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क्या नोटबंदी के बाद जीएसटी का झटका झेल पाएगा देश?

क्या एक गेम चेंजर कदम नोटबंदी, दूसरे दूरगामी फैसले जीएसटी पर बुरा असर डाल सकता है?

Seetha

क्या एक गेम चेंजर कदम दूसरे दूरगामी फैसले पर बुरा असर डाल सकता है? क्या नरेंद्र मोदी सरकार का नोट बंदी का बड़ा फैसला, गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) को लागू करने की राह में रोड़ा बनेगा?

1 और 2 दिसंबर को हुई जीएसटी काउंसिल की पिछली बैठक के बाहर राज्यों के वित्त मंत्री नोटबंदी के असर पर वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ चर्चा करते नजर आए. बैठक में इस पर इसलिए चर्चा नहीं हो सकी क्योंकि नोट बैन का मुद्दा जीएसटी काउंसिल की बैठक के दायरे में नहीं आता.


हो सकता है कि नोटबंदी के मुद्दे को राज्यों के वित्त मंत्री महज सियासी हथियार बनाने की कोशिश कर रहे हों, ताकि वो केंद्र से जीएसटी के बदले में ज्यादा मुआवजा हासिल कर सकें. केंद्र सरकार चाहे तो ऐसा कर सकती है. लेकिन इस बात को लेकर फिक्र भी है कि नोटबंदी के बाद जीएसटी को लागू करने का अर्थव्यवस्था और राज्यों के खजाने पर क्या असर पड़ेगा?

नोटबंदी से अर्थव्यवस्था पर कितना और कैसा असर?

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फायनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) की आर कविता राव कहती हैं कि, 'जीएसटी जैसे व्यापक कर सुधार को अर्थव्यवस्था की अच्छी हालत के दौरान लागू किया जाता है. मगर केंद्र सरकार इसे नोटबंदी के चाबुक से कराह रहे देश की पीठ पर लादना चाहती है.' कविता राव जीएसटी को लागू करने की प्रक्रिया से बेहद करीब से जुड़ी हैं.

नोटबंदी से अर्थव्यवस्था पर कितना और कैसा असर पड़ेगा, इसका अभी अंदाजा ही लगाया जा रहा है. इससे विकास की दर और घरेलू मांग पर असर को लेकर कोई ठोस आंकड़े नहीं पेश किए गए हैं. हालांकि ये बात तो सभी मान रहे हैं कि कुछ वक्त के लिए इसका बुरा असर जरूर रहेगा. कविता राव का मानना है कि इसका सबसे ज्यादा असर छोटे कारोबारियों पर पड़ेगा. इन्हीं लोगों को जीएसटी का बोझ भी उठाना होगा.

'जीएसटी लागू होने का असर बड़े कारोबारियों पर भी पड़ेगा'

जीएसटी तो अपने आप में ऐसा सुधार है कि इससे मौजूदा व्यवस्था में उथल-पुथल मचेगी. कविता राव कहती हैं कि, 'जीएसटी लागू होने का असर बड़े कारोबारियों पर भी पड़ेगा, लेकिन वो इसका झटका झेलने को तैयार हैं. छोटे कारोबारी इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं. क्योंकि इससे मांग घटनी तय है.'

मगर क्या सरकार जीएसटी को लागू करने में थोड़ी देर करने के लिए तैयार है? क्या सरकार इस बात के लिए राजी है कि पहले देश नोटबंदी के असर से उबर जाए, फिर उसे जीएसटी का दूसरा झटका दिया जाए?

सरकार को जीएसटी सितंबर 2017 तक लागू करना होगा

इसकी उम्मीद कम ही है. प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने जीएसटी को लागू करने को अपनी इज्जत का सवाल बना लिया है. इसे वो बहुत बड़े आर्थिक सुधार के तौर पर पेश कर रहे हैं. अगर जीएसटी लागू हो गया तो वो इसका श्रेय ले सकेंगे. दूसरी वजह ये भी है कि जीएसटी लागू होने के बाद पहले दो साल तकलीफ के होंगे. इसके बाद हालात बेहतर होगे. ये मोदी सरकार के लिए अच्छा होगा कि 2019 के आम चुनाव आते-आते जीएसटी के असर से देश उबर चुका होगा. फिर जीएसटी को लेकर संवैधानिक चुनौती भी है. वित्त मंत्री जेटली पहले भी कह चुके हैं कि इसे लागू करने को सितंबर 2017 से ज्यादा नहीं टाला जा सकता. क्योंकि जीएसटी एक्ट की अधिसूचना जारी होने के बाद अप्रत्यक्ष कर के मौजूदा कानून सिर्फ एक साल तक लागू रह सकते हैं. अब चूंकि ये इस साल सितंबर में अधिसूचित किया गया था तो सरकार को जीएसटी सितंबर 2017 तक लागू करना ही होगा.

कविता राव मानती हैं कि ये सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. हालांकि वो यह भी कहती हैं कि इसे तुरंत लागू करना देश के लिए घातक होगा.

तस्वीर: नोटबंदी की मुश्किल से उबरे नहीं हैं लोग

सर्विस टैक्स पूरा का पूरा केंद्र सरकार के काबू में होगा

यूं तो नोटबंदी के फैसले के बगैर भी अगले साल एक अप्रैल से जीएसटी लागू करना दूर की कौड़ी लग रहा था. सितंबर में राज्यों और केंद्र में रजामंदी बनी थी कि डेढ़ करोड़ रुपये से नीचे के कारोबार पर राज्यों का नियंत्रण होगा. इससे ऊपर के कारोबार पर राज्यों के साथ केंद्र का भी नियंत्रण होगा. सर्विस टैक्स पूरा का पूरा केंद्र सरकार के काबू में होगा. अब इसकी पूरी प्रक्रिया तय करना इतना आसान काम नहीं.

कई राज्यों को इस बात पर ऐतराज है कि सर्विस टैक्स पूरी तरह से केंद्र के पाले में है. कविता राव मानती हैं कि इस मुद्दे पर सहमति बनानी जरूरी है. राज्यों के लिए, खास तौर से छोटे राज्यों के लिए कई सर्विस ऐसी हैं जिनसे अच्छी खासी आमदनी होती है. केंद्र के लिए सर्विस टैक्स कोई बड़ा मसला नहीं. इससे होने वाली आमदनी जीएसटी के दायरे के भीतर ही आ जाने की उम्मीद है.

दूसरा मामला जीएसटी पर दोहरे नियंत्रण का है. जो कि एक राज्य से दूसरे राज्य में माल ले जाने पर लगने वाले आईजीएसटी यानी इंटीग्रेटेड गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स का मुद्दा है. कविता राव मानती हैं कि, 'ये सभी विवाद वाजिब हैं और इनका हल ढूंढा जाना जरूरी है. कोशिश ये होनी चाहिए कि टैक्स देने वाले को सिर्फ एक सरकार से जूझना पड़े.'

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि जीएसटी को एक अप्रैल से लागू करने को लेकर उनकी धड़कनें बढ़ी हुई हैं. तब तक कमोबेश सबका यही हाल रहेगा.