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दिल्ली में हवा की गुणवत्ता में सुधार, क्या ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे है वजह?

पिछले 10-12 दिनों में दिल्ली की हवा पहले की तुलना में काफी हद तक साफ भी हुई है. क्या इसके पीछे ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे का चालू होना है?

Ravishankar Singh

ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे चालू हो जाने के बाद दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के स्तर में काफी कमी देखी जा रही है. पिछले 10-12 दिनों में दिल्ली की हवा पहले की तुलना में काफी हद तक साफ भी हुई है. आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10-12 दिनों में पीएम-10 और पीएम-2.5 के स्तर में 40 से 50 फीसदी की कमी आई है.

बीते 27 मई के बाद से ही दिल्ली में वायु की गुणवत्ता सुचकांक में फर्क नजर आने लगा है. 27 मई को जहां वायु की गुणवत्ता 277 थी, वहीं 7 जून तक यह गिरकर 186 तक आ गई है. 100 से 200 के बीच वायु की गुणवत्ता को संतोषजनक माना जाता है.


एक्सप्रेसवे नहीं मौसम हो सकता है जिम्मेदार

दिल्ली की आबोहवा में प्रदूषण के स्तर में आई इस कमी को पर्यावरण के जानकार अलग-अलग नजरिए से देख रहे हैं. पर्यावरण के कुछ जानकार मानते हैं कि इस समय हवा और बारिश की वजह से पीएम- 2.5 और पीएम- 10 में गिरावट आई है. इसमें पेरिफेरल एक्सप्रेसवे चालू होने का कोई ताल्लुक नहीं है.

अब ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या वाकई में पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के चालू हो जाने के बाद दिल्ली की हवा की गुणवत्ता में फर्क आया है या फिर इसके लिए कहीं न कहीं इस समय का मौसम जिम्मेदार है?

बता दें कि दिल्ली में पिछले साल नवंबर और दिसंबर महीने में वायु की गुणवत्ता सुचकांक लगातार 400 के आसपास रहा था. पिछले कुछ सालों से अक्टूबर से लेकर दिसंबर महीने तक दिल्ली में प्रदूषण के कारण आपातकाल की स्थिति पैदा हो जाती है. इन दो-तीन महीनों में लोगों का बुरा हाल हो जाता है.

लेकिन, बीते 27 मई के बाद से दिल्ली में वायु की गुणवत्ता में अप्रत्याशित तौर पर सुधार देखने को मिला है. आपको बता दें कि बीते 27 मई को ही पीएम मोदी ने ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस का उद्घाटन किया था.

ट्रैफिक है प्रदूषण की बड़ी वजह

दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण की सबसे बड़ी वजहों में से एक है ट्रैफिक और ट्रैफिक जाम. देश भर की गाड़ियां जो हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान की ओर आती-जाती रही हैं उनसे अब दिल्ली बची रह रही है. पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के जरिए ये गाड़ियां अब दिल्ली को बख्शते हुए बाहर निकल जा रही हैं, जिससे दिल्ली में प्रदूषण के स्तर में काफी कमी देखी जा रही है.

ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के शुरू होने से दिल्ली में 40 फीसदी ट्रैफिक जाम कम हो गए हैं. साथ ही दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के स्तर पर भी इसका 30-35 प्रतिशत असर पड़ रहा है.

दिल्ली में लगातार बढ़ती आबादी और गाड़ियों की बढ़ती संख्या ने भी ट्रैफिक जाम की समस्या को और बढ़ा दिया है. हाल-फिलहाल में इससे निजात पाना बेहद मुश्किल लग रहा था. दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार लाख कोशिशों के बावजूद इस समस्या का समाधान खोजने में नाकाम साबित हो रही थीं, लेकिन ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रवे के चालू हो जाने के बाद दिल्ली पुलिस को भी लगने लगा है कि दिल्ली की ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त होगी और प्रदूषण भी काफी हद तक कम हो जाएगा.

