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नोटबंदी: कैश के संकट के बीच कर्ज का खतरा

क्रेडिट कार्डों का ज्यादा इस्तेमाल कर्ज में हमेशा के लिए दब जाने का सबसे आसान रास्ता है

Bikram Vohra

क्या भारतवासी सीधे कर्ज के जाल की तरफ बढ़ रहे हैं?

बहुत से लोग जो फ़र्स्टपोस्ट और दूसरी जगहों पर मेरे जैसे कंप्यूटर के कम जानकार और ऐप अनपढ़ों को कम आंक कर लिख रहे हैं और गर्मजोशी से इस आर्थिक संकट के विकल्प के तौर पर क्रेडिट कार्ड का सुझाव दे रहे हैं, उनके लिए यहां कुछ आंख खोलने वाले तथ्य दिए जा रहे हैं.


कैश पर मौजूदा संकट क्रेडिट कार्डों के अत्यधिक इस्तेमाल को बढ़ावा दे सकता है, जो कर्ज में हमेशा के लिए दब जाने का सबसे आसान रास्ता है. मेरा अनुभव क्रेडिट कार्ड कर्ज का नायाब उदाहरण है. मेरे पास विशेष सुविधाओं और आकर्षक लाभों वाले 14 क्रेडिट कार्ड थे जिनके जहरीले शुल्क सालों तक महीने दर महीने मेरी कमाई का हिस्सा चूसते रहे.

क्रेडिट कार्डों का शैतानी लालच

अगर मौजूदा संकट लंबे समय तक बना रहा, फिर तय है कि लाखों नहीं तो हजारों मध्यमवर्गीय भारतीय जिन्होंने अभी तक क्रेडिट कार्डों के शैतानी लालच से परहेज किया है और इसके अतिरिक्त शुल्क में डूबने से बचे रहे हैं, वह भी इसका सामना करेंगे. इस समय यह भ्रम फैला हुआ है कि क्रेडिट कार्ड कैश की जगह ले सकते हैं. नहीं, वे नहीं ले सकते. जुर्माने, सरचार्ज, पेनॉल्टी, देरी के शुल्क और अन्य वसूलियों के दलदल में डालने वाले ये क्रेडिट कार्ड बहुत खतरनाक हैं. नोटबंदी का फैसला सीधे तौर पर इनके प्रयोग को बढ़ावा दे रहा है जिससे केवल बैंकों का फायदा होगा.

जिन चीजों को क्रेडिट कार्ड से खरीदने की जरूरत नहीं, उन्हें आप खरीदने में हो रही आसानी के कारण क्रेडिट कार्ड से स्वाइप करके खरीदते हैं और जिन चीजों की आपको आज जरूरत नहीं उनका भुगतान बाद में मुश्किल से ही कर पाते हैं. इसके एक सिरे से ईएमआई की डोर भी जुड़ी होती है; यह एक ऐसी चेतावनी है जिसका खयाल नहीं रखा जाएगा.

खाई के उपर लटकने का तरीका

ऐसा मत कीजिए. यह समझदारी नहीं है. सरकार की पॉलिसी जिसने बैंकों को भारी नकद से गले तक भर दिया है, उनके समर्थकों को क्रेडिट कार्ड की कर्ज अदायगी पर रोक लगाने की मांग करनी चाहिए. कार्ड फ्रीज करके बिना पेनॉल्टी की कर्ज अदायगी की योजना बनानी चाहिए, ताकि भारतीय जनता आर्थिक अभाव में अपने आप को खाई के उपर लटकता हुआ न पाए. यकीन मानिए, हमेशा के लिए जाल में फंस जाने के लिए एक दिन भी काफी है और दो महीने भी.

एक कोड पत्र यह होना चाहिए कि जमा कराए गए कार्ड का धारक अपना कर्ज चुकाए और कार्ड बंद कर दे. क्या आप जानते हैं कि बैंक से क्रेडिट कार्ड खाता बंद करके जीरो बैलेंस होने की पुष्टि करता हुआ पत्र नहीं लेने के कारण कितने लोगों को दोबारा पैसा चुकाना पड़ता है.

ब्रोशर और विज्ञापन का झांसा

यहां बस जाल ही जाल बिछे हैं. बैंकों की सबसे अच्छी रणनीति यही है कि वो ब्रोशर और विज्ञापन में चमकदार लोगों को आकर्षक चीजें करते हुए दिखाता है और आपको अपने झांसे में ले लेता है.

फिर एक सिलसिला शुरू हो जाता है. आप एक कार्ड का पैसा दूसरा कार्ड लेकर चुकाते हैं और नीचा दिखाने वाले फोन कॉल्स पाते हैं, अपमान झेलते हैं, धमकियां पाते रहते हैं, जब तक कि पूरा महीना भुगतान की तारीखों, कलेक्टर (वसूली करने वाला) के संदेशों का फंदा नहीं बन जाता.

आपने एक दिन की देरी की और वे आपके सर पर चढ़ बैठते हैं.

जो लोग मौजूदा संकट के बीच खुशी से क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल कर रहे हैं, उनके भीतर एक बेतुकी कल्पना है कि तुरंत कोई भुगतान नहीं करना है यानी ये ‘फ्री’ है; और इसलिए भी कि देश के प्रमुख सलाहकार क्रेडिट कार्ड को मौजूदा संकट से बाहर निकलने के विकल्प के तौर पर बढ़ावा दे रहे हैं.

सरकार अपने बेलगाम घोड़े पर लगाम लगाए

वक्त आ चुका है कि सरकार अपने बेलगाम घोड़े पर लगाम लगाए और बैंकों की आक्रामकता कम करे या कम से कम क्रेडिट कार्ड से जुड़े नियमों पर फिर से काम करे, जिसने अब सूदखोरी को पार्क में टहलने जितना आसान बना दिया है.

एक आम क्रेडिट कार्ड धारक साल में 30 फीसदी रकम ही बगैर किसी जुर्माने के चुकाता है. यह गांव के साहूकारों से भी ज्यादा है

मोदी सरकार अच्छी-खासी मात्रा में पैसे इकठ्ठा कर सकेगी और बड़ी सहायता कर पाएगी, अगर वह बैंकों को पॉलिसी में बदलाव करने के लिए मजबूर कर पाती है और अगर क्रेडिट कार्डों के कर्ज, ईएमआई को बिना किसी अतिरिक्त चार्ज के चुकाए जाने की अनुमति दी जाती है; अन्यथा असफलता स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए. बैंकों को भी बड़े हित के लिए थोड़ा योगदान करना चाहिए.

फिलहाल तो ऐसी स्थिति है कि आप न्यूनतम 10 गुणा भुगतान करते हैं और फिर भी बकाया चुकता करने के करीब नहीं दिखते.

ख्याल रखिए, भारत कहीं एक भरोसा खो चुका कार्ड न बन जाए.