view all

दिल्ली में नशे की लत पार्ट 1: राजधानी में नशा इस जगह, उस जगह और हर जगह की समस्या है!

पूरी दिल्ली में फैले नशे के कारोबार पर फर्स्टपोस्ट की एक्सक्लूसिव सीरीज का पहला पार्ट

Pallavi Rebbapragada

उस दिल्ली से दूर जहां गाढ़े लाल रंग वाले किले से मार्मिक भाषण सुनाए जाते हैं, जहां हिंदुस्तानी होने का जश्न मनाता गाजे-बाजे के साथ परेड करता जत्था रायसीना हिल्स का रुख करता है, उस दिल्ली से भी दूर जो अपने हिपस्टर मार्केट के नीम-अंधेरे में टहल और चहल करती है. लूबुतान और गूची बुटीक वाली दिल्ली से दूर, फ्वाग्रा और सौतर्न के मेल के फ्रेंच व्यंजन परोसने वाले रेस्टोरेंट की दिल्ली से भी दूर! अपनी हंसी-खुशी में एकरस लगती इस राजधानी से दूर आपको दिल्ली के दिल में खूब गहरे उतरना होता है, वहां जहां हवा धूल भरी है, जहां कूड़े के बड़े-बड़े डब्बे खुले पड़े हैं कि कोई सुपरहीरो आएगा और कूड़े से निजात दिलाएगा, उस दिल्ली में जो पेशाब से गंधाती है, जहां सड़क पर बेसबब भटकते बच्चों से ज्यादा जानदार गाय और बकरियां जान पड़ती हैं.

ऊंचे तल्ले की जूतियों वाले ऊंचे लोग बताएंगे आपको अपने आनंद लोक की कथाएं कि ब्लूबेरी के स्वाद वाला वह कागज कैसा होता है जिसमें तरंग पैदा करने वाली ‘बूटी’ मोड़ी जाती है, वे आपको बताएंगे कि हिमाचल की पहाड़ियों पर टहल मारते मलाना का कौन सा स्वाद उनके दिमाग की नसों पर छाता चला गया. वे बता सकते हैं आपको एम्सटरडम के अपने पिछले सफर की बात जब उन्होंने भांग मिला एक नए किस्म का हैशकेक बनाना सीखा.


नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की दिल्ली इकाई के मुताबिक जिन इलाकों में कोकीन की तस्करी चलती है उसमें दक्षिण दिल्ली के पॉश (संभ्रांत) इलाके जैसे साकेत, ग्रेटर कैलाश और सफदरजंग एंक्लेव शामिल हैं. इसके उलट, मौजूद सूची के मुताबिक चरस, हशीश या गांजा की तस्करी उत्तरी दिल्ली के मजनू का टीला वाले इलाके में ज्यादा आम-फहम है.

मजनू का टीला तिब्बती शरणार्थियों की नई पीढ़ी की रिहाइश है. चरस, हशीश और गांजा की तस्करी मंगोलपुरी और सुल्तानपुरी जैसे अपराध के लिए बदनाम इलाके में भी प्रचलित है. कुछ यही सूरत दिल्ली की उत्तर-पूर्वी सीमा से लगती पुनर्वास बस्ती जेजे कॉलोनी बवाना और पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का है.

एल्कोहलिक्स एनोनिमस और नॉरकोटिक्स एनोमिनस नाम के चैप्टर भी दिल्ली में बड़े ताकतवर हैं. इनमें हरेक चैप्टर के तकरीबन 5000 सदस्य हैं. चैप्टर के सदस्य स्त्री और पुरुष, नशेड़ियों में प्रचलित एक अंतर्राष्ट्रीय रीत का पालन करते हैं, वे अपनी इस बुरी आदत में एक-दूसरे के मददगार होते हैं.

'मैं एल्कोहल एनोनिमस का सदस्य रह चुका हूं और मैं आपको बता सकता हूं कि दोनों ही समुदायों में आपको सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल से लेकर रिक्शाचालक तक मिल जाएंगे, यह समस्या वर्ग का भेद नहीं मानती और मानसिक शांति, परिवार तथा कामकाजी जिंदगी पर इसका असर एक सा जान पड़ता है.' यह कहना है यश बादल का जो दो साल पहले नशे की आदत से उबरे लेकिन अब भी एल्कोहल एनोनिमस के सदस्य हैं. मिसाल के लिए दिल्ली-हरियाणा बार्डर पर कायम छत्तरपुर के इलाके में अमीर-गरीब नशेड़ियों के पुनर्वास केंद्र (नशामुक्ति के केंद्र) बने हुए हैं.