ऐसा कहा जा रहा है कि ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के शुरू हो जाने से एक तो दिल्ली को जाम से मुक्ति मिल जाएगी तो दूसरी तरफ पर्यावरण के लिहाज से भी यह काफी लाभदायक साबित होगा.

पिछले कुछ सालों से दिल्ली में ट्रैफिक जाम और प्रदूषण एक गंभीर समस्या बनकर उभरी है. इन दो प्रमुख समस्याओं को देखते हुए ही दिल्ली पुलिस ने रात में कमर्शियल गाड़ियों को दिल्ली से गुजरने की इजाजत देती थी. दिल्ली पुलिस की कोशिश के बावजूद दिल्ली में प्रदूषण तो बढ़ता ही था साथ ही दुर्घटनाएं भी बहुत होती थीं. हजारों-हजार गाड़ियों का दिल्ली में जमावड़ा लगता था. जिस समय बाहरी गाड़ियों को दिल्ली से गुजरने का समय होता था, उसके बाद से रास्ते में खड़ी गाड़ियों में दुर्घटनाएं बहुत अधिक होती थीं.

बढ़ती आबादी, बढ़ता ट्रैफिक और बढ़ता प्रदूषण

बता दें कि दिल्ली-एनसीआर की आबादी में पिछले 20 वर्षों में लगभग 50 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. वहीं वाहनों की संख्या में भी लगभग 180 प्रतिशत की तेजी आई है. सड़कों की चौड़ीकरण की बात करें तो यह महज 15 से 20 प्रतिशत ही हो पाई है. भारत जैसे देशों में लगभग हर साल लाखों लोगों की मौत प्रदूषण के कारण होती है. पर्यावरण पर काम करने वाली कई संस्थाओं और अनुसंधानकर्ताओं का भी मानना है कि ताप विद्युत संयंत्रों से उत्सर्जन में कटौती और घरों में ठोस ईंधन के इस्तेमाल से वायु प्रदूषण में और कमी लाई जा सकती है.

पिछले दिनों ही अमेरिका की लुइसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी (एलएसयू) की रिपोर्ट में ऐसे 13 तरीकों के बारे में बताया गया है जिन्हें अमल में लाकर भारत में वायु प्रदूषण की समस्या को 40% तक घटाया जा सकता है. इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इन तरीकों को अगर इस्तेमाल में लाया जाए तो दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत के पीएम 2.5 स्तर को 50 से 60 फीसदी तक कम किया जा सकता है.

इस रिपोर्ट में प्रदूषण के विभिन्न कारणों से निपटने के लिए बनी नीतियों का विश्लेषण किया गया है जिसमें थर्मल पावर प्लांट (चालू, निर्माणाधीन और नए पावर प्लांट), मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग, ईंट भट्ठी, घरों में इस्तेमाल होने वाले ठोस ईंधन, परिवहन, पराली को जलाना, कचरा जलाना, भवन-निर्माण और डीजल जनरेटर का इस्तेमाल जैसी बातें शामिल हैं.

लेकिन एक्सप्रेसवे को वजह मानना जल्दबाजी

पर्यावरण पर काम करने वाली एक संस्था ग्रीनपीस के सीनियर कैंपेनर सुनील दहिया फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, 'देखिए मेरी समझ से पेरिफेरल एक्सप्रेसवे चालू हो जाने के बावजूद हवा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं आया है. शायद, दिल्ली के अंदर थोड़ी-बहुत कमी आई भी हो लेकिन एनसीआर में तो अभी भी प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर है. दिल्ली के अंदर जो बाहर की गाड़ियां आती थी वह दिल्ली के बाहर अभी भी प्रदूषण फैला रही हैं. सरकार जब कोई बड़ा रोड और हाईवे बनाती है तो वह प्राइवेट गाड़ियों और सामानों को एक जगह से दूसरे जगह पहुंचाने की सहूलियत के लिहाज से बनाती है. इस मौसम में बारिश और हवाएं चलती हैं, जिससे धूलकण नीचे बैठ जाते हैं. इसकी वजह से प्रदूषण के लेवल ऊपर-नीचे होते रहते हैं. इसलिए हम कहें कि पेरिफेरल एक्सप्रेसवे की वजह से ही यह कमी आई है यह अभी बहुत जल्दबाजी होगी.’

