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नोटबंदी: नरेंद्र मोदी की कैशलेस इकोनॉमी में पांच रुकावटें

पीएम मोदी के भारत को कैशलेश बनाने की महत्वाकांक्षा में पांच मुख्य अड़चनें हैं

Devanik Saha

27 नवंबर को यूपी के कुशीनगर में एक चुनावी सभा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से कैशलेश इकोनॉमी अपनाने को कहा. उन्होंने उनसे कहा कि वे दूसरे लोगों को भी कैशलेश लेन-देन के तरीके समझाएं.

उसी दिन रेडियो पर अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी प्रधानमंत्री ने लोगों से कैशलेस इकोनॉमी के कामकाज के तौर-तरीकों को अपनाने को कहा. उन्होंने बैंक खाते और इंटरनेट बैंकिंग के अलग-अलग तरीके को इस्तेमाल करने को भी कहा. उनका कहना था कि, 'लोगों को अलग-अलग बैंकों के मोबाइल ऐप इस्तेमाल करना आना चाहिए. बिना कैश अपना व्यापार चलाना आना चाहिए. कार्ड पेमेंट और लेन-देन के दूसरे इलेक्ट्रॉनिक विकल्पों को भी समझना चाहिए. शॉपिंग मॉल को देखकर उनसे सीखने की कोशिश करनी चाहिए.


कैशलेश इकोनॉमी साफ-सुथरी और सुरक्षित है. भारत को डिजिटल इकोनॉमी की दिशा में आगे ले जाने में सब अपनी भूमिका निभाएं.’ मोदी और उनकी कैबिनेट के मंत्री अब सोशल मीडिया के जरिए कैशलेश लेन-देन का जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं. जिसमें ई-बैंकिंग (कंप्यूटर या मोबाइल फोन पर बैंकिंग), डेबिट और क्रेडिट कार्ड स्वाइप मशीन और प्वाइंट ऑफ सेल्स मशीन के साथ-साथ डिजिटल वॉलेट भी शामिल है.

My mobile, my bank, my wallet- UPI pic.twitter.com/3OKPWD13MG

कैशलेश इकोनॉमी को बढ़ावा देने के मोदी सरकार के फैसले के चार दिन के अंदर कैबिनेट मंत्रियों और उनके विभागों के ये किए कुछ ट्वीट हैं.

भारत में अमेरिका से ज्यादा इंटरनेट यूजर, लेकिन स्मार्टफोन, इंटरनेट पहुंच में काफी पीछे

बिजनेस स्टैंडर्ड के आकलन के मुताबिक भारत में लगभग 68 फीसदी लेनदेन कैश में होते हैं, जबकि कई दूसरे अनुमानों की मानें तो ये आंकड़ा 90 फीसदी है. मोदी के भारत को कैशलेश बनाने की महत्वाकांक्षा में पांच मुख्य अड़चनें हैं:

1. भारत में 34.2 करोड़ लोग इंटरनेट यूजर्स हैं, देश की आबादी का 27 फीसदी: जून 2016 में क्लीनर पर्किनस एंड बायर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस साल की शुरुआत में भारत अमेरिका को पीछे छोड़कर दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेट यूज करने वाला दूसरा देश बन गया. ट्राई के आंकड़ों के मुताबिक देश में 34.2 करोड़ इंटरनेट यूजर हैं.

इंडिया स्पेंड की मार्च 2016 में जारी रिपोर्ट में विश्व स्तर पर ये संख्या 67 फीसदी है. आंकड़ों में पता चलता है कि भारत इस मामले में प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से पीछे है. उसका प्रदर्शन नाइजीरिया, केन्या, घाना और इंडोनेशिया से भी खराब है.

इसे दूसरी तरह से अगर देखें तो 73 फीसदी भारतीयों या 91.2 करोड़ आबादी के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है.

जो इंटरनेट यूजर्स हैं उसमें से 13 फीसदी ही ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं (83.3 करोड़ में से 10.8 करोड़). इन लोगों पर 8 नवंबर को लागू 500 और 1000 रुपए की नोटबंदी की सबसे ज्यादा मार पड़ी है. जबकि, केवल 58 फीसदी शहरी लोगों के पास ही इंटरनेट की सुविधा है.

2. 17 फीसदी युवा ही करते हैं स्मार्टफोन का इस्तेमाल: बैंकों का ऐप यूजर होने के लिए स्मार्टफोन जरूरी है. प्यू रिसर्च के सर्वे के मुताबिक एशिया-पैसिफिक में भारत सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ता स्मार्टफोन बाजार है, लेकिन यहां के केवल 17 फीसदी युवाओं के पास ही स्मार्टफोन है. कम आय वर्ग परिवारों के केवल 7 फीसदी युवा स्मार्टफोन रखते हैं, अमीर परिवारों में ये आंकड़ा 22 फीसदी है.

3. 102 करोड़ मोबाइल कनेक्शन, केवल 15 फीसदी के पास मोबाइल इंटरनेट: नवंबर 2016 में ट्राई की जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में मौजूद 102 करोड़ मोबाइल कनेक्शन में बंद पड़े और फर्जी कनेक्शन को हटाने के बाद 93 करोड़ चालू उपभोक्ता हैं. इनमें से 15.4 करोड़ लोगों के पास ब्रॉडबैंड कनेक्शन है.

4. मोबाइल पर पेज लोड का औसत समय 5.5 सेकेंड, चीन में 2.6 सेकेंड: ग्लोबल कंटेंट डिलीवरी नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर करने वाली एकमाई टेक्नॉलजी की जारी ‘स्टेट ऑफ द इंटरनेट Q1 2016’ रिपोर्ट में भारत में मोबाइल फोन पर पेज लोड का औसत समय 5.5 सेकेंड बताया गया है, वहीं, चीन में ये 2.6 सेकेंड है. श्रीलंका में 4.5 सेकेंड, बांग्लादेश में 4.9 सेकेंड और पाकिस्तान में 5.8 सेकेंड है. इजराइल में 1.3 सेकेंड की पेज लोड की सबसे तेज स्पीड है.

मोबाइल इंटरनेट स्पीड को देखते हुए संभावना कम है कि लोग बैंकिंग लेन-देन के लिए अपना स्मार्टफोन यूज करेंगे. ऑरेकल के बेवसाइट ऑपटिमाइजेशन टूल, ऑरेकल मैक्सीमाइजर यूजर्स के 68 फीसदी यूजर्स ने कहा कि वे बैंक की बेवसाइट या ऐप पर पेज या तस्वीरें लोड होने के लिए 6 सेकेंड का इंतजार नहीं करेंगे.

5. प्रति दस लाख की आबादी पर 856 स्वाइप मशीन: अगस्त में आई रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 14.6 लाख स्वाइप मशीन यूज में हैं, जिसका औसत प्रति दस लाख की आबादी पर 856 स्वाइप मशीन है. कंसल्टेंसी फर्म अर्नस्ट एंड यंग की 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत से आबादी में 84 फीसदी कम ब्राजील में उस वक्त वहां 39 गुणा ज्यादा स्वाइप मशीनें थीं (32,995). चीन और रूस में स्वाइप मशीन का अनुपात प्रति दस लाख की आबादी में 4 हजार है.

'भारत के 15 बड़े शहरों में 70 फीसदी से ज्यादा स्वाइप मशीन लगे हैं, जहां 75 फीसदी से ज्यादा कार्ड ट्रांजैक्शन होते हैं', ये कहना है अर्नस्ट एंड यंग का. 500 और 1000 रुपए की नोटबंदी के बाद भी ये स्थिति नहीं बदली है.

'स्वाइप मशीन की ज्यादातर मांग अब भी मेट्रो या बड़े शहरों में होते हैं', प्राइवेट सेक्टर के बड़े बैंक के एक अधिकारी ने 29 नवंबर को इंडियन एक्सप्रेस  बताया. 'छोटे शहरों में लोग अब अपने डेबिट कार्ड से कैश निकालने के अलावा पेमेंट करने में भी इस्तेमाल कर रहे हैं. इसकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है, उन्होंने आगे कहा.

सरकार ने बैंकों और स्वाइप मशीन बनाने वाली कंपनियों पर लगाए जाने वाली 12.5 फीसदी एक्साइज ड्यूटी और 4 फीसदी स्पेशल एक्साइज ड्यूटी हटा ली है. सरकार की योजना मार्च 2017 तक 10 लाख स्वाइप मशीन लगाने की है.

(देवानिक साहा इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज, ससेक्स विश्वविद्यालय में जेंडर एंड डेवलपमेंट के एमए छात्र हैं.)