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स्वीडन जैसी सुविधा वाला देश का पहला कैशलेस गांव

देश का हर गांव ऐसा हो जाए, तो जिंदगी बहुत आसान हो जाएगी

Bindisha Sarang

इस वक्त पूरे देश में एटीएम या तो खाली पड़े हैं या फिर उनके आगे लंबी कतारें लगी हैं. यही हाल बैंकों का है. ऐसे में अगर हम आपको कहें कि भारत में एक जगह ऐसी भी है, जहां आपको कुछ भी खरीदने के लिए नकद पैसों की जरूरत नहीं, तो आप उसे जन्नत ही मानेंगे. इस जगह पर आपको पुराने नोट बदलने का झंझट भी नहीं मोल लेना है. न ही पैसे निकालने के लिए कहीं लाइन में लगने की जरूरत है.

जब से सरकार ने 500-1000 के नोट बंद किए हैं, तब से आपने भी नकदी का संकट झेला होगा. पूरा देश ही ऐसी दिक्कत का सामना कर रहा है.


लेकिन एक गांव ऐसा है जहां के लोगों पर नोटबंदी का कोई फर्क नहीं पड़ा है. इस गांव का नाम है, अकोदरा. ये गुजरात के साबरकांठा जिले में है.

पूरा गांव कैशलेस

इस गांव को ICICI बैंक ने 2015 में गोद ले लिया था. उसके बाद से आज की तारीख में ये गांव कमोबेश पूरी तरह से कैशलेस हो गया है. गांव की टीचर ज्योत्सनाबेन पटेल कहती हैं कि उनके गांव में सारा लेन-देन मोबाइल बैंकिंग, नेट बैंकिंग या कार्ड के जरिए होता है. ये देश का पहला डिजिटल और कैशलेस गांव है.

अकोदरा में पांच हजार रुपए तक के बहुतेरे लेन-देन तो एसएमएस बैंकिंग से ही हो जाते हैं. खरीदार इसके लिए एक एसएमएस बैंक को करता है. वहां से पैसा सीधे दुकानदार के खाते में पहुंच जाता है. नकदी की जरूरत ही खत्म.

गांव के सभी 250 घरों के बैंक खाते हैं. यहां के 1036 वयस्कों के अपने बचत खाते हैं. गांव की कुल आबादी 1191 है. गांव वालों को तकनीक के इस्तेमाल की ट्रेनिंग बैंक ने दी है.

मोबाइल से खरीदारी

एक ग्रामीण ने बताया कि डिजीटल बैंकिंग की मदद से उन्होंने मौजूदा नकदी संकट को अपने गांव से दूर ही रखा है. यहां किसी को पैसे की तंगी नहीं हुई. गांव के चार-पांच दुकानों से मोबाइल के जरिये खरीदारी हो जाती है.

ग्रामीणों का कहना था कि जब वो नकद में लेन-देन करते थे तो काफी पैसे खर्च हो जाते थे. लेकिन डिजीटल पेमेंट की वजह से वो काफी बचत कर लेते हैं. बचत अब अकोदरा के लोगों की आदत बन गई है.

अकोदरा के पास एक एटीएम भी लगा है. मगर गांव के लोग इसका इस्तेमाल भी नहीं करते. बल्कि पड़ोसी गांवों के लोग वहां से पैसे निकालते हैं. नोट बंदी के बाद अकोदरा के लोगों ने अपने पुराने नोट बदले जरूर, मगर बैंक के बाहर लगी कतार में ज्यादातर लोग आस-पास के गांवों के थे.

अकोदरा गांव की तस्वीर

इस गांव की अपनी वेबसाइट भी है- http://akodara-digitalvillage.in

इंटरनेट के जरिए गांव के लोगों को अपनी उपज की ताजा कीमत मालूम होती रहती है. ये लोग नेशनल कमोडिटी एक्सचेंज से जुड़े हुए हैं. गांव की साक्षरता करीब 100 फीसद है. यहां लोग मोबाइल बैंकिंग भी गुजराती के अलावा अंग्रेजी में करते हैं.

