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नोटबंदी: सरकार के बार-बार कहने से क्या सच बदल जाएगा!

आज जनता को ये महसूस होने लगा है कि नोटबंदी के नाम पर उसे बकरा बनाया गया है

Sandipan Sharma

पंचतंत्र में एक कहानी है. एक ब्राह्मण को दान में मिली गाय को कुछ ठगों ने बार-बार बकरा कहकर बहुत सस्ते में हथिया लिया था. बीजेपी ने नोटबंदी को लेकर जनता के साथ कुछ वैसा ही करने की कोशिश की.

पार्टी का हर नेता नोटबंदी को तमाम बुराइयों के खात्मे का नुस्खा बताने की कोशिश करता रहा. ऐसा इंद्रजाल बुना गया जिससे लगा कि नोटबंदी का जादू पूरी तरह से चल गया है. सरकार हो या मोदी के मुरीद, सब के सब इसे मास्टरस्ट्रोक बताते आए हैं.


मगर, जैसा कि पंचतंत्र की कहानी से सबक मिलता है कि गाय, कुछ लोगों के कहने भर से बकरी नहीं बन जाती. ठीक वैसे ही, बीजेपी के बार-बार कहने पर भी नोटबंदी, मास्टरस्ट्रोक नहीं बन सकती. कुछ नासमझ लोग भले ही बीजेपी की बातों में आ जाएं, लेकिन हर कोई ये नहीं मान लेगा कि नोटबंदी बहुत जादुई कदम था.

अब बारी-बारी से लोग ये बोलने लगे हैं कि नोटबंदी कितना गलत फैसला था. इससे देश की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान हुआ. देश की तरक्की पर नोटबंदी ने कैसे ब्रेक लगाया, ये बात कई जानकार अब खुलकर कह रहे हैं. इस बारे में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन कह ही चुके हैं. पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने भी नोटबंदी को तबाही वाला फैसला बताया है. एक और पूर्व मंत्री अरुण शौरी ने कहा है कि नोटबंदी ने भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया.

लोग नोटबंदी को तुगलकी फैसला कहने में हिचक रहे थे 

अरुण शौरी ने एनडीटीवी से कहा कि नोटबंदी, काले धन को सफेद करने की सबसे बड़ी योजना थी. शौरी ने पूछा कि नोटबंदी के समर्थन में सरकार ने जितने तर्क दिए, उनमें से आज कौन सी बात सही होती दिख रही है? काला धन आया? नहीं. सारा पैसा सफेद हो गया. आतंकवाद रुका? नहीं. आतंकी हमले लगातार हो रहे हैं. शौरी ने कहा कि अब तो उनके पास देने के लिए तर्क भी नहीं बचे हैं.

कुछ महीने पहले तक लोग ये कहने में हिचक रहे थे कि नोटबंदी एक तुगलकी फैसला था. इसकी बड़ी वजह थी लोगों में मोदी के प्रति अंधा भरोसा. बहुत से लोग ऐसे हैं जो ये मानने को तैयार ही नहीं कि मोदी कुछ गलत कर सकते हैं. नोटबंदी के समर्थकों को ये समझा पाना मुश्किल था कि ये हाराकिरी थी. ये न तो आम लोगों के लिए अच्छा फैसला था और न ही देश की अर्थव्यवस्था के लिए. सब को यही लगता था कि मोदी जिसे छू देते हैं, वो सोना हो जाता है.

नोटबंदी की वजह से लोग बहुत परेशान हुए, फिर भी वो मोदी के समर्थक बने रहे. उन्हें यकीन था कि मोदी ने नोटबंदी का फैसला लिया है, तो ये जरूर फायदेमंद साबित होगा.