दहिया आगे कहते हैं. ‘भारत में पर्यावरण को लेकर हम लोग पहली बार सरकार के सामने विस्तृत और व्यावहारिक नीतियों को रख रहे हैं. हम पर्यावरण मंत्रालय से गुजारिश करते हैं कि वे इन उपायों को स्वच्छ वायु के लिए तैयार हो रही राष्ट्रीय कार्ययोजना में शामिल करे और पावर प्लांट के लिए दिसंबर 15 में अधिसूचित उत्सर्जन मानकों को कठोरता से पालन करे. साथ ही अधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर कठोर मानकों को लागू करके प्रदूषण नियंत्रित करे.’

पर्यावरण के जानकारों का मानना है कि पिछले कुछ सालों से प्रदूषण को लेकर सरकारें और आम जनता का रवैये में भी काफी बदलाव नजर आया है. पहले देश की सरकारें और खासकर सरकारी अधिकारी प्रदूषण को कोई समस्या ही नहीं मानते थे, लेकिन इसी साल अप्रैल महीने में पर्यावरण मंत्रालय ने पूरे देश में नेशनल क्लीनर प्लान लागू किया है.

सरकार के पास प्लान लेकिन अभी कुछ भी तय नहीं

पर्यावरण मंत्रालय शायद पहली बार पूरे देश में प्रदूषण के स्तर को कम करने की दिशा में आगे बढ़ी है. वायु प्रदूषण दिल्ली-एनसीआर की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे देश के लिए समस्या बनती जा रही है. केंद्र सरकार ने इच्छाशक्ति जरूर दिखाई है, लेकिन यह भविष्य के लिए कितनी कारगर है और असरदायक है उस पर अब भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं.

कुछ संगठनों का मानना है कि सरकार के इस प्रोग्राम में न तो कोई समय-सीमा निर्धारित की गई है और न ही प्राइवेट ट्रांसपोर्टेशन को कम करने के लिए कोई प्लान तैयार किया गया है. साथ ही जिम्मेदारी किसकी तय होगी यह भी जिक्र नहीं किया गया है.

अगर हम बात सिर्फ दिल्ली की करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दिल्ली को विश्व का चौथा सर्वाधिक प्रदूषित शहर कहा है. दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 शहर भारत के शामिल किए गए. दिल्ली में आबादी और प्रदूषण का स्तर साथ-साथ बढ़ता जा रहा है. पिछले कुछ सालों में दिल्ली में प्रदूषण को लेकर स्थाई समाधान की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं. जो कदम उठाए भी गए हैं वह सिर्फ सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी को दिखाने मात्र के लिए किया गया है.

पर्यावरण पर काम करने वाली कुछ संस्थाओं का साफ कहना है कि दिल्ली में प्रदूषण को लेकर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच कोई तालमेल नहीं है. समस्या की जड़ तक कोई भी जाने से बचता है. हरियाली की कीमत पर पूरे दिल्ली में कंस्ट्रक्शन, औद्योगिकीकरण और मेट्रो का निर्माण थम नहीं रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए साल 1990 में पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) का गठन किया था. वरिष्ठ आईएएस अधिकारी भूरेलाल यादव को इसका अध्यक्ष भी बनाया गया था. ईपीसीए के गठन के बाद से ही दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन के लिए सीएनजी, दिल्ली-एनसीआर में एयर मॉनिटरिंग स्टेशन और ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान सहित कई कदम उठाए गए. इसके बावजूद दिल्ली में प्रदूषण के स्तर में लगातार बढ़ोत्तरी होती रही.

ऐसे में एक बार फिर से उम्मीद जगने लगी है कि पर्यावरण मंत्रालय की ताजा कोशिश के बाद अगले कुछ सालों में दिल्ली-एनसीआर सहित पूरे देश में हवा की गुणवत्ता में सुधार आएगी.