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आपको मालूम है मंदसौर के किसानों का 1943 के वायसराय से नाता?

अंग्रेज वायसराय ने तब अनाज के दाम तय करने की कोशिश की थी तो एक भारतीय नेता ने किया था विरोध

Sompal Shastri

मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन ने किसानों और उनकी समस्याओं के ऊपर से फिर से धूल झाड़ दी है. मंदसौर में छह किसान मारे जा चुके हैं पूरा इलाका जल रहा है. यह वो इलाका है जो खेती किसानी के लिहाज से मध्य प्रदेश  में सबसे समृद्ध रहा है. मंदसौर दरअसल मालवा अंचल का एक इलाका है, वही मालवा जिसके बारे में कहावत है  'जहां पग पग रोटी डग डग नीर'.

मैं मध्य प्रदेश में नीति आयोग का उपाध्यक्ष रहा हूँ और इस प्रदेश के किसानों और उनकी समस्याओं को अच्छे से पहचानता हूं.  ये किसी भी मामले में देश के अन्य जगहों के किसानों की समस्याओं से अलग नहीं हैं.


आज अखबारों, टीवी चैनलों, वेबसाइटों पर लोग मंदसौर के किसानों के हालत और उनके गुस्से के कारणों पर बात कर रहे हैं. कहीं राजनीति की बात हो रही है तो कहीं षड्यंत्र की, लेकिन मुझे लगता है कोई इतिहास नहीं देख रहा जहां इस समस्या की जड़ है.

बात 1943 की है- लॉर्ड आर्चीबाल्ड वेवल भारत के वायसराय थे और साथ ही दूसरे विश्व युद्ध में अलाइड फोर्सेज के एक कमांडर थे. द्वितीय विश्व युद्ध अपने चरम पर था. ऐसे हालात में उन्होंने भारत के तत्कालीन 15 सूबों के मुख्यमंत्रियों की एक बैठक बुलाई.

लॉर्ड वेवल को बैठक में पहुंचने में देर हो गई. उनके सचिव जो बैठक में समय से मौजूद थे उन्होंने वहां मौजूद तमाम लोगों को बताया कि ब्रितानी सरकार चाहती है कि देश में गेहूं के भाव 6 रुपए मन के हिसाब से तय कर दिए जाएं. एक मन में करीब 37 किलो होते हैं.

ये वो काल था जब देश में अनाज की भारी कमी थी. अकेले बंगाल में अनाज के न होने से करीब 20 लाख लोग मारे गए थे और इससे कहीं ज्यादा अपने घरों से पलायन करने को मजबूर हुए थे.

वायसराय के सामने जब अड़ गया एक भारतीय नेता

तभी लॉर्ड वेवल आ गए और उन्होंने मौजूद लोगों को बोला कि ऐसा इसलिए जरूरी है कि युद्ध के चलते ब्रितानी सरकार अनाज का आयात नहीं कर सकती और देश में गरीब लोगों को सस्ता अनाज मिलता रहे. वायसराय ने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि आप में से किसी को इस प्रस्ताव पर कोई आपत्ति है.' मेजें थपथपा दी गईं, लगा प्रस्ताव सर्वसम्मति पारित हो गया. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

हर राज्य से उनके मुख्यमंत्री आए थे लेकिन पंजाब से वहां के कृषि मंत्री सर चौधरी छोटू राम आए थे. छोटू राम खड़े हुए और बोले 'मुझे नहीं लगता कि पंजाब के लिए इस बात को मानने का कोई कारण है.' उस जमाने के पंजाब में आज के पकिस्तान का पंजाब, भारत का पंजाब, आज का हरियाणा और कुछ हिस्सा आज के हिमाचल का भी शामिल था.

लॉर्ड वेवल ने पूछा, 'आप अकेले अड़ंगा लगा रहे हैं. बाकी सभी राज्य राजी हैं आपको क्या समस्या है?'

छोटूराम बोले, 'बाकि राज्यों में तो गेंहू की कमी बनी रहती है पंजाब अकेला ऐसा राज्य है जो गेहूं बेचता है.'