यहां एक पुनर्वास केंद्र भूमिका फाउंडेशन है जहां आपको साधारण डोरमेट्री मिलेगी और नशे से छुटकारा पाने के दौरान ठहरने या फिर इसके बारे में परामर्श देने के लिए कमरे बने हुए हैं. यहां रुकने के लिए आपको महीने के 15 हजार रुपए चुकाने होते हैं. लेकिन इसी इलाके में बना सेफ हाउस वेलनेस रीट्रिट किसी ख्वाबगाह की तरह है.

इसमें जिमनेजियम, तरणताल और रसोईघर में सहायता करने के लिए आपको शेफ तक मिलेंगे. यहां नशे की लत का शिकार कोई मरीज तीन महीनों के लिए 9 लाख रुपये देकर उपचार के लिए ठहर सकता है.

मुमकिन है, धनी और गरीब एक ही नशे की अलग-अलग किस्मों की लत के शिकार हों लेकिन कहीं गहरे में और एक ना नजर वाली जमीन पर दोनों एक हैं. फर्स्टपोस्ट ने दिल्ली के हर तरफ बसे शहराती गांवों में जाकर पता लगाया कि आखिर नशे की शिकार होती दिल्ली अपने साथ कर क्या रही है.

न्यू सीलमपुर, उत्तरपूर्वी दिल्ली 

साल 2016 के अक्टूबर में फ़र्स्टपोस्ट ने न्यू सीलमपुर इलाके में जारी नशे की समस्या पर जमीनी रिपोर्टों का संकलन तैयार किया था. उन रिपोर्टों को शाया हुए अब एक साल का अरसा गुजर गया है लेकिन हमने देखा कि मुस्लिम बहुल पुनर्वास बस्ती में हालात बहुत ज्यादा नहीं बदले हैं.

आज भी आपको हर घर में कोई ना कोई नशेड़ी मिल जाएगा. पिछले साल विधायक हाजी इशराक खान ने हमें बताया था कि डीडीए ने उन्हें नशामुक्ति केंद्र बनाने के लिए जमीन नहीं दी है. पूरे एक साल का अरसा गुजर गया है लेकिन अब भी इलाके में कोई सरकारी सहायता प्राप्त नशामुक्ति केंद्र नहीं है.

सीलमपुर की गलियों में नशेड़ी पड़े मिलते हैं, यहां तक कि न्यू उस्मानपुर पुलिस थाने के बाहर पार्क के आस-पास भी उन्हें जमावड़ा लगाते देखा जा सकता है लेकिन कोई भी इन बातों को लेकर कुछ करता नजर नहीं आता.

इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन विहेवियर एंड अलाएड साइंसेज(आएसबीएएस) से महज सवा छह किलोमीटर दूर है न्यू सीलमपुर. लेकिन यहां एक बात गौर करने लायक है कि मेंटल हेल्थ केयर एक्ट 2017 में कहा गया है कि किसी स्वतंत्र मरीज का उपचार बगैर उसकी तर्कसंगत सहमति के नहीं किया जा सकता.

दरअसल ‘सहमति’ शब्द का एक्ट में कम से कम 35 दफे इस्तेमाल हुआ है. इलाके के एक पुराने बाशिंदे आसिफ चौधरी ने बताया कि यहां पूरा का पूरा परिवार घटिया दर्जे के गांजे की लत का शिकार मिल जाएगा आपको और रसायनिक पदार्थों से बनी नशे की चीजें आपको खुलेआम दवा की दुकानों पर बिकती मिल जाएंगी.

'नशा यहां जिन्दगी का हिस्सा है. मैंने छोटे-छोटे बच्चों को अपने भाइयों और पिता को साथ स्मैक सूंघते देखा है. यहां तक कि लड़कियां भी नशा करती हैं. ऐसे में मुमकिन नहीं कि लोग अपने बारे में यह मानें कि वे परेशानी में हैं, सो खुद को किसी नशामुक्ति केंद्र में भर्ती करवाने की बात वे भला क्या सोच सोचेंगे! '

आसिफ चौधरी ने बताया कि नशेड़ी इलेक्ट्रिक ट्रांसफॉरमर तक चुरा लेते हैं, वे चोरी तथा अपहरण जैसे वारदात को अंजाम देते हैं. यहां लोग अपनी जीविका चलाने के लिए पीवीआर पाईप के ऊपर की प्लास्टिक को उधेड़ देते हैं और यह प्लास्टिक आपको यहां ढेर के ढेर पड़ा मिल जाएगा.

पाइप से तांबा जल्दी से जल्दी हासिल हो इसके लिए प्लास्टिक की पाइप में लोग आग लगा देते हैं और इससे रासायनिक धुआं फैलता है. अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए आसिफ चौधरी ने कहा कि यहां, 'नशे की समस्या का समाधान हो जाए तो हमलोग खुली नालियों और प्रदूषण के बढ़ते स्तर की परेशानी से निजात के उपाय करें,' आसिफ ने अपनी बात अभी पूरी की ही थी कि बगल से काले धुएं का एक तेज गुब्बार उठा और इस गुब्बार ने जल्दी ही हमें ढंक लिया.

न्यू सीमापुरी, उत्तर पूर्वी दिल्ली

न्यू सीमापुरी में मादक पदार्थ बेचने वाले लोगों पर ठीक उसी तरह झपट्टा मारते हैं जैसे कोई चील अपने शिकार पर झपटती है. यहां दो किशोर उम्र के लड़कों ने हमारे सामने यह बात मान ली कि वे 200 रुपए की दिहाड़ी पर नशे का सामान बेचते हैं.

दोनों किशोरों ने हमें साइकिल का पंक्चर लगाने वाली उजले और लाल रंग की एक ट्यूब 50 रुपए में बेचने की पेशकश की और गांजे की एक नत्थी की हुई पुड़िया अलग से 50 रुपए में बेचनी चाही.

हमने पूछा कि तुमलोगों को नशे की ये चीजें किसने बेचने को दीं तो दोनों भागकर घनी बस्ती में दूर कहीं गुम हो गए. राजीव कुमार इस इलाके में शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित एक संस्था पारदर्शिता वेलफेयर फाउंडेशन चलाते हैं.

उन्होंने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि बीते चार-पांच सालों में इलाके में नशे का चलन बहुत तेजी से बढ़ा है, 'यहां हर दूसरी गली में हर किस्म के नशे की चीजें मिल जाती हैं और नशा करने वालों में ज्यादातर कमउम्र हैं. इससे अपराध की दर, खासकर लड़कियों के खिलाफ होने वाले अपराध की दर में बढ़ोतरी हुई है. स्कूल जाती लड़कियों के साथ रास्ते में छेड़खानी की घटनाएं होती हैं और लड़कियों के लिए अपने घर से निकलना मुश्किल हो गया है.'

राजीव ने यह भी कहा कि न्यू सीमापुरी में चेन की छिनैती और एसिड अटैक जैसी अपराध की घटनाएं आम हो चली हैं.

किशोर उम्र के लड़कों ने हमें यह पंक्चर ट्यूब और नत्थी किया हुआ गांजे का पैकेट 50-50 रुपए में बेचने की कोशिश की

राजीव के एनजीओ के बिल्कुल पास ही एक पुलिस थाना है तो भी नशे की चीजें बेचने वाले हमतक पहुंच गए थे. राजीव ने माना कि यहां पुलिस एकदम नकारा है. राजीव के जोर देने पर महिलाओं का एक समूह उसके ऑफिस में हमसे बातचीत करने के लिए आया.

इन महिलाओं ने जो कहानियां सुनायीं उसमें कुल मिलाकर यह था कि नौ साल का बच्चा भी इस इलाके में गांजे के पैकेट बेचता फिरता है और 14 साल का कोई किशोर अपने मां-बाप के सामने ही खुद को नशे की सूई भोंकता देखा जा सकता है. एक महिला ने कहा कि अपने शरीर को नशे से जलाने के कारण ये बच्चे जवान होने से पहले ही बूढ़े हो जाएंगे.

भलस्वां डेयरी, उत्तर पश्चिम दिल्ली 

इस इलाके में ज्यादातर कूड़ा उठाने वाले रहते हैं और इलाका 21 एकड़ में फैले एक लैंडफिल (भंगाल) के नजदीक है जहां हर रोज 2700 टन कूड़ा फेंका जाता है. इलाके की सामाजिक कार्यकर्ता पुष्पा ने कहा, 'यहां पर बच्चे कचरा उठाते हैं और रोज नशा करते हैं.' पुष्पा भलस्वां में हो रहे अवैध निर्माण कार्य, नालियों की समस्या और नगरपालिका से जुड़ी अन्य परेशानियों के बारे में दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल को अक्सर ट्वीट किया करती हैं.

कचड़े के ढेर से निकलने वाली बदबू के कारण भलस्वां में सांस लेना भी मुश्किल है. ढह चुके सुलभ शौचालय से बाहर निकलने वाले एक लड़के ने कहा, 'नशे के बाद ऐसी हवा में सांस लेना आसान हो जाता है. उसने कबूल किया कि टूटे हुए सुलभ शौचालय में वह स्मैक सूंघने गया था. उसने हमें एक पैकेट दिखाया जिसपर लाल ईंट की तरह रंग वाला एक बिंदु बना था. 'ये सस्ता वाला है, पूरे वाला नशा ह्वाइट होता है, लड़के ने कहा और छोटे-छोटे डग भरता हुआ आगे बढ़ गया.

भलस्वां डेयरी का एक किशोर अपना पसंदीदा नशा दिखाते हुए

पुष्पा इसके बाद हमें एक प्रौढ़ उम्र की महिला के पास ले गई. हमने इलाके में जारी नशे की समस्या के बारे में पूछा तो वह रोने लगी. उस महिला ने बड़े दुख के साथ बताया कि उसके तीन लड़के नशे की लत के शिकार है- एक चरस पीता है, दूसरा गांजा तो तीसरा शराबी है. वह दुआ मांगती है कि आगे जिंदगी कायम रही तो वह अपने चौथे बेटे को नशे की लत के चपेट में आने से बचाएगी.

भलस्वां डेयरी और न्यू सीलमपुर के निवासियों ने टूटी-गिरी इमारतों को लेकर चिंता जताई. नशेड़ियों के लिए ऐसी इमारतें सुरक्षित अड्डे का काम करती हैं.

मीना बाजार, उत्तरी दिल्ली 

हमलोग मीना बाजार से होकर आईटीओ के नजदीक नई दिल्ली रेलवे स्टेशन तक आए और देखा कि कमउम्र बच्चे सड़कों पर जगह-जगह झुंड बनाकर बैठे हैं. यही वो जगह है जहां नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली आपस में मिल जाती हैं.

फिरोजशाह कोटला स्टेडियम से कुछ मिनटों की दूरी हमें एक लड़का मिला. उसने अपना नाम मोहम्मद बताया. वह अपने दोस्तों के साथ पूरी आरामख्याली के साथ बैठा था. ये लड़के स्मैक पी रहे थे.दो सुट्टे मारने के बाद उसने मजाक में कहा कि कोई उसे क्रिकेट की बैट दिला दे तो वह नशा करना छोड़ देगा.

मीना बाजार के नजदीक महिलाओं और बच्चों के लिए एक छोटा सा नशामुक्ति केंद्र है. इस साल के शुरुआती महीनों में हमने अपनी खोजबीन के दौरान नशामुक्ति केंद्र की लड़कियों से बातचीत की थी.

लड़कियों ने बताया था कि मीना बाजार में बहुत से भीख मांगने वाले लोग रहते हैं और सुलेशन (सॉल्यूशन) बेचकर रुपए कमाते हैं. केंद्र में आई नशे की लत से छुटकारा पा रही एक नशेड़ी फातिमा (बदला हुआ नाम) को ठीक-ठीक पता नहीं कि उसे पिता की हत्या हुई या शराब पीने की अपनी बचपन से चली आ रही लत के कारण वह मरा.

फातिमा अपने छुटपन के समय से ही रेडलाइट पर भीख मांगा करती थी और उसे ‘सुलेशन’ सूंघने की आदत थी. उसे इसके एक बोतल के लिए 50 रुपए खर्च करने होते थे. फातिमा अब डांस करना सीख रही है और नशामुक्ति केंद्र पर शुरुआती गणित और अंग्रेजी के पाठ सीखने में मगन है.

नशामुक्ति केंद्र में काउंसलर का काम करने वाली एक महिला ने बताया, 'इन लड़कियों में ज्यादातर सड़कों से लाई गई होती हैं. हम इन्हें खाना बनाना, ड्राइंग करना सिखाते हैं और ब्यूटी कोर्स की भी तालीम देते हैं. लड़कियों को यहां खाना मिलता है और रहने के लिए सुरक्षित ठिकाना भी जिसे ये लड़कियां नशे की अपनी आदत की तुलना में कहीं ज्यादा अहम मानती हैं.'

लोनी (दिल्ली-उत्तरप्रदेश बार्डर)

इंडियन मेडिसिन डेवलपमेंट ट्रस्ट (एनजीओ) के गिरीश चंद्र से नशे की लत की समस्या के बारे में पूछिए तो वे बड़ी चिंता भरी आवाज में बताते हैं, 'हमलोग 2011-2012 में, नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन का एक कार्यक्रम चला रहे थे. यह लक्ष्य तय करके हस्तक्षेप करने और एड्स के बारे में जागरुकता पैदा करने के ख्याल से लोनी में चलाया जा रहा था जो कि दिल्ली-यूपी बार्डर का इलाका है. हमने देखा कि तकरीबन 700 लोग सूइयों के जरिए नशा लेने के आदी हैं और वे एक ही सूई का बार-बार व्यवहार कर रहे हैं.'

