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मिशन ‘ग्रीन दिल्ली’ के लिए पॉलिसी फ्रंट पर बारीक गड़बड़ियों को दूर करना बेहद जरूरी

जब तक इस मामले को राष्ट्रीय मीडिया ने सुर्खी नहीं बनाई, तब तक किसी भी पार्टी ने इस मसले के समाधान की दिशा में राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई.

Pallavi Rebbapragada

इस साल गर्मियों के दौरान दिल्ली की हवा बेहद धूल भरी (दानेदार और भूरी ) रही है. दिल्ली के उप-राज्यपाल अनिल बैजल ने पिछले हफ्ते सरकारी एजेंसियों और नगर निगमों को निर्माण स्थलों पर धूल को रोकने के लिए उपाय करने के निर्देश दिए. साथ ही, सड़कों की साफ-सफाई के साथ पानी छिड़कने के काम को सक्रियता से अंजाम देने को कहा गया.

बीते 15 जून को दिल्ली-एनसीआर में पीएम10 काफी खतरनाक स्तर पर यानी 796 और दिल्ली में 830 पाया गया. पीएम10 के स्तर से मतलब पर्यावरण में 10एमएम की चौड़ाई से कम वाले धूल कणों की मौजूदगी से है.


काटे गए पेड़ों के बदले नए पेड़ लगाने को लेकर दुरुस्त हो प्रक्रिया

इस तरह की भयावह स्थिति के मद्देनजर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने ग्रेडेड रेस्पॉन्स एक्शन प्लान पर अमल से जुड़े टास्क फोर्स की तुरंत बैठक बुलाई. ग्रीन कवर (हरियाली की मौजूदगी) से अवशोषण, विषैली चीजों के खात्मे आदि के जरिये धूल, धुआं और फाइन पार्टिकुलेट मैटर को कम किया जा सकता है और अब तक इस पूरे मामले में प्रदर्शनकारी बैठक कर सरकार से कह रहे हैं कि वन विभाग को मध्य और दक्षिणी दिल्ली की कॉलोनियों में मौजूद 16,500 पेड़ों को काटने से रोका जाए. बहरहाल, दलीलों के इस क्रम में कुछ गड़बड़ी नजर आती है और इसे तत्काल दुरुस्त किए जाने की जरूरत है.

हाई कोर्ट ने इस तरह से बड़े पैमाने पर पेड़ों को गिराए और काटे जाने को लेकर सख्त टिप्पणियां की हैं और एनबीसीसी ने खुद से अगली सुनवाई तक किसी भी पेड़ को नहीं काटने की बात कही. इस मामले में अगली सुनवाई 2 जुलाई को है. हालांकि, इस तरह का आश्वासन सिर्फ कामचलाऊ इंतजाम का मामला हो सकता है.

इस पूरी कहानी का सिलसिला कुछ इस तरह से है...लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल के निर्देश पर पर्यावरण और वन सचिव, ए के सिंह ने 23 अप्रैल 2018 को एक नोटिफिकेशन जारी किया. इसमें कहा गया कि दिल्ली पेड़ संरक्षण कानून, 1994 के सेक्शन 29 के प्रावधानों के तहत दिल्ली सरकार सार्वजनिक हित में नई दिल्ली के नेताजी नगर स्थित जीपीआरए कॉलोनी के पुनर्विकास में कुल 44.24 हेक्टेयर क्षेत्र को मुक्त करती है.

इस नोटिफिकेशन में कहा गया कि प्रोजेक्ट स्थल पर पेड़ों की कुल संख्या 3,906 है. काटे गए पेड़ों की संख्या 2,294 है और इसकी भरपाई के एवज में 24,500 पेड़ लगाए जाने की जरूरत है. इसके मुताबिक, आवेदक एनबीसीसी दिल्ली सात साल की अवधि में पुराने पेड़ों के लिए भरपाई के तहत नए पौधे लगाए जाने की खातिर सिक्योरिटी डिपॉजिट के मद में 14,19,30,000 रुपये एडवांस में देगी.

