं.

बाबा अपनी रिटायरमेंट की उम्र यानी साठ साल तक हर साल एक दफे छुट्टी लेते थे और इस छुट्टी में अपने घर कपूरथला जाते थे जहां उनकी मां रहती थीं. इस समय बाबा के तमाम सामान को एक बक्से में रखा जाता था और बाबा के कमांड में रहने वाले सैनिक बक्से को उनके साथ लेकर जाते थे. छुट्टी बीत जाने के बाद बाबा उसी ट्रेन से नाथू ला लौट आते थे.

पीपल्स लिबरेशन आर्मी को भी है यकीन

सिख रेजिमेंट के हवलदार जसविंदर सिंह मंदिर में नियमित आते हैं. उन्होंने बताया कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी भी बाबा हरभजन सिंह के बारे में जानती है. यह बात उनसे खुद चीनी सैनिकों ने बताई थी. पीपल्स लिबरेशन आर्मी बाबा हरभजन सिंह की रहस्य-कथा और किंवदंती को लेकर जिज्ञासु है.

जसविंदर सिंह ने कहा उनके सवालों से साफ जाहिर था कि वे बाबा हरभजन सिंह को लेकर पूरे विस्मय में हैं. वे इस बात को जानते हैं कि बाबा चौबीसों घंटे उनकी गतिविधियों की निगरानी करने के लिए सीमा पर गश्त करते हैं.

(रिटायर्ड) कैप्टन हरभजन सिंह के प्रति चीनियों के मन में इतनी श्रद्धा है कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी और भारतीय फौज के बीच फ्लैग मीटिंग हुई तो उन लोगों ने बाबा के लिए वहां एक कुर्सी खाली रखी थी.

एक कैप्टन ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि बाबा का मंदिर ओल्ड सिल्क रोड पर बना है. इसी सड़क पर डोकलाम भी है जिसे चीन वन बेल्ट वन रोड की अपनी परियोजना में लाना चाहता है. कैप्टन ने कहा कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी के जवान बाबा के बारे में बातें करते हुए कभी ओछी जबान का इस्तेमाल नहीं करते. उन्हें भी खबर है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर एक पवित्र आत्मा रखवाली कर रही है और सबकुछ उसकी नजरों में है.

सैनिकों का विश्वास है कि कैप्टन (रिटायर्ड) हरभजन सिंह की आत्मा पीपल्स लिबरेशन आर्मी के हमले की सूरत में उन्हें तीन दिन पहले ही इसके बारे में आगाह कर देगी. डोकलाम में तनातनी जून महीने के बीच के दिनों में शुरु हुई थी. लेकिन तब से लेकर अबतक बाबा की तरफ से कोई चेतावनी नहीं आई है.

इसलिए, चिंता की कोई बात नहीं.