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फेशियल सॉफ्टवेयर से दिल्ली पुलिस ने 4 दिन में ढूंढ निकाले 3 हजार लापता बच्चे

दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया, जिससे इन बच्चों की पहचान हो सकी

FP Staff

दिल्ली पुलिस ने चेहरे की पहचान करने वाले ‘फेशियल रिकग्निशन सॉफ्टवेयर’ (एफआरएस) से महज चार दिन में तीन हजार गुमशुदा बच्चे ढूंढ निकाले हैं. अब इन बच्चों को परिवार के पास भेजने की तैयारी की जा रही है. दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया, जिससे इन बच्चों की पहचान हो सकी.

गैर सरकारी संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ ने इस बाबत एक याचिका दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल की थी. जिसके जवाब में अदालत ने बीते पांच अप्रैल को केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और दिल्ली पुलिस को इस सॉफ्टवेयर से बच्चों की पहचान करने का निर्देश दिया था.


हाई कोर्ट ने इस पर तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया था. कोर्ट के आदेश के तत्काल बाद मंत्रालय और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों की बैठक हुई. मंत्रालय ने अपने ‘ट्रैक चाइल्ड’ पोर्टल पर दर्ज सात लाख से अधिक बच्चों का डेटा (फोटो के साथ) दिल्ली पुलिस को दिया. इसके बाद दिल्ली पुलिस ने फेशियल सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया.

दिल्ली पुलिस ने बाल गृहों में रहने वाले करीब 45 हजार बच्चों पर एफआरएस सॉफ्टवेयर आजमाया. लिहाजा छह से 10 अप्रैल के बीच 2930 बच्चों की पहचान की गई. मंत्रालय के सचिव राकेश श्रीवास्तव ने कहा, ‘दिल्ली पुलिस ने 10 अप्रैल को सॉफ्टवेयर से प्राप्त नतीजे मंत्रालय को दिए. दिल्ली पुलिस ने बताया कि इस सॉफ्टवेयर से 2930 बच्चों की पहचान की गई है.’

उन्होंने कहा, ‘मंत्रालय ने आगे का ब्योरा जुटाने के लिए एनआईसी (नेशनल इन्फॉरमेटिक्स सेंटर) के पास डेटा भेजे हैं. बाकी के काम पूरा होने के बाद हाई कोर्ट को सूचित किया जाएगा.’

प्रतीकात्मक तस्वीर रॉयटर से

‘बचपन बचाओ आंदोलन’ से जुड़े भुवन रिभू ने कहा, ‘हम बार बार कह रहे थे कि इस सॉफ्टवेयर से बच्चों की पहचान की जाए, लेकिन मंत्रालय आनाकानी कर रहा था. हाई कोर्ट के आदेश पर साफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया जिसके नतीजे सामने हैं.’ उन्होंने कहा, ‘अगली सुनवाई पर हम कोर्ट से गुहार लगाएंगे कि लापता बच्चों के आंकड़े बताए जाएं और एनजीटी की तरह राष्ट्रीय बाल अधिकरण बनाने का आदेश दिया जाए.’

क्या है एफआरएस सॉफ्टवेयर?

एफआरएस सॉफ्टवेयर किसी भी बच्चे के चेहरे का ब्योरा स्टोर करता है और ‘ट्रैक चाइल्ड’ पोर्टल पर उपलब्ध फोटो और डेटा से मिलान करता है. इससे बच्चे की पहचान तत्काल हो जाती है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) भी ऐसे सॉफ्टवेयर आजमाने के पक्ष में है जिससे गुमशुदा बच्चों की पहचान कर उनको परिवार के पास भेजा जा सके.

एनसीपीसीआर के सदस्य यशवंत जैन ने कहा, ‘अगर इस तरह के सॉफ्टवेयर से गुमशुदा बच्चों की पहचान कर उनके परिवार से मिलाने में मदद मिलती है तो इससे बेहतर कुछ नहीं है. सभी बाल गृहों का रजिस्ट्रेशन भी जरूरी है जिससे इस काम में मदद मिलेगी.’