इसी तरह का एक ऑर्डर 15 नवंबर 2017 को पास किया गया और एनबीबीसी द्वारा नौरोजी नगर के पुनर्विकास से संबंधित इस ऑर्डर पर तत्कालीन सचिव (पर्यावरण और वन) केशव चंद्र ने हस्ताक्षर किए. इस ऑर्डर की कॉपी भी फ़र्स्टपोस्ट के पास है. इस मामले में काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या 1,454 थी और इसकी भरपाई के एवज में 14,650 पेड़ लगाए जाने थे और इसके लिए एनबीसीसी को 8,35,05,000 रुपये देने थे.

इसके अलावा, सरोजिनी नगर में जनरल पूल ऑफ रेजिडेंशियल अकोमोडेशन (जीपीआरए) कॉलोनी के पुनर्विकास से जुड़ी एनबीसीसी की प्रोजेक्ट रिपोर्ट में कहा गया है कि तकरीबन '13,128 पेड़ कार्यस्थल पर मौजूद हैं और तोड़-फोड़ के मकसद को ध्यान में रखते हुए 11,000 पेड़ों को काटा जाएगा और 2,128 पेड़ कार्यस्थल पर बने रहेंगे.' हालांकि, प्रोजेक्ट के मास्टर प्लान में बड़े पैमाने पर खाली जमीन रखे जाने की योजना है, लिहाजा पेड़ों को काटे जाने से होने वाले नुकसान की काफी हद तक भरपाई कर ली जाएगी.

फंड का भी इस्तेमाल नहीं कर पा रही सरकार

दिल्ली के पर्यावरणविद् व सामाजिक उद्यमी विमलेंदु झा नागरिकों की अगुवाई वाले कैंपेन 'दिल्ली बचाओ एसओएस' का भी अहम हिस्सा रहे हैं. इस पूरे मामले में उन्होंने कुछ इस तरह से अपनी राय पेश की. उन्होंने कहा,  'दक्षिणी दिल्ली के पास की कॉलोनियों को फिर से डेवेलप करने की जरूरत है, लेकिन शहरी पुनर्विकास परियोजनाओं के संदर्भ में क्षतिपूर्ति के तौर पर पेड़ लगाए जाने वाले प्रावधान का विश्लेषण किया जाना काफी जरूरी है. जो पेड़ काटे जा रहे हैं, वे तकरीबन 60 साल पुराने हैं. ऐसा एक पेड़ पांच लोगों के लिए ऑक्सीजन की सप्लाई के बराबर है. अब अगर 30 किलोमीटर दूर 10 छोटे पेड़ लगाए जा रहे हैं, तो यह संबंधित इलाके में पुराने पेड़ों को काटने से पैदा हुई पारिस्थितिकी-पर्यावरण संबंधी गड़बड़ी को किस तरह से दूर करने में सक्षम होगा?'

सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अप्रैल में पर्यावरण की बहाली के लिए आवंटित तकरीबन 90,000 करोड़ रुपये का इस्तेमाल नहीं करने के मामले में केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई थी. काटे गए पेड़ों की भरपाई के एवज में वृक्षारोपण के आयडिया की जड़ें वन (संरक्षण) कानून, 1980 में हैं. इसके तहत वैसी किसी भी गतिविधि जिसमें पेड़ कटते हैं, उसमें भरपाई के तौर पर पेड़ लगाने की बात है.

दिल्ली के पेड़ों को बचाने से जुड़े कैंपेन में शामिल पर्यावरण प्रेमियों के कोर ग्रुप का हिस्सा रहीं जूही सकलानी ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि काटे गए पेड़ों की क्षतिपूर्ति के एवज में पेड़ लगाने के मामले में वन विभाग के अधिकारियों की तरफ से सिर्फ इतना जवाब मिलता है कि वे पेड़ लगाने के लिए जमीन की खातिर डीडीए की मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं. मिसाल के तौर पर उनका कहना था कि उन्हें सूचना दी गई कि नेताजी नगर में काटे गए पेड़ों की भरपाई के एवज में पौधा लगाने के लिए जमीन की खातिर  डीडीए ने मंजूरी दे दी है.