आंकड़ें बता रहे हैं नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा

लेकिन आज नोटबंदी के विरोधी खुलकर अपनी बात कह रहे हैं. इसकी वजह भी है. और वो वजह है सरकारी एजेंसियों के आंकड़े. इन आंकड़ों की बुनियाद पर नोटबंदी को गलत ठहराया जा रहा है. इसी वजह से इसे मोदी विरोधियों का शोर कहकर खारिज नहीं किया जा सकता.

जैसा कि अरुण शौरी ने कहा कि आज जीडीपी के विकास की दर घटकर 5.7 फीसद रह गई है. ये पिछले तीन सालों में सबसे कम है. कौन इस बात को चुनौती दे सकता है कि आज फैक्ट्री उत्पादन की दर 1.2 फीसद रह गई है, जबकि दो साल पहले ये 9 प्रतिशत थी. आज की तारीख में हर सेक्टर में नौकरियां घट रही हैं. छंटनी हो रही है.

तमाम आकड़ों और रिजर्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि अर्थव्यवस्था और रोजगार की हालत बहुत बुरी है. और ये हाल तब है जब कच्चे तेल के दाम बहुत गिर गए हैं. दुनिया मंदी के दौर से बाहर आ रही है. लेकिन सरकार ने तो कच्चे तेल के दाम गिरने का फायदा भी जनता को नहीं दिया.

हाल ही में रुचिर शर्मा ने कहा कि दुनिया में आज सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था ही इतने मुश्किल दौर से गुजरती दिख रही है.

आखिर ऐसी क्या वजह है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था की हालत इतनी पतली हो गई? साफ है कि पहला झटका नोटबंदी का था. नोटबंदी के जलजले के बाद जीएसटी को लागू करने का तूफान आ गया.

अब आंकड़ों की मदद से मोदी के विरोधी जोर-शोर से ये बात कह रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है. नोटबंदी एक निहायत बेवकूफाना फैसला था, जिसका देश को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. अब जैसे-जैसे बेरोजगारी बढ़ रही है, कारोबार धीमा हो रहा, उद्योग-धंधे चौपट हो रहे हैं, वैसे-वैसे सरकार के विरोधियों के सुरों को साथ मिल रहा है.

अरुण शौरी कहते हैं कि बीजेपी के पास विरोध का सामना करने की बाकायदा एक तय प्रक्रिया है. पार्टी हमेशा ही ठोस तर्क और आंकड़ों से बचती है. वो विरोधियों की काबिलियत और उनकी नीयत पर सवाल उठाने लगती है. उन्हें विश्वासघाती बताने लगती है.

अब तक बीजेपी की ये रणनीति बहुत कामयाब रही थी. जनता, मोदी को ही हिंदुस्तान मानने लगी थी. जैसे किसी दौर में डी के बरुआ ने इंदिरा गांधी के बारे में कहा था कि India is Indira. उसी तरह मोदी को भी भारत का पर्यायवाची मान लिया गया था.

नोटबंदी के नाम पर जनता को बनाया गया बकरा!

लेकिन अब आंकड़े खुलकर शोर मचा रहे हैं. बढ़ती बेरोजगारी किसी से छुपी नहीं है. लोग नौकरियां गंवा रहे हैं. कारोबार मंदा है. सरकार को विरोधियों के बाणों का सामना करने के लिए जल्द ही नई मोर्चेबंदी करनी होगी. सरकार, सिर्फ ठोस तर्क से ही विरोधियों का वार कुंद कर सकती है.

सरकार को बताना होगा कि आखिर क्यों अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है. मोदी का अच्छे दिन लाने का वादा कहां गया? विरोध के सुरों को धोखेबाज या काम की तलाश करने वाले नेता कहकर खारिज कर देने भर से काम नहीं चलने वाला. ऐसा शोर सिर्फ बीजेपी को ही सुनाई देगा. कोई और उसे भाव नहीं देने वाला. जमीनी हकीकत बदल रही है. माहौल बदल रहा है. आज जनता को ये महसूस होने लगा है कि नोटबंदी के नाम पर उसे बकरा बनाया गया है.