view all

सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के भरोसे सरकार और एजेंसियां अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकतीं

सुप्रीम कोर्ट ने पटोखों को फोड़ने के लिए एक निश्चित समय सीमा निर्धारित की थी. पटाखे फोड़ने की समय सीमा शाम 8 बजे से रात 10 बजे तक निर्धारित की गई थी. लेकिन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को ताक पर रखते हुए जमकर पटाखे फोड़े

Ravishankar Singh

पिछले साल की तुलना में इस साल भी दिवाली पर दिल्ली-एनसीआर में जमकर पटाखे फोड़े गए. दिल्ली-एनसीआर में लगातार दूसरे साल भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी देखने को मिली. देश में प्रदूषण पर काम करने वाली कई एजेंसियों का मानना है कि दिल्ली-एनसीआर में दिवाली की रात के बाद प्रदूषण के स्तर में 65 से 70 गुना की बढ़ोतरी हुई है.

बता दें कि दिवाली पर पटाखे फोड़ना कोई नई बात नहीं है, लेकिन पिछले कुछ सालों से दिल्ली-एनसीआर की आवोहवा लगातार बद से बदतर होती जा रही है. केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय, एनजीटी, कई राज्य सरकारें और प्रदूषण रोकने के लिए बनाई गई सरकार कई एजेंसियां जब प्रदूषण को नियंत्रित करने में नाकाम साबित हो रही थी तो ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अपने हाथ में लिया.


लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को भी पिछले कुछ सालों से अनदेखी शुरू हो गई. लोगों के साथ-साथ कुछ नेताओं को भी लगने लगा कि सुप्रीम कोर्ट बेवजह हर मामले में हस्तक्षेप करने लगी है. नेताओं के साथ कुछ लोग भी अपनी इस करतूतों को सोशल साइट्स पर बड़े शोक और शान से साझा कर रहे हैं.

दिवाली के बाद दिल्ली की सुबह

सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ताक पर रखते हुए जमकर पटाखे फोड़े

पिछले साल भी सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर के लिए दिवाली पर एक सख्त गाइडलाइंस जारी की थी. पिछले साल भी सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस को लोगों ने अनसुना कर दिया था. ऐसे में इस बार लगने लगा था कि लोग सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस को जरूर मानेंगे, लेकिन इस साल भी लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस मानने से इंकार कर दिया. दिवाली की रात दिल्ली-एनसीआर में जिस तरह से पटाखे फोड़े गए हैं, उससे ऐसा ही लग रहा है.

एक अनुमान के मुताबिक, सिर्फ दिल्ली में ही इस साल दिवाली पर करीब 50 लाख किलोग्राम के पटाखे फोड़े गए. अर्बन इमिशन्स के एक शोध समूह की ओर से दावा किया गया है कि इससे PM- 2.5 के 1 लाख 50 हजार किलोग्राम का उत्सर्जन हुआ है.

इस साल सुप्रीम कोर्ट ने पटोखों को फोड़ने के लिए एक निश्चित समय सीमा निर्धारित की थी. पटाखे फोड़ने की समय सीमा शाम 8 बजे से रात 10 बजे तक निर्धारित की गई थी. लेकिन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को ताक पर रखते हुए जमकर पटाखे फोड़े.

सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) के मुताबिक, दिल्ली की हवा बिगाड़ने में पटाखों के अलावा उत्तर प्रदेश और हरियाणा में जलाई जा रही पराली भी जिम्मेदार है. पराली जलाने के कारण भी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ा है.

ये भी पढ़ें: विधानसभा चुनाव प्रचार में उतरे पीएम, BJP को ‘मोदी मैजिक’ पर भरोसा

सवाल यह है कि अगर हरियाणा-पंजाब में सबसे ज्यादा पराली जलाई जाती है तो दिल्ली-एनसीआर की तुलना में पंजाब-हरियाणा में प्रदूषण का स्तर ज्यादा होना चाहिए? लेकिन, दिवाली की रात से अगले दिन शाम तक हरियाणा-पंजाब में काफी हद तक वायु की गुणवत्ता सूचकांक बेहतर रही. लुधियाना में जहां एअर इंडेक्स क्वालिटी 221, जालंधर में 266, अमृतसर में 221, पटियाला में 271, मंडी गोविंदगढ़ में 223 और खन्ना में 215 रहा. वहीं हरियाणा के रोहतक में 300 और गुरुग्राम में 353 एअर इंडेक्स क्वालिटी रहा. हालांकि यह स्थिति भी बेहद खराब मानी जाती है.