पूरक वनरोपण बिल, 2016 में कुल इकट्ठा रकम के 90 फीसदी हिस्से के ट्रांसफर का प्रावधान है, जो फिलहाल 40,000 करोड़ रुपये के ऑर्डर का मामला है. इसके तहत राज्यों को भरपाई के तौर पर पेड़ लगाने और देश के वन संसाधनों के संरक्षण, सुधार और विस्तार से जुड़ी अन्य गतिविधियों पर काम करने की बात है.

नौरोजी नगर, नेताजी नगर और सरोजिनी नगर जीपीआरए कॉलोनियों के पुनर्विकास के लिए एनबीसीसी (केंद्र सरकार की पब्लिक सेक्टर यूनिट) और शहरी विकास मंत्रालय के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे.

इसमें कहा गया कि 6-9 मीटर के चौड़े ग्रीन बफर जोन में बड़े घने पेड़ लगाए जाएंगे और इसे बाउंड्री वॉल के साथ विकसित किया जाएगा. और सभी मौजूदा पेड़ों को भी कुछ हद तक संरक्षित किया जा सकता है. साथ ही, किनारे पर फिर से पेड़ लगाए जा सकते हैं. कागजों पर भले ही सब कुछ ठीक-ठीक नजर आता हो, लेकिन ईस्ट किदवई नगर में चले रहे पुनर्विकास प्रोजेक्ट पर लगातार नजर रख रहीं सकलानी इस बारे में अलग कहानी बयां करती हैं.

उनका कहना था, 'इन पुरानी कॉलोनियों में मौजूदा पेड़ बरगद, पीपल, नीम, आम, आमलता, अमरूद आदि के हैं. यहां पर क्रॉस-पोलिनेशन (पराग-सिञ्चन) और पक्षियों का इको-सिस्टम है,  जो ऑक्सीजन से इतर का मामला है. अब मैंने ईस्ट किदवई नगर में देखा है कि बाउंड्री वॉल के आसपास ताड़ और गूलर के सजावटी पेड़ लगाए जा रहे हैं. पारिस्थितकी-पर्यावरण का मामला संख्या और कृत्रिम तौर पर पेड़ों के बदलाव से परे है और इस पूरी प्रक्रिया में विविधता को जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई बमुश्किल या नहीं के बराबर हो रही है.'

पूर्वी किदवई नगर में एक बिल्डिंग के पास लगे सजावटी पेड़ों की तस्वीर ( तस्वीर: जूही सकलानी )

नए पेड़ लगाए जाने के मामले में आई 67% की कमी

कंची कोहली सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में बतौर पॉलिसी एनालिस्ट काम करती हैं. उन्होंने बताया कि दिल्ली में नॉन-पब्लिक अंडरटेकिंग पर सीएजी की मार्च 2017 में जारी रिपोर्ट में बताया गया कि दिल्ली में भरपाई के तौर पर पेड़ लगाने के मामले में 67 फीसदी की कमी है. रिपोर्ट के मुताबिक, एनबीसीसी ने 2014-17 के दौरान ईस्ट किदवई नगर प्रोजेक्ट के लिए 4.51 करोड़ के सिक्योरिटी डिपॉजिट पर 1,123 पेड़ों को गिराने की मंजूरी हासिल की थी. डीसीएफ (साउथ) ने इस संबंध में मंजूरी दी थी, लेकिन डिवीजन ने 2014-17 के दौरान भरपाई के तौर पर एक भी पेड़ नहीं लगाए, जबकि एनबीसीसी ने 8,165 पेड़ों की जरूरत की तुलना में महज 1,354 पेड़ ही लगाए. वन विभाग की फाइलों में यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं था कि उसने एनबीसीसी द्वारा पेड़ लगाए जाने का काम सुनिश्चित करवाया.

