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दिल्ली-एनसीआर को स्मॉग चैंबर बनने से रोकने के लिए हम कितने गंभीर हैं?

हर साल प्रदूषण पर चर्चा होती है और सर्दी बीतते ही भुला दी जाती है

Ravishankar Singh

दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के बढ़ते स्तर को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कड़े फैसले लेने की शुरुआत कर दी है. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक सख्त निर्देश जारी करते हुए दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी.

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखे बेचने वाले सारे लाइसेंसधारकों के लाइसेंस तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट का यह बैन 1 नवंबर 2017 तक बरकरार रहेगा.


गौरतलब है कि वायु प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल ही आदेश जारी किया था कि दिल्ली-एनसीआर में पटाखे नहीं बिकेंगे, जिसके बाद से दिसंबर 2016 से दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर पूरी तरह से बैन था. बीते 12 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखे बेचने पर लगी रोक को कुछ शर्तों के साथ हटा लिया था.

सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश 12 सिंतबर के आदेश में संशोधन के बाद आया है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए कहा कि कोर्ट एक बार ये देखना चाहता है कि दिवाली पर क्या हालात होंगे?

सर्दी शुरू होते ही बढ़ जाती है समस्या

पिछले कुछ सालों से सर्दी की शुरुआत के साथ ही दिल्ली-एनसीआर में रह रहे लोगों की मुसीबत भी शुरू हो जाती है. यहां रह रहे लोगों की सांसें वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर से घुटने लगती हैं. राजधानी का हाल इतना बुरा है कि देश यह सबसे महत्वपूर्ण इलाका कुछ समय के लिए एक स्मॉग चैंबर बन जाता है.

इस समय में हरियाणा-पंजाब में किसानों के पराली जलाना, गाड़ियों से निकलने वाला धुआं पटाखों का धुंआ आपस में मिलकर प्रदूषण बढ़ाते हैं. फिलहाल दिल्ली का अधिकतम तापमान 35.4 डिग्री और न्यूनतम तापमान 22.4 डिग्री दर्ज किया गया है जो कि सामान्य से दो डिग्री ज्यादा है.

दिल्ली के पीतमपुरा में पीएम-10 का स्तर 150 और पीएम-2.5 का स्तर 245 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया है. दिल्ली यूनिवर्सिटी में पीएम-2.5 का स्तर 273, लोदी रोड पर पीएम-10 का स्तर 214 दर्ज की गई है.

वहीं आनंद विहार में पीएम-10 में काफी बढोतरी दर्ज की गई है. आनंद विहार में वायु प्रदूषण सामान्य से 5 गुना तक पीएम-10 के स्तर पर पहुंच गया है. रविवार शाम 7.30 बजे आनंद विहार में पीएम-10 का स्तर 543 दर्ज किया गया जो  खतरे के स्तर पर पहुंच गया है.

भारत में राष्ट्रीय मानकों के मुताबिक पीएम-2.5 का स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, जबकि पीएम-10 के लिए यह स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए.

पिछले साल दीपावली के बाद की एक तस्वीर

पहले भी किए जाते रहे हैं दावे

साल 2015 में केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर एक कार्ययोजना तैयार की थी. इसके तहत वायु प्रदूषण से जुड़ी समस्याओं का निपटारा एक तय समय-सीमा में करने का दावा किया गया था.

इस कार्ययोजना में पराली जैसी समस्या का हल अधिकतम छह महीने के भीतर करने की बात कही गई थी, लेकिन जमीनी हकीकत देखकर यह कहा जा सकता है कि सरकार इस कार्ययोजना पर गंभीर नहीं है.

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी), पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण(ईपीसीए) और खुद सुप्रीम कोर्ट की सख्ती भी बेअसर साबित हो रही है. ताजा हालात यह है कि हरियाणा में पिछले 15 दिनों में पराली जलाने की सौ से ज्यादा मामले सामने आए हैं, वहीं पंजाब सरकार ने केंद्र से इसके एवज में फंड की मांग कर दी है. केंद्र से फंड न मिलने के चलते, पंजाब सरकार सख्ती भी नहीं दिखा रही है.

इसके अलावा साल 2015 में तैयार कार्ययोजना में वाहनों से होने वाले उत्सर्जन के स्तर को भी तीन महीने के भीतर कम करने की बात कही गई थी, जो पूरी तरह से अभी तक भी अमल में नहीं लाया जा सका है.

वायु प्रदूषण को लेकर दिल्ली सहित एनसीआर के क्षेत्र में आने वाले सभी राज्यों की हालत यह है कि अभी तक एक भी राज्य वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अपना एक्शन प्लान ही नहीं बना पाया है.

पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण(ईपीसीए) के अध्यक्ष डॉ भूरेलाल मीडिया से बात करते हुए कहते हैं, ‘हमे जानकारी मिली है कि हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने के कुछ मामले सामने आए हैं. ईपीसीए ने इसके लिए हरियाणा और पंजाब सरकार से जवाब मांगा है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति(डीपीसीसी) ने दिल्ली में स्थिति पर नजर रखने के लिए कुछ पेट्रोलिंग टीमें गठित की है. अगर इस साल फिर स्मॉग चैंबर बनने की नौबत आई और सुप्रीम कोर्ट ने हमसे रिपोर्ट मांगी तो हम किसी के प्रति कोई भाईचारा नहीं निभाएंगे.’

सांस के अलावा भी होती हैं बीमारियां

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ अचल श्रीवास्तव फर्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘देखिए दिल्ली में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है. इससे सांस संबंधी बीमारियां सबसे ज्यादा फैलती हैं. सबसे ज्यादा असर दमे और सांस के मरीजों पर पड़ता है. स्मॉग से फेफड़ों तक हवा पहुंचाने वाली सांस नली में रुकावट, सूजन, रुखेपन की समस्या शुरू होने लगती है.’

डॉ श्रीवास्तव आगे कहते हैं, ‘वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा असर फेफड़ों पर पड़ता है. फेफड़े खराब होने लगते हैं, जो कि काफी खतरनाक है. आप कार में देखते हैं कि एक एअर क्लीनर होता है जिसे 15-20 हजार किलोमीटर चलाने के बाद बदलना पड़ता है, लेकिन यह सुविधा हम लोगों के फेफड़ों में उपलब्ध नहीं है. फेफड़े के अंदर एक बार जो कण चला जाता है वह बाहर नहीं निकलता.

इसके साथ ही वायु प्रदूषण के कारण त्वचा की बीमारियां भी होती हैं. साथ ही मानसिक परेशानियां और चक्कर आने भी शुरू हो जाते हैं. कुछ मामलों में लोगों को नींद भी ज्यादा आने लगती है.’

पिछले कुछ दिनों से प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी के बाद ईपीसीए की टीमें दिल्ली की सड़कों पर उतर आई हैं. ईपीसीए की कई टीमें दिल्ली में औचक निरीक्षण कर रही हैं. इस निरीक्षण की शुरुआत बीते शुक्रवार से ही हो गई है. ईपीसीए के मुताबिक शुरुआती जांच में कई अनियमितताएं पाई गई हैं, जिसे दुरुस्त किया जा रहा है. लेकिन जैसे ही सर्दियां खत्म होती हैं प्रदूषण का मामला भी ठंडे बस्ते में चला जाता है.