सभी जानवरों के लिए हॉस्टल

साबरकांठा जिले की मिल्क को-ऑपरेटिव ने अकोदरा में जानवरों के रहने के हॉस्टल भी बनाए हैं. एक डेयरी के मालिक पलख कुमार सुरेश भाई कहते हैं कि उनके गांव के सभी लोग अपने जानवर एनिमल हॉस्टल में रखते हैं, जो को-ऑपरेटिव ने बनवाया है.

साबरकांठा की मिल्क को-ऑपरेटिव की गाड़ी आकर वहीं से दूध ले जाती है. ले जाने से पहले मौके पर ही दूध की जांच होती है. दस दिन के अंदर ही किसानों के खाते में दूध के पैसे आ जाते हैं. ये सबके लिए बेहद मुफीद तरीका है.

हमारी टीम ने आणंद जिले की कुछ डेयरी का दौरा किया था. यहां डेयरी के मालिक जानवरों के लिए चारा खरीदने में भी परेशानी झेल रहे थे. वजह ये कि उनके पास नकद पैसे नहीं थे. लेकिन अकोदरा गांव के लोग बेफिक्र हैं. क्योंकि वो डेबिट कार्ड से भुगतान करके चारा खरीद लेते हैं. वहीं आणंद के डेयरी मालिकों के पास नकदी न होने से वो जानवरों के लिए चारा नहीं खरीद पा रहे हैं. इससे दूध का उत्पादन घट गया है.

पढ़ाई की आधुनिक सुविधाएं

अकोदरा गांव में प्राइमरी, सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी स्कूल भी हैं. यहां पर बच्चों के पढ़ने की आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं. इससे टीचर्स को भी राहत है और रोजाना हाजिरी लगाने का झंझट भी दूर हो गया है. स्कूल में स्मार्ट बोर्ड हैं, कंप्यूटर हैं और टैबलेट भी हैं जिनसे छात्रों को पढ़ाया जाता है.

गांव के अध्यापक पिंकेश रावल कहते हैं कि बच्चे कार्ड स्वैप करके हाजिरी लगा देते हैं. ऑडियो-विजुअल माध्यम से पढ़ाई की वजह से छात्रों को पढ़ने में भी मजा आता है.

गांव में एक आरओ प्लांट लगा हुआ है और वाई-फाई टॉवर भी है. लोग जरूरत के हिसाब से इंटरनेट कनेक्शन लेकर उसका इस्तेमाल करते हैं. गांव में तीन माइक्रो एटीएम भी हैं, जो कि ग्राम पंचायत भवन, गांव के सहकारी भवन के और आरओ प्लांट के पास लगे हैं.

नकदी संकट से मुक्त

टैक्सी ड्राइवर हेमंत भाई कहते हैं कि उन्होंने गुजरात के बहुत से गांवों को देखा है. सभी गांव नकदी संकट झेल रहे हैं. लेकिन अकोदरा के निवासी बहुत सुखी हैं. इस संवाददाता ने गांव के बैंक में लोगों को लेन-देन करते देखने का फैसला किया. आधे घंटे में तीन लोगों ने बैंक के पास स्थित एक दुकान में आकर लेन-देन किया.

पहला ट्रांजैक्शन मोबाइल से किया गया. दूसरा नकदी से. तीसरा लेन-देन एक बुजुर्ग महिला ने बिना किसी पेमेंट के किया. जब हमने उस महिला से पूछा कि क्या वो मोबाइल से लेन-देन करती हैं. तो उन्होंने बताया कि वो दुकान आकर अपनी जरूरत का सारा सामान खरीद लेती हैं. फिर उनका बेटा कुछ दिनों बाद दुकान आकर मोबाइल से पेमेंट कर देता है.

जब एक युवती से हमने पूछा कि क्या वो कोई सामान नकद खरीदती हैं, तो उन्होंने बताया कि मैं अपने बच्चे के लिए पांच रुपये की चॉकलेट खरीदने आई हूं. अब क्या इतनी छोटी रकम के लिए मैं एसएमएस करूंगी?