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का भी मानना है कि पिछले साल की दिवाली के समय से अगर आप वायु गुणवत्ता स्तर की तुलना करेंगे तो इस साल प्रदूषण के स्तर में 25 से 30 फीसदी की कमी आई है. पिछले साल की तुलना में इस साल वायु की गुणवत्ता कहीं बेहतर है.

चंडीगढ़ में सालों से रह रहे वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडेय फर्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘देखिए पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा पराली जलाने को सिर्फ खराब एयर क्वालिटी इंडेक्स को जिम्मेवार नहीं बता सकते हैं. एयर क्वालिटी इंडेक्स के खराब होने के कई स्थानीय कारक भी निकल कर सामने आ रहे हैं. 8 नवंबर को चंडीगढ में एयर क्वालिटी इंडेक्स सुबह 9 बजे 93 था.

आगे बोलते हुए पांडेय ने कहा कि इससे साफ होता है कि अगर पंजाब में पराली जलाना ही दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स के खराब होने का कारण है तो चंडीगढ़ समेत पंजाब के कई और शहरों में एयर क्वालिटी इंडेक्स खराब होता. क्योंकि, पराली जलाने की ज्यादा घटनाएं चंडीगढ़ के आसपास पटियाला, संगरूर आदि जिलों में अभी तक होती रही है. लुधियाना में 7 तारीख को एयर क्वालिटी इंडेक्स 137 था. जबकि अमृतसर में 162 था. दिल्ली और इसके आसपास के प्रदूषण का मुख्य कारण दिल्ली और इसके आसपास के स्थानीय कारण हैं. इसके लिए सरकार को स्थायी सामाधान खोजना होगा, न कि पंजाब और हरियाणा के किसानों को दोष देकर अपना पल्ला झाड़ने से बचाव होगा.’

अमृतसर में पराली जलाते किसान

भारत की सरकार भी चीन से कुछ सीख लेकर ठोस और कारगर कदम उठाए

सरकारी आंकड़े भी बताते हैं कि पिछले साल के मुकाबले इस साल अभी तक पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में काफी कमी आई है. अभी तक राज्य सरकार ने जो आंकड़े पेश किए हैं, उसमें पराली जलाने की घटनाओं में पिछले साल के मुकाबले चालीस प्रतिशत तक कमी आई है. ऐसा कहा जा रहा है कि तमाम बाधाओं के बीच किसानों ने अपने आर्थिक हितों पर चोट मारते हुए पराली जलाने से काफी हद तक दूरी बनाई है.

ये भी पढ़ें: BJP की तीसरी लिस्ट में नाम नहीं आया, कांग्रेस में शामिल होकर होशंगाबाद से टिकट लिया

हालांकि, पंजाब और हरियाणा के कई जिलों में पराली जलाने की घटनाओं की सूचना अभी भी आ रही है. 2016 में अक्तूबर मध्य तक पराली जलाने के 6 हजार 733 मामले सामने आए थे. साल 2017 में अक्तूबर अंत तक पराली जलाने के 3 हजार 141 मामले आए थे, जबकि इस साल अक्टूबर अंत तक 1 हजार 212 मामले सामने आए हैं.

2016 में पूरे सीजन के दौरान पराली जलाने के लगभग 80 हजार 879 मामले सामने आए थे. 2017 में इसमे कमी आई और पराली जलाने के 43 हजार 814 मामले सामने आए. इस साल पंजाब सरकार को उम्मीद है कि पराली जलाने की घटनाओं में पचास प्रतिशत तक और गिरावट आएगी और यह 20 से 22 हजार के बीच तक जाकर रुकेगी.

ऐसे में कहा जा सकता है कि भारत की सरकार भी चीन से कुछ सीख लेकर ठोस और कारगर कदम उठाए. इसके लिए जरूरी है कि यहां के नागरिक भी सरकार और कोर्ट के फैसलों का सम्मान करना सीखें न कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को सरेआम मजाक बनाने का.