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‘इंसान’ के ‘भगवान’ बनने के बीच रेप और हत्या का डरावना सच

गुनाह का एहसास ही इंसान को उसकी सबसे बड़ी भूल का सच बताता है कि वो खुदा नहीं हैं और न हो सकता है.

Kinshuk Praval

साध्वी के साथ रेप के मामले में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम दोषी करार दिए गए हैं. 28 अगस्त को उनकी सजा का ऐलान होगा. डेरा प्रमुख को लेकर पहले भी कई विवाद हो चुके हैं.

डेरा प्रमुख पर हत्या, बलात्कार और जबरन नसबंदी कराने जैसे कई मामले विचाराधीन हैं. लेकिन डेरा प्रमुख पर कानूनी शिकंजा कसा साध्वी की गुमनाम चिट्टी के बाद.


गुमनाम चिट्ठी ने छेड़ी इंसाफ की लड़ाई

मई 2002 में डेरा सच्चा सौदा की एक एक साध्वी ने डेरा प्रमुख पर यौन शोषण का आरोप लगाया. साध्वी ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी भेजी और इसकी एक कॉपी पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भी भेजी.

आरोप के दो महीने बाद ही 10 जुलाई, 2002 को डेरा सच्चा सौदा की प्रबंधन समिति के सदस्य रहे कुरुक्षेत्र के रणजीत सिंह की हत्या हो गई. इस हत्या का आरोप डेरा सच्चा सौदा पर लगा. माना गया कि डेरा सच्चा सौदा के प्रबंधकों को शक था कि रणजीत ने ही अपनी बहन से गुमनाम चिट्ठी लिखवाकर डेरा प्रमुख के खिलाफ रेप की शिकायत की.

लेकिन डेरा प्रमुख के रसूख और धर्मगुरु के प्रति अनुयायियों की भक्ति के चलते ये मामला पंद्रह साल बाद अंजाम तक पहुंच सका.

डेरा प्रमुख की पोशाक से क्यों भड़के सिख?

गुरमीत राम रहीम ने साल 1990 में डेरा की गद्दी संभाली थी. डेरा की स्थापना साल 1948 में शाह मस्ताना ने की थई. लेकिन गुरमीत राम रहीम के डेरा प्रमुख  बनने के बाद विवाद बढ़ते चले गए. डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह राम रहीम की वेशभूषा पर विवाद इतना भड़का कि सिखों और डेरा समर्थकों के बीच कई जगह हिंसा हुई.

दरअसल सिखों ने डेरा प्रमुख की अखबार में छपी एक तस्वीर पर आपत्ति जताई. तस्वीर में जिस वेशभूषा में डेरा प्रमुख नजर आ रहे थे उस पर सिखों का एतराज था कि ये उनके दसवें गुरु गोविंद सिंह की वेशभूषा की नकल है.

जिसके बाद बठिंडा में डेरा प्रमुख का पुतला फूंका गया. सिखों के प्रदर्शन से गुस्साए डेरा समर्थकों ने सिखों पर हमला कर दिया. कई जगह दोनों पक्षों में हिंसक टकराव हुआ.

मीडिया से क्यों चिढ़ते हैं डेरा प्रमुख?

पंचकूला कोर्ट का फैसला आने के बाद डेरा के समर्थकों का गुस्सा मीडिया पर फूटा. कई पत्रकारों और कैमरामैन पर डेरा के समर्थकों ने हमला किया. निजी चैनल की ओबी वैन को भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया. सवाल ये है कि कोर्ट के फैसले के बाद मीडिया से डेरा समर्थक क्यों भड़के हुए हैं. आखिर क्यों उनके निशाने पर मीडिया है?

दरअसल मीडिया से डेरा की नराजगी की कहानी शुरू होती है एक छोटी सी घटना से. साल 1998 में हरियाणा के गांव बेगू में डेरा की जीप के नीचे एक बच्चा आ गया. डेरा की इस घटना का खुलासा करने वाले अखबार को जमकर धमकाया गया. बाद में डेरा सच्चा सौदा की प्रबंधन समिति और पत्रकारों के बीच हुई पंचायत से मामला सुलझ सका. लेकिन इसके बाद डेरा प्रमुख कभी अपने पास मीडिया को फटकने नहीं देते थे.

पत्रकार छत्रपति ने खोली थी डेरा की पोल

डेरा प्रमुख और मीडिया के बीच विवाद के एक दूसरे मामले ने सबसे ज्यादा तूल पकड़ा. सिरसा के सांध्य दैनिक 'पूरा सच' के संपादक रामचंद्र छत्रपति ने डेरा प्रमुख के खिलाफ एक रिपोर्ट छापी थी. उसके बाद 24 अक्टूबर, 2002 को रामचंद्र छत्रपति को उनके घर के बाहर गोली मार दी गई.

हमले का आरोप डेरा पर लगा. 21 नवंबर 2002 को रामचंद्र छत्रपति की दिल्ली के अपोलो अस्पताल में मृत्यु हो गई. हाईकोर्ट ने पत्रकार छत्रपति और प्रबंध समिति के सदस्य रहे रणजीत सिंह की हत्या के मामलों की एकसाथ सुनवाई की. कोर्ट ने 10 नवंबर 2003 को सीबीआई को एफआईआर दर्ज कर जांच के आदेश दिए. लेकिन डेरा की याचिका पर दिसंबर 2003 में जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया.

नवंबर 2004 में दूसरे पक्ष की सुनवाई के बाद जांच जारी रखने के आदेश दिए. 31 जुलाई 2007 को सीबीआई ने हत्या के दोनों मामलों और साध्वी के यौन शोषण के मामले में जांच पूरी कर कोर्ट में चालान पेश कर दिया. सीबीआई ने तीनों मामलों में डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह को मुख्य आरोपी बनाया. कोर्ट ने डेरा प्रमुख को 31 अगस्त तक अदालत में पेश होने के आदेश जारी कर दिया.

डेरा के 400 साधुओं को नपुंसक करने का आरोप

डेरा प्रमुख पर  डेरा के ही साधुओं ने सबसे बड़ा आरोप लगाया. फतेहाबाद जिले के टोहाना में रहने वाले हंसराज चौहान ने 17 जुलाई 2012 को हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की. याचिका में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख पर बड़ा आरोप लगाया गया. डेरा प्रमुख पर डेरा के 400 साधुओं को नपुंसक बनाए जाने का आरोप लगा.

मामले में तब नया मोड़ आया जब याचिकाकर्ता हंसराज चौहान ने बताया कि पत्रकार छत्रपति की हत्या के आरोपी निर्मल और कुलदीप भी डेरा सच्चा सौदा के नपुंसक साधु हैं. हालांकि बाद में पूछताछ में दोनों आरोपियों ने अपनी मर्जी से नपुंसकर बनने की बात की. लेकिन नपुंसक बनाने का मामला भी कोर्ट में विचाराधीन है.

डेरा सच्चा सौदा के समर्थकों और सिखों के बीच सिरसा में तनाव कई दफे बढ़ा. एक डेरा समर्थकों ने न सिर्फ गुरुद्वारा पर हमला बोल दिया बल्कि सिखों की संपत्ति को आग के हवाले कर दिया था. जिसके बाद पुलिस को कर्फ्यू लगाना पड़ गया.

कहां लापता हो गया डेरा का पूर्व मैनेजर फकीरचंद?

डेरा के भीतर का सच कभी सामने नहीं आया लेकिन विवाद जरूर सामने आते रहे हैं. डेरा के पूर्व मैनेजर फकीर चंद अचानक रहस्यमयी परिस्थितियों में लापता हो गए. उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट के बावजूद कुछ पता नहीं चल सका. बाद में साल 2010 में डेरा के एक पूर्व साधु राम कुमार बिश्नोई ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर फकीर चंद की गुमशुदगी की सीबीआई जांच की मांग की.

बिश्नोई ने डेरा प्रमुख पर फकीर चंद की हत्या का आरोप  लगाया था. लेकिन बाद में सीबीआई ने सबूत न होने की वजह से क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल कर दी. जिस पर याचिकाकर्ता बिश्नोंई ने हाईकोर्ट में सीबीआई की क्लोज़र रिपोर्ट को चुनौती दी है.

डेरा प्रमुख के खिलाफ किसी भी मामले में कोई भी थाने में सीधे एफआईआर दर्ज कराने की हिम्मत नहीं जुटा सका. लोग कोर्ट में याचिका के जरिये ही अपनी शिकायतें दर्ज कराते रहे. पहली बार ऐसा हुआ है कि मैसेंजर ऑफ गॉड यानी गुरमीत सिंह राम रहीम अदालत की चौखट पहुंचे और हाथ जोड़कर न्यायाधीश के सामने खड़े थे.

फैसला आने के बाद राम रहीम की आंखों में आंसू थे. गुनाह का अहसास ही इंसान को उसकी सबसे बड़ी भूल का सच बताता है कि वो खुदा नहीं है और न हो सकता है.