देश का पहला डिजीटल गांव

26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही डिजीटल इंडिया अभियान शुरू किया था. 1 जुलाई 2015 को शुरू हुए अभियान का मकसद ग्रामीण इलाकों को इंटरनेट नेटवर्क से जोड़ना था. देश भर में डिजीटल बुनियादी ढांचा खड़ा करना और देश के लोगों के बीच डिजीटल साक्षरता बढ़ाना था.

आईसीआईसीआई बैंक भी इस अभियान में शामिल होना चाहता था, ताकि लोग डिजीटल पेमेंट करें. इससे बैंकों का खर्च भी कम होना था. बैंक की सीईओ चंदा कोचर ने जब देश का पहला डिजीटल गांव लॉन्च किया था, तो उन्होंने कहा था,

ये पीएम मोदी का सपना है कि भारत डिजीटल बने.

जब हम डिजीटल शब्द को सोचते हैं तो हमें अमीर देशों का, बड़े शहरों का खयाल आता है. भारत में छह लाख से ज्यादा गांव हैं. हमें अपने देश को 100 प्रतिशत डिजीटल बनाना है. इसकी शुरुआत हमने अकोदरा गांव से की है.'

हर घर का बैंक अकाउंट

बैंक ने अभियान की शुरुआत के लिए छह-सात गांवों के नाम तय किए थे. इनमें से अकोदरा को चुनकर इसे 100 फीसद डिजीटल गांव बनाने का फैसला किया गया. क्योंकि यहां ज्यादा पढ़े-लिखे लोग थे.

गांव की कुल 1191 की आबादी में से केल 176 लोग ही अनपढ़ हैं. अकोदरा के चुनाव की दूसरी वजह थी यहां बना एनिमल हॉस्टल, जहां पूरे गांव के मवेशी एक साथ रखे जाते थे. ये एशिया का पहला जानवरों का हॉस्टल था, जिसका उद्घाटन नरेंद्र मोदी ने 2011 में गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए किया था.

गांव में आईसीआईसीआई बैंक ने दो साल पहले ही अपनी शाखा खोल ली थी. ब्रांच खोलने के चार महीने के भीतर ही डिजिटल अभियान शुरू हो गया. शुरुआत में बैंक ने 100 खाते खोले थे. लेकिन आज इस ब्रांच में 1200 से ज्यादा खाते हैं. अकोदरा के हर घर का बैंक अकाउंट है.

बैंक ने दी डिजीटल ट्रेनिंग

बैंक के कर्मचारियों ने गांव के सभी लोगों को डिजीटल पेमेंट की ट्रेनिंग दी. ताकि वो मोबाइल और एसएमस के जरिये लेन-देन कर सकें. बैंक कर्मचारी, गांव की पंचायत के साथ मिलकर काम करते हैं. वो लोग कृषि मंडी और डेयरी को-ऑपरेटिव के संपर्क में भी रहते हैं.

इस वजह से पूरे गांव का लेन-देन डिजीटल माध्यम से हो पाता है. 2 जनवरी 2015 तक अकोदरा गांव 100 फीसद डिजीटल साक्षरता पाने में कामयाब हो गया था. यहां अब कमोबेश हर लेन-देन कैशलेस होता है.

बैंक ने गांव वालों के लिए कई और सुविधाएं मुहैया कराई हैं. जैसे स्कूल में आधुनिक तकनीक और वाई-फाई की सुविधा. साथ ही गांव की वेबसाइट और खेती की उपज की कीमतें जानने के लिए डिजीटल स्क्रीन भी बैंक की मदद से शुरू हो सकी है. बैंक, गांव की महिलाओं को सिलाई की ट्रेनिंग भी मुफ्त में देता है. अगर देश का हर गांव ऐसा हो जाए, तो जिंदगी बहुत आसान हो जाएगी.

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