view all

नोटबंदी के दूरगामी फायदों को नकार नहीं सकते

नोटबंदी से शुरू हुए नगदी संकट के दो तात्कालिक आर्थिक नुकसान होंगे, लेकिन...

Ritika Mankar-Mukherjee

देश में जारी नोटबंदी से शुरू हुए नगदी संकट के दो तात्कलिक आर्थिक नुकसान होंगे. पहला, नगद के अभाव में कारोबारी लेन-देन में कमी आएगी. दूसरा, जिन धंधों में कर अदायगी नहीं होती है, वे बुनियादी तौर पर प्रभावित होंगे और उनका बाजार में बने रहना मुश्किल हो जाएगा.

हालांकि जब हम इस हालात से बाहर निकलेंगे तो काले धन और टैक्स चोरी पर मोदी सरकार के हमले से दो फायदे होंगे. पहला, पूंजी जुटाने की लागत घटेगी और बैंकिंग सिस्टम में कैश बढ़ेगा.


साथ ही काले धन पर वार और जीएसटी लागू होने से असंगठित क्षेत्र सिकुड़ेगा और संगठित क्षेत्र का विस्तार हो सकता है. अगले साल की शुरुआत से यह विस्तार नजर आ सकता है. यह लेख उन जटिल किस्म के प्रभावों का एक विस्तृत ब्योरा देता है जो आने वाले दिनों से लेकर लंबे दौर में हमें देखने को मिल सकता है.

क्या होंगे बदलाव

 500 और 1000 रुपए के नोट बैन का तात्कालिक असर नगदी संकट है. आंकड़ों के हिसाब से वित्त वर्ष 2012 में 87 फीसदी लेनदेन नगदी में हुआ था. वित्त वर्ष 2017 में 83 फीसदी लेनदेन में कैश होने का अनुमान है.

मुद्दा काफी जटिल है. हमारे अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2017 की तीसरी तिमाही में 8.5 लाख करोड़ रुपए कैश का अभाव हो सकता है, क्योंकि नगदी जारी करने की गति रातोरात 14 लाख करोड़ रूपए खत्म करने की गति से मेल नहीं खाती है.

मौजूदा अर्थव्यवस्था कैश आधारित है. यहां 83 फीसदी लेनदेन कैश होता है. ऐसे में 8.5 लाख करोड़ रुपए की कमी से वित्त वर्ष 2017 की तीसरी तिमाही में देश की जीडीपी 5.7 फीसदी रह सकती है.

इसका असर चौथी तिमाही तक भी खिंच सकता है. वैसे यह मुमकिन है कि इसका प्रभाव कुछ कम हो. लिहाजा फिलहाल आर्थिक गतिविधियों का थम जाना निश्चित है.

Source: Getty Images

अहम है असंगठित क्षेत्र

भारत के जीडीपी में असंगठित क्षेत्र का योगदान 40 फीसदी से ज्यादा है. वहीं रोजगार मुहैया कराने में इसका योगदान 80 फीसदी है.

हालांकि असंगठित क्षेत्र में मुनाफे से जुड़े ब्योरे का पता लगाना मुश्किल है. हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2017 की तीसरी तिमाही से लेकर चौथी तिमाही तक भारत में असंगठित क्षेत्र का हिस्सा 40 से घटकर 20 फीसदी रह जाएगा.

असंगठित क्षेत्र के सिकुड़ने से कुछ वक्त के लिए काफी बुरा असर हो सकता है, क्योंकि असंगठित क्षेत्र अब उतने लोगों को रोजगार मुहैया नहीं करा पाएगा, जितना कराता रहा है.

फिलहाल संगठित क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 60 फीसदी है. हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2017 के तीसरी तिमाही से लेकर चौथी तिमाही तक संगठित क्षेत्र का हिस्सा 60 से बढ़कर 80 फीसदी हो जाएगा.

खोजेंगे नए रास्ते

इसके अलावा काले धन पर लगातार चौकसी से लोग अपनी बचत को सोने या रियल एस्टेट में निवेश करने से बचेंगे.

इसके कारण बड़े पैमाने पर लोगों की बचत वित्त व्यवस्था का हिस्सा बनेगी जिससे बैंकों, एनबीएफसी और स्टॉकब्रोकरों जैसे फाइनेंशियल सेवाएं देने वालों के पास काफी पैसा आएगा.

जैसे ही बचत बढ़ेगी, कर्ज लेने में लगने वाला खर्च भी कम होगा. हमारा विश्लेषण यह बतलाता है कि वित्त वर्ष 2017 से 2020 तक भारत की बचत का हिस्सा सकल घरेलू उत्पाद का 4 फीसदी हो सकता है और कर्ज लेने की ब्याज दर 3.5 फीसदी गिर सकती है.

अनुमान है कि सकल घरेलू उत्पाद दर में निवेश का हिस्सा स्थिर रहेगा. इसलिए, जारी बदलावों के दुष्प्रभाव जरूर होंगे, लेकिन काले धन और टैक्स चोरी पर मोदी सरकार के इस हमले के दीर्घकालिक फायदों से इंकार नहीं किया जा सकता.

रितिका मांकड़-मुखर्जी वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं और सौरभ मुखर्जी एंबिट कैपिटल के सीईओ (इंस्टि्टयूशन इक्विटीज) हैं.