लॉर्ड वेवल नाराज हुए और बोले, 'मेरे पास बहस करने का टाइम नहीं है.'

छोटूराम पलट कर बोले, 'खाली तो मैं भी नहीं हूं'.' इतना कह कर सर छोटूराम उठे और गाड़ी में बैठ कर सीधे पंजाब निकल गए.

लॉर्ड वेवल बेहद नाराज हुए उन्होंने पंजाब के तत्कालीन गवर्नर को खत लिख कर छोटूराम को मंत्रीपद से हटाने को कहा.

उन्होंने सर छोटूराम को बगावती तेवरों वाला करार दिया. पंजाब के गवर्नर ने लॉर्ड वेवेल को समझाया, 'छोटूराम गुस्से वाले जरूर हैं लेकिन वो बिना सोचे समझे कोई बात नहीं करते.'

पंजाब के गवर्नर ने समझाया, 'पंजाब से ब्रितानी सेना के लिए सबसे ज्यादा भर्तियां होती हैं और भर्ती होने वाले लोग ज्यादातर किसानों के परिवारों से ही आते हैं. ऐसे में पंजाब में गेहूं के भावों को बांध देना गलत होगा.'

लॉर्ड वेवल ने आखिरकार चौधरी छोटूराम की बात मानी और अकेले पंजाब को यह छूट दी गई कि वहां गेहूं 11 रुपए मन तक खरीदा जा सकेगा.

गांधी की वो भविष्यवाणी जो सच साबित हुई

इसी मूल्य निर्धारण पर जब कुछ दिन बाद किसी पत्रकार ने वर्धा में महात्मा गांधी से पूछा कि वो क्या सोचते हैं तो उन्होंने कहा कि हालात की जिम्मेदार ब्रितानी सरकार है.

महात्मा गांधी ने कहा कि ब्रितानी सरकार ने पहले तो देश भर में खाद्यान्न की जगह नकदी फसलें लगना शुरू कर दीं जैसे नील, पटसन, कपास और रबर. उसके बाद किसानों की कमर तोड़ने के लिए वो ऐसा कर रहे हैं.

आगे गांधी ने जो कहा वो आज सही हो चुका है.

गांधी बोले, 'जल्द ही हम आजाद होंगे और मैं उम्मीद करता हूं कि तब ऐसा नहीं होगा परंतु अगर मूल्य नियंत्रण लागू हुआ तो प्रशासन और शासन में इतना भ्रष्टाचार होगा कि काबू नहीं आएगा.'

आज हम आजाद हैं, किसानों की फसलों का मूल्य निर्धारण आज भी हो रहा है और कृषि मंडियों से लेकर वितरण प्रणाली तक जो भ्रष्टाचार है उसका तो कहना ही क्या.

अंग्रेजों की नीति के पीछे था क्या?

अंग्रेजों की कृषि नीति इस तरह की इसलिए थी क्योंकि वो यह चाहते थे कि देश में शहरों में रहने वालों को सस्ता खाना मिले और मिल-फैक्ट्रियों के मालिकों को कम मजदूरी देनी पड़े.

अनाज के दामों को गिराए रखने का दूसरा कारण यह था कि उस वक्त देश में जितने भी उद्योग थे उनमें से अधिकतर कृषि आधारित थे. चाहे वो चीनी मिलें हों, या जूट मिलें और आटे की मिलें.

आज भी सरकारें चाहती हैं कि शहरों में रहने वालों को सस्ता अनाज मिले और इसलिए किसान के उत्पाद की कीमतों को बांध कर रखा जाता है. सरकारें अनाज से झल्ला जाती हैं तो कहती हैं नकदी फसलें, सब्जियां लगाओ, किसान जब लगाता है तो सरकारों के पास न सहेजने की जगह है न खरीदने का हौसला न इच्छाशक्ति.

अंग्रेजों की नीतियां ऐसी हों समझ में आता है पर आजाद भारत की सरकारें इस तरह से करें यह अन्याय है और आज मंदसौर के किसान उसी अन्याय के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं.

(लेखक भारत के पूर्व कृषि मंत्री हैं)