कोहली का कहना था, 'इसके अलावा, इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि एनजीटी ने सितंबर 2017 में आदेश जारी कर कहा था कि पेड़ को गिराने से पहले पेड़ लगाने का काम होना चाहिए. आज सड़कों पर उतरे पर्यावरण कार्यकर्ता वन विभाग और एनबीसीसी की तरफ से इस ऑर्डर का पालन चाहते हैं.' एक और अन्य अहम पहलू पर्यावरण आकलन रिपोर्ट का है, जिसे एनबीसीसी या पुनर्विकास के काम में लगी किसी इकाई को केंद्र सरकार के साथ साझा करने की जरूरत है.

झा ने बताया, 'इस मामले में प्रभाव का आकलन संबंधी रिपोर्ट तीन महीने के भीतर सौंपी जानी थी और यह असर के बारे में ठीक-ठीक नहीं बताता है. मसलन इस बात को लेकर प्रावधान होना चाहिए कि पेड़ों को काटे जाने का भूजल के मामले में क्या असर होता है.' नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पिछले साल सितंबर में कहा था कि भूजल के मामले में दिल्ली का जरूरत से ज्यादा दोहन हो चुका है. एनजीटी ने इस सिलसिले में स्थानीय अधिकारियों से यह बताने को कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी में घटते जल स्तर की समस्या से निपटने के लिए उनकी क्या योजना है?

सकलानी कहती हैं, 'इन पर्यावरण आकलन रिपोर्ट को इकट्ठा करने के लिए कंपनियों को हायर किया जाता है और 'क्या लैंड यूज में बदलाव होने जा रहा है' जैसे सवाल हैं, जिसका जवाब 'नहीं' में है. जब तक पर्यावरण मंत्रालय सीधा-सीधा इस तरह के सवाल पूछना शुरू नहीं करता है कि क्या जो नए पेड़ लगाए जा रहे हैं, वो चौड़ाई या प्रजाति के मामले में पुराने से कम नहीं होंगे, तब तक पर्यावरण आकलन प्रक्रिया का मामला बेहद सतही बना रहेगा.'

बड़े और सघन पेड़ों के बदले सजावटी पेड़ लगाए जाने से नहीं बनेगी बात 

कुश सेठी ने ग्रीन केमिस्ट्री में पोस्टग्रेजुएट डिग्री हासिल की है और वह दिल्ली के पर्यावरण को बचाने को लेकर काम कर रहे हैं. वह दिल्ली के पेड़-पौधे वाले इलाके के मुख्य हिस्से में वॉक का आयोजन करते हैं, ताकि लोगों को पर्यावरण की विविधता के बारे में पता चल सके, जो पेड़ों को काटे जाने के कारण खत्म हो रही है. वह इस सिलसिले में हाल में हुए विरोध-प्रदर्शनों का हिस्सा भी थे. उनका कहना था कि समस्या यह है कि पेड़ों को ग्रीन कवर के केंद्र से इस तरह काटा जाता है कि यह साफ-साफ नहीं दिखता है. सजावटी प्रजातियों के छोटे पौधे ग्रीन कवर को हुए नुकसान की भरपाई नहीं कर सकते, यह साबित करने के लिए  उन्होंने सैटेलाइट तस्वीरें ट्वीट कीं. इसमें 2012 से 2017 के दौरान फॉरेस्ट कवर में गिरावट नजर आती है.

एक ओर जहां शहरी पुनर्विकास को ध्यान में रखते हुए 20,000 पेड़ों को काटे जाने की आशंका के मद्देनजर एम्स के डॉ. कौशल कान्त मिश्रा की तरफ से जनहित याचिका दाखिल किए जाने के बाद आम आदमी पार्टी के सदस्यों ने सिविल सोसायटी की अगुवाई वाले प्रदर्शन का समर्थन करने का वादा किया है, वहीं आयोजकों का कहना था कि वे इस कैंपेन को पूरा तरह से गैर-राजनीतिक रखेंगे. दरअसल, जब तक इस मामले को राष्ट्रीय मीडिया ने सुर्खी नहीं बनाई, तब तक किसी भी पार्टी ने इस मसले के समाधान की दिशा में राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई.