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क्या आप जानते हैं राष्ट्रपति प्रणब को 'पोल्टू' क्यों कहा जाता था?

नामों के पीछे एक कहानी होती है और उनका एक अर्थ होता है

Bhasha

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जब तीसरी या चौथी कक्षा में थे तो बारिश वाले दिनों में वे अपने कपड़ों को कागज में लपेटकर बगल में रखते और पश्चिम बंगाल में अपने घर के खेतों से होते हुए नंगे पैर स्कूल जाते. स्कूल के इस लड़के के रंग ढंग मार्चिंग पलाटून (बंगाली में ‘पोल्टन') की तरह होने के कारण उन्हें प्यार से ‘पोल्टू’ बुलाया जाने लगा.

पत्रकार और लंबे समय से मुखर्जी के दोस्त रहे जयंत घोषाल ने पुरानी बातों को याद करते हुए कहा, ‘उनके पिता और बड़ी बहन अन्नपूर्णा देवी उन्हें पोल्टू बुलाने लगी.’ घोषाल वर्ष 1985 से मुखर्जी को जानते हैं. देश के 13वें राष्ट्रपति मुखर्जी का कार्यकाल इस महीने समाप्त हो रहा है.


अब जब देश के प्रथम नागरिक सार्वजनिक जीवन से विदाई ले रहे है तो स्कूल के दिनों की उनकी यादें धुंधली हो सकती है लेकिन पोल्टू की कहानी ऐसी है जो देशभर के कई परिवारों की अपनी कहानी की तरह होगी.

किसी व्यक्ति का घर का नाम होना दुनियाभर में आम बात है लेकिन भारतीयों का घर के नाम के प्रति विशेष जुड़ाव है. खास तौर से बंगालियों को अपने घर का नाम पसंद होता है.

उदाहरण के लिए रबिंद्रनाथ टैगोर को प्यार से रोबी, सत्यजीत रे को माणिक या माणिक दा जबकि बंगाली सुपरस्टार प्रसनजीत चटर्जी को बुम्बा बुलाया जाता था. पश्चिम बंगाल के दिवंगत मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे को मनु बुलाया जाता था.

घर का नाम या प्यार से बुलाए जाने वाले नाम अक्सर सहज बोले जाने वाले या मजेदार होते है जो किसी घटना, स्थान या पसंदीदा चीज से जुड़े होते हैं.

नाम की कहानी

फोर्टिस हेल्थकेयर में मेंटल हेल्थ प्रमुख कामना छिब्बर ने कहा, ‘घर का नाम प्यार को दर्शाता है. घर का नाम रखना लोगों पर निर्भर करता है क्योंकि घर का नाम रखने के पीछे कई वजह होती है.’ कई नामों के पीछे एक पूरी कहानी होती है.

जैसे कि बॉलीवुड अभिनेत्री करिश्मा कपूर को उनके दोस्त, परिवार वाले लोलो बुलाते है क्योंकि उनकी मां की पसंदीदा इतालवी स्टार का नाम गिना लेलोब्रिगिडा है.

उनके चाचा ऋषि कपूर का घर का नाम चिंटू और इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है. उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया था कि उनके भाई रणधीर ने स्कूल में एक कविता पढ़ी थी ‘छोटे-से चिंटू मिया, लंबी-सी पूंछ...जहां जाए चिंटू मिया, वहां...’ और यही से उनका नाम चिंटू पड़ गया.

पूर्व क्रिकेटर राहुल द्रविड़ को उनके दोस्त और सहकर्मी प्यार से ‘जैमी’ बुलाते हैं क्योंकि उनके पिता किसान जैम फैक्टरी में काम करते थे.

घर का नाम हमेशा प्यारा नहीं होता बल्कि अक्सर वह क्रूर भी होता है.

समाजशास्त्री संजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘हम लोगों का नाम उनकी शारीरिक कमजोरियों पर भी रखते हैं जो वे लोग नहीं चाहते.’ जैसे कई लोगों का स्कूल में नाम ‘हड्डी’ या ‘बीड़ी’ रख दिया जाता है क्योंकि वे बहुत पतले होते हैं.

श्रीवास्तव ने कहा कि भारतीयों के बीच ‘पश्चिमी’ नामों की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है. खास तौर से उत्तर भारत में तकरीबन हर घर में किसी का नाम बॉबी या डॉली होता है.

शेक्सपीयर के कथन ‘नाम में क्या रखा है’ से वास्ता ना रखते हुए नामों के पीछे एक कहानी होती है और उनका एक अर्थ होता है.