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क्यों तीन मूर्ति चौक संग जुड़ा 'हाइफा चौक' का नाम?

पहले विश्वयुद्ध के वक्त यानी 100 साल पहले हिंदुस्तान के वीर योद्धाओं ने हाइफा को तुर्कों से मुक्त कराया था

FP Staff

दिल्ली के तीन मूर्ति चौक को अब तीन मूर्ति हाइफा चौक क नाम से जाना जाएगा. इसे भारत और इजरायल के संबंधों को मजबूत बनाने की दिशा में किया गया पहल समझा जा सकता है. रविवार को इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन मूर्ति मेमोरियल में एक औपचारिक समारोह में इसका नामकरण किया.

जानकारी के मुताबिक इजरायल में हाइफा नामक जगह है. ये जगह भारत और इजरायल के सौ साल पुराने रिश्ते को जोड़ता है. पहले विश्वयुद्ध के वक्त यानी 100 साल पहले हिंदुस्तान के वीर योद्धाओं ने हाइफा को तुर्कों से मुक्त कराया था.


हाइफा इजरायल में समुद्र के किनारे बसा एक छोटा सा शहर है. लेकिन इस समय ये शहर दुनिया के दो मजबूत लोकतंत्रों को जोड़ने वाली सबसे बड़ी कड़ी बन गया है. 100 साल पुराने युद्ध में हिंदुस्तानी वीरता ने इन्हें और मजबूती से जोड़ा है. ये लड़ाई 23 सितंबर 1918 को हुई थी. आज भी इस दिन को इजरायल में हाइफा दिवस के रूप में मनाया जाता है.

तीन रियासतों की फौज ने मिलकर किया था कब्जा 

तीन मूर्ति पर कांस्य की तीन मूर्तियां हैदराबाद, जोधपुर और मैसूर लैंसर का प्रतिनिधित्व करती हैं जो 15 इंपीरियल सर्विस कैवलरी ब्रिगेड का हिस्सा थे. प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारत की 3 रियासतों मैसूर, जोधपुर और हैदराबाद के सैनिकों को अंग्रेजों की ओर से युद्ध के लिए तुर्की भेजा गया.

हैदराबाद रियासत के सैनिक मुस्लिम थे, इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें तुर्की के खलीफा के विरुद्ध युद्ध में हिस्सा लेने से रोक दिया. केवल जोधपुर व मैसूर के रणबांकुरों को युद्ध लड़ने का आदेश दिया.

हाइफा पर कब्जे के लिए एक तरफ तुर्कों और जर्मनी की सेना थी तो दूसरी तरफ अंग्रेजों की तरफ से हिंदुस्तान की तीन रियासतों की फौज. कुल 1,350 जर्मन और तुर्क कैदियों पर भारतीय सैनिकों ने कब्जा कर लिया था.