गिरीशचंद्र ने अफसोस के साथ बताया कि उस खास परियोजना के लिए मिला हुआ पैसा तो खत्म हो गया लेकिन समस्या अब भी बनी हुई है. गिरीशचंद्र की मानें तो, 'बार्डर के इलाके में कानून-व्यवस्था की हालत लचर होती है और लोग कहीं ज्यादा लाचार होते हैं. साफ-सफाई, रोगों का संक्रमण और बीमारी का भय जैसी बातें नशेड़ियों के मन में ज्यादा देर तक नहीं टिकतीं लेकिन बाकी लोगों को इसके बारे में चिंता करनी चाहिए.'

इंडियन मेडिसीन डेवलपमेंट ट्रस्ट के स्वयंसेवक की एक फाइल फोटो. वह लोनी के एक बाशिंदे को सीरिंज की सूई दोबारा इस्तेमाल करने के नुकसान के बारे में बता रहा है

संगमविहार, दक्षिण दिल्ली

दक्षिणी सीमा पर हरियाणा की शुरुआत से पहले दिल्ली का विस्तार बड़े आहिस्ते से खत्म होता है. इस जगह पर छिटपुट जंगल और बंजर पड़ी जमीन है. गड्ढे से भरी पतली-संकरी गलियों से होकर आप इस इलाके में संगम विहार की बस्तियों तक पहुंचते हैं.

सिलाई-कढ़ाई और मांस-विक्रेताओं की दुकानों से भरी इस जगह में आपको कहीं कहीं साधारण सा नशामुक्ति केंद्र बना मिल जाएगा. इनमें से एक है हिना नशा मुक्ति केंद्र. इसे नशे की लत छोड़ चुके लोग चलाते हैं.

यहां हमारी मुलाकात नशे की लत से छुटकारा पाने आए 23 साल के एक नौजवान से हुई. उसने बताया कि नशे की लत उसे 17 साल की उम्र में लगी और उसकी पढ़ाई तबाह हो गई.

नशे की लत के कारण वह मैकेनिकल ड्राफ्ट्समैन के कोर्स से बाहर हो गया. यह कोर्स वह नजदीक के आईटीआई से सीख रहा था. उसने पूरे तीन साल तक गांजे का नशा किया फिर उसे स्मैक की आदत लग गई और नौजवान के मुताबिक ये दोनों चीजें संगमविहार में आसानी से मिल जाती हैं.

हिना नशामुक्ति केंद्र के भीतर एक पोस्टर लगा है. इसपर लिखा है कि नशे की लत के शिकार किसी व्यक्ति को सोच की किन सीढ़ियों से गुजरकर ठीक होना होता है. यह केंद्र नशे की आदत छोड़ चुके लोग चलाते हैं.

सुल्तानपुरी, उत्तरपूर्वी दिल्ली

सुल्तानपुरी दरअसल निम्न मध्यवर्गीय आवासीय बस्ती है और यह बस्ती दो शहरी गांवों नांगलोई और मंगोलपुरी के बीच में है. यहां पहुंचने के लिए आपको रेलवे लाइन क्रॉस करनी पड़ सकती है और सीलन भरे अंडरपास से भी गुजरना पड़ सकता है. यहां नशे की लत से छुटकारा पाने के लिए अपने से जूझ रहे लोग अपनी पहचान छुपाने की शर्त पर बताते हैं कि इलाके में गैरकानूनी ढंग से सट्टा चलता है और गांजा तथा स्मैक की खुलेआम तस्करी होती है. यहां लोगों ने एक बेनामी चिट्ठी दिखायी जिसे सरकारी अधिकारियों को भेजा गया था.

चिट्ठी में इलाके की खराब दशा पर अधिकारियों का ध्यान खींचने की कोशिश की गई थी. चिट्ठी में मादक पदार्थों के अवैध व्यापार, सट्टाबाजी और नौजवानों के रोजगार के बारे में लिखा था. चिट्ठी में आरोप लगाया गया था कि दिल्ली पुलिस नाकारा है और नशे का धंधा इलाके में उसकी शह पर चल रहा है.

इलाके में चल रहे नशे के कारोबार और सट्टे पर लगाम लगाने की मांग करते हुए केंद्र और राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों को भेजी गई चिट्ठी की प्रतिलिपि. यह चिट्ठी सुल्तानपुरी के निवासियों ने लिखी है.