नोटबंदी को डेढ़ साल होने वाला है. मगर इससे जुड़ी बातें खत्म ही नहीं हो रही है. ताजा खबर है कि हम नगदी के मामले में नोटबंदी से पहले वाली स्थिति में आ गए हैं. यानी नोटबंदी के 15 महीने बाद बाजार में लगभग उतना ही कैश उपलब्ध है जितना 8 नवंबर 2016 से पहले था.
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के हालिया आंकड़ो के मुताबिक 23 फरवरी 2018 को भारतीय अर्थव्यवस्था में करेंसी का कुल सर्कुलेशन 17.82 लाख करोड़ है. 2016 नवंबर में ये 17.97 लाख करोड़ था. यानी अभी हम कैश के मामले में 99.17 फीसदी पर पहुंच चुके थे. ये हाल तब है जब नोटबंदी के बाद कैश सर्कुलेशन आधा कर दिया गया था. उस दौर में लोगों ने डिजिटल ट्रांजेक्शन शुरू तो किया मगर देखते ही देखते वापस कैश की तरफ आ गए.
दरअसल डिजिटल ट्रांजैक्शन को लंबे समय तक चलाने के लिए जिस इन्फ्रास्ट्रक्चर और अवेयरनेस की जरूरत थी वो विकसित नहीं हो पाई. छोटे-छोटे लेनदेन के लिए pos मशीन उपलब्ध नहीं होती. ऐप से पेमेंट करना सीखना बहुतों के लिए मुश्किल है और इसके साथ ही इसके लिए अच्छा इंटरनेट कनेक्शन भी चाहिए. इन दोनों के ही अभाव में कैशलेस व्यवस्था जम नहीं पाई.
न्यूज़ 18 की बातचीत में ब्लैक मनी मामलो के एक्सपर्ट अरुण कुमार ने कहा, 1950 से लेकर अभी तक करेंसी इन सर्कुलेशन जीडीपी ग्रोथ रेट के लगभग बराबर है. इसे देखते हुए इस समय करेंसी इन सर्कुलेशन लगभग 22 लाख करोड़ रुपए होने चाहिए थे. इस मामले में सरकार की दलील है कि डिजिटलीकरण के कारण कैश का यूज कम हुआ है, लेकिन जिस तरह डिजिटल ट्रांजैक्शंस कम हो रहे हैं और कैश की उपलब्धता बढ़ रही है, उससे इस दावे की भी पोल खुल जाती है.
वैसे जानकारों की मानें तो इस स्तर के बराबर होने के कई नुकसान भी हैं. करेंसी की विश्वस्नीयता कम हुई है. लोग 2000 का नोट बंद होने की अफवाहों का शिकार भी हो चुके हैं. इसके साथ ही सरकार ने शुरुआत में आतंकवाद, कालाधन और और ऐसी तमाम समस्याओं के नोटबंदी से खत्म हो जाने की बात कही थी. इसमें वांछित परिणाम न मिलने के बाद कैशलेस इकॉनमी की बात कही गई. अब डिजिटल इंडिया में भी कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है. ऐसे में नोटबंदी के लिए चाहें तो नोटबदली शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं.