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बेटियों को लेकर हम अब भी कितने पिछड़े हैं, उसका नमूना हैं ये दो घटनाएं

बेटियों को लेकर हमारा समाज अब भी पूर्वाग्रह और संकरे सोच से ग्रस्त है. लोगों की मानसिकता अब भी बेटा ही अच्छा पर अटकी हुई है

FP Staff

उत्तर प्रदेश के एक गांव में एक शख्स ने अपनी बड़ी बेटी को इसलिए छत से नीचे फेंक दिया क्योंकि उसकी पत्नी ने बेटे की जगह दूसरी बेटी को जन्म दे दिया था.

हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक, पुलिस ने बताया कि गुरुवार को उत्तर प्रदेश के पढ़ौली गांव के एक शख्स अरविंद गंगवार ने ने अपनी 18 महीने की बेटी को गुस्से में छत से फेंक दिया क्योंकि उसे बेटा चाहिए था और उसकी गर्भवती पत्नी ने दूसरी बेटी को जन्म दिया.


काव्या नाम की बच्ची को इस घटना में गंभीर चोटें आई हैं. बच्ची को अस्पताल में भर्ती कराया गया है. पुलिस ने बताया कि जिस वक्त अरविंद ने अपनी बेटी को छत से फेंका, उस वक्त वो नशे में था.

गांव वालों ने बताया कि पांच दिन पहले अरविंद की बीवी को बेटी पैदा हुई थी लेकिन उसे बेटा चाहिए था, जिसके बाद से उसके घर में बहुत तनाव था और आखिर में उसने ऐसा कदम उठाया. पुलिस ने उसके खिलाफ अटेम्प्ट टू मर्डर के चार्ज में केस दर्ज कर लिया है.

गुरुवार को ही पूर्व राज्यसभा सांसद और मोहन बागान क्लब के अध्यक्ष स्वप्न साधन बोस ने अपने उस सेक्सिस्ट टिप्पणी पर मांगी माफी, जो उन्होंने अपने क्लब के आठ साल बाद कोलकाता फुटबॉल लीग जीतने की खुशी में कही थी.

डीएनए की रिपोर्ट के अनुसार, बोस ने बुधवार को अपनी टीम की जीत की खुशी पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि 'सात सालों से बेटी पैदा हो रही थी, आठवें साल में बेटा पैदा हुआ है. अगर आपके साथ ऐसा हो, तो आपको कैसा लगेगा? मुझे वैसी ही खुशी हो रही है.'

सोशल मीडिया पर बोस को उनके इस असंवेदनशील बयान के लिए खूब आलोचना झेलनी पड़ी, जिसके बाद उन्होंने माफी मांग ली है. एक लिखित बयान जारी कर बोस ने कहा, 'इतने सालों बाद मिली जीत से मैं काफी भावुक था. उसी भावुकता में मैंने ये बयान दे दिया. मैं ये बात नहीं कहना चाहता था. मैं ऐसे किसी दिन जब मैं बहुत खुश था, उस दिन किसी को आहत नहीं करना चाहता था. वो लोग आहत हुए हैं, जिन्हें मैं प्यार करता हूं. मैं दुखी हूं. मैं उन लोगों से माफी मांगता हूं.'

उन्होंने इस बयान में कहा कि 'मेरे घर में भी बेटियां हैं, बहुएं हैं और पोतियां हैं. मुझे बेटियों की अहमियत पता है. मैं अपना बयान वापस लेता हूं.'

ये दोनों ही घटनाएं इस बात का सबूत हैं कि चाहे निम्नमध्यवर्गीय परिवार हो या अभिजात्य वर्ग, कहीं भी बेटियों की स्थिति बहुत सम्मानजनक नहीं है. बेटियों को लेकर हमारा समाज अब भी पूर्वाग्रह और संकरे सोच से ग्रस्त है. लोगों की मानसिकता अब भी बेटा ही अच्छा पर अटकी हुई है.