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डूसू चुनाव: वोट डालकर भी हर साल सुनते हैं चिंकी, नेपाली, नूडल्स

चुनावी भाषणों में कैंपस की कमियों पर बातें होती हैं लेकिन नॉर्थ ईस्ट के छात्रों के मुद्दे नदारद रहते हैं

FP Staff

डूसू इलेक्शन में छात्र-छात्राएं अपनी समस्याओं से निपटने के लिए छात्र संघ का चुनाव करते हैं. लेकिन इसी यूनिवर्सिटी का एक तबका ऐसा भी है जो चुपचाप हर साल वोट डालने के बावजूद भेदभाव झेलता है.

डीयू में पढ़ने वाले नॉर्थ ईस्ट के छात्र-छात्राओं का यही हाल है. इन्हें विदेशी, चाइनीज, नूडल्स, चिंकी और नेपाली के नामों से पुकारा जाता है. इनका कहना है कि वो छात्र संघ के लिए मतदान कर किसी भी दल की जीत में भूमिका ज़रूर निभाते हैं लेकिन इन चुने हुए नेताओं का कोई फायदा नहीं मिलता.


डीयू की छात्रा जाहन्वी गोगोई कहती हैं कि उन्होंने इन चुनावों में वोट किया है. वो पिछले कई साल से कैंडिडेट को देखकर वोट देती हैं. लेकिन यही लोग जीतने के बाद कैंपस में भी दिखाई नहीं देते, आवाज उठाना तो दूर की बात है.

मिरांडा हाउस कॉलेज से पढ़ाई कर रही राजश्री राजकुमारी ने बताया कि वो भी वोट डालती हैं, लेकिन इसे एक सालाना कार्यक्रम ही मानती हैं, क्योंकि इन चुनावों और छात्रसंघ बनने से कॉलेजों में कुछ भी बेहतर नहीं होता.

छात्रा लिम कहती हैं कि नॉर्थ ईस्ट के स्टूडेंट्स को कभी लीडरशिप का मौका नहीं मिलता. न ही उन्हें उम्मीदवार बनाया जाता है. चुनावी भाषणों में कैंपस की कमियों पर बातें होती हैं लेकिन नॉर्थ ईस्ट वालों के मुद्दे नदारद रहते हैं.

जबकि सुष्मिता ने बताया कि उन्हें कई बार कॉलेज के बाहर अजीब और बेहूदा फब्तियां सुनने को मिलीं, उन्होंने मौजूदा छात्र संघ के नेताओं को भी बताया लेकिन हुआ कुछ नहीं.

टिंकल कहती हैं कि कोई नहीं सुनता. यहां तक कि उन्हें सभी उम्मीदवारों की भी जानकारी नहीं है. क्लासमेट्स से जानकारी लेकर जो ठीक लगता है उसे ही वोट दे आती हैं.

वजेंसी और शेंपिलि भी नॉर्थ ईस्ट से हैं. उन्होंने कहा कि इन चुनावों से कुछ खास असर नही पड़ता. समस्याएं भी खत्म नहीं होती. माहौल भी नहीं बदलता. हालांं‍कि वे फिर भी वोट डालती हैं. इन छात्राओं का कहना है कि छात्रसंघ की ओर से बदलाव किए जाने चाहिए.

वे कहती हैं कि नॉर्थ ईस्‍ट के छात्रों को भी इन चुनावों में उम्‍मीदवार बनने का मौका मिलना चाहिए. ताकि इनकी समस्‍याएं भी सामने आ सकें.

(साभार: न्यूज़ 18 हिंदी)