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ह्यूमन लाइब्रेरी: अकेले हैं! किराए पर किताब नहीं इनसान को पढ़िए

ह्यूमन लाइब्रेरी में आप अपनी पसंद से किसी शख्स को आधे घंटे के लिए किराए पर लेकर उससे बातचीत कर सकते हैं

Pratima Sharma

कहते हैं कुछ लोग अपने अनुभवों से सीखते हैं और कुछ दूसरों के अनुभवों से. ऐसे लोग किस्मत वाले होते हैं, जो दूसरे की गलतियों से सबक ले लेते हैं. भागदौड़ की इस दुनिया में लोगों के पास सबकुछ है लेकिन एक दूसरे से बात करने के लिए वक्त नहीं है. सब अपनी धुन में लगे हैं.

ऐसे में यह मुमकिन ही नहीं कि कोई किसी से अपने अनुभव बांटे या कोई दूसरों की बातें गंभीरता से सुने. मन की मन में रखने और एक दूसरे से अपनी बातें नहीं कह पाने के कारण लोगों में अवसाद की जड़ें गहरी हो रही हैं. महानगरों के लिए यह समस्या आम हो गई है.


ह्यूमन लाइब्रेरी आजमाइए!

अकेलेपन और अवसाद की इसी समस्या से निपटने के लिए 18 जून को दिल्ली में ‘ह्यूमन लाइब्रेरी’ की शुरुआत होगी. यह एक अनोखी लाइब्रेरी है. इसमें आप 30 मिनट के लिए किसी शख्स को किराए पर ले सकते हैं. इस आधे घंटे में आप उस शख्स के रियल लाइफ अनुभवों को जान और समझ सकते हैं.

आपके मन में जो भी सवाल आएं आप उससे पूछ सकते हैं, बातें कर सकते हैं. वह शख्स किसी चलती-फिरती किताब की तरह होगा. अगर आपके पास भी दिलचस्प अनुभव और कहानियां हैं तो आप भी ‘चलते-फिरते किताब’ हो सकते हैं.

इंदौर, मुंबई, हैदराबाद के बाद दिल्ली चौथा शहर है, जहां यह दिलचस्प कॉनसेप्ट चल रहा है. देश में सबसे पहले ‘ह्यूमन लाइब्रेरी’ की शुरुआत 2016 में आईआईएम इंदौर में हुई थी.

तेजी से बढ़ रहा है अवसाद

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, 5 करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं. ‘डिप्रेशन एंड अदर कॉमन मेंटल डिस्ऑर्डर-ग्लोबल हेल्थ एस्टिमेट्स’ के मुताबिक, 2015 में दुनिया भर में होने वाली दो तिहाई से ज्यादा आत्महत्याओं के मामले भारत के निचले और मध्यम तबके के हैं.

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनिया भर में करीब 32.2 करोड़ लोग डिप्रेशन में हैं. इनमें से करीब आधे साउथ ईस्ट एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में हैं. इस लिहाज से देखें तो इस आबादी का बड़ा हिस्सा भारत और चीन में है.

भारत में अवसाद का दायरा तेजी से बढ़ रहा है. खराब रिजल्ट, नौकरी में परेशानी या निजी रिश्तों में नाकामी की वजह से आए दिन आत्महत्याएं होती रहती हैं.

एक बेहतरीन कोशिश

दुनिया के लिए भी अवसाद बड़ी समस्या बन चुकी है. इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए सबसे पहले 2000 में डेनमार्क के कोपेनहेगन में एक ह्यूमन लाइब्रेरी विकसित की है. इसकी शुरुआत रॉनी अबरजेल ने की थी. अब तक दुनिया भर के 80 देशों में ह्यूमन लाइब्रेरी मूवमेंट बढ़ चुका है.

दिल्ली में इसकी जिम्मेदारी नेहा सिंह की है. इसमें ‘ह्यूमन बुक्स’ को 11 कैटेगरी में बांटा गया है. इसमें ड्रग्स के नशे से उबरने वाले लोग भी हैं. कैंसर सरवाइवर, अकेले ट्रैवल करने वाली महिलाएं, चाय बेचकर लेखक बनने वाले लोग, इस तरह की अलग-अलग कैटेगरी है. इस मुहिम का मकसद समाज की घिसीपिटी परंपराओं को तोड़कर लोगों को कुछ नया करने के लिए प्रोत्साहित करना.