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मेरी दिल्ली ऐसी तो नहीं थी, किसने इसे प्रदूषित किया?

पहले हमने हवा को प्रदूषित किया फिर उसी हवा को साफ करने के लिए एयरप्यूरिफायर खरीद रहे हैं

Puneet Saini

कुछ साल पहले तक मुझे इस बात का गुमान था कि मैं दिल्लीवाला हूं. गुमान अब भी है लेकिन दुख भी है. कभी दिल्ली अपनी सर्दी के लिए मशहूर थी. आज भी वह मशहूर है लेकिन प्रदूषण के लिए. दिल्ली की सर्दी अब प्रदूषित हवा में खो गई है. पिछले कुछ साल से ये स्मॉग ही दिल्ली की पहचान बन चुका हैं.

दिल्ली में देश के कोने-कोने से लोग आते हैं. और इस शहर ने बड़े प्यार से सबको अपनाया भी है. दिल्ली की ऐसी हालत देखकर वे कहते हैं कि घर लौट जाने का मन करता है. लेकिन मैं क्या करूं? दिल्ली मुझे प्यारी है और मैं दिल्ली छोड़कर कहीं जाना नहीं चाहता.


ये दिल्ली ऐसी तो ना थी

पिछले एक हफ्ते से स्मॉग के कारण दिल्ली का दम घुट रहा है. कई जगहों पर प्रदूषण का स्तर सामान्य से 7 गुना ज्यादा रहा. दिल्ली की हवा इतनी प्रदूषित हो गई है कि ना चाहते हुए भी लोग दिन भर में 20 सिगरेट का धुआं अंदर ले रहे हैं. यह धुआं हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है.

सवाल तो उठना लाजिमी है कि राजधानी की यह हालत अचानक तो हुई नहीं है. आखिरी स्टेज पर पहुंचने के बाद ही हमारी नींद क्यों खुलती है?

बदलाव का असर क्यों नहीं

22 साल से मैं दिल्ली में हूं. 'यमराज' कही जाने वाली ब्लू लाइन बसों की विदाई मैंने देखी है. मेट्रो को मैंने वेलकम भी किया है. पेट्रोल और डीजल से सीएनजी पर गाड़ियों को आते हुए भी मैंने देखा है. सीएनजी वाली गाड़ियां चलाने का फैसला प्रदूषण कम करने के लिए किया गया है. जो दिल्ली मेरी यादों में है वो मेरी आंखों के सामने नहीं है.

स्कूलों में हम सब ने पढ़ा था कि ग्लेशियर पिघल रहा है. तब टीचर ने बताया था कि इसकी वजह ग्लोबल वॉर्मिंग और प्रदूषण है. तब यह हमारे लिए सिर्फ टॉपिक था. एक बोरिंग विषय, जिसे पढ़कर हमें तब परीक्षा पास करना था. तब शायद इस मुद्दे की अहमियत कोई नहीं समझ पाया. जिसका नतीजा आज हम सब भुगत रहे हैं.

हमने पहले साफ हवा को प्रदूषित किया और फिर प्रदूषित हवा को साफ करने के लिए एयरप्यूरिफायर और मास्क खरीद रहे हैं. यह इंसानी फितरत ही है कि जब तक हालात बद से बदतर ना हो जाए हम नींद से जागते नहीं हैं.

दिल्ली में कई जगह प्रदूषण का स्तर सामान्य से 7 गुना ज्यादा था (फोटो: PTI)

प्रदूषण के बढ़ते स्तर के लिए हमारे जितनी सरकार भी जिम्मेदार है. दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच काम को लेकर झगड़ा रोजाना कई सुर्खियां बटोरता है. प्रदूषण के बढ़ते स्तर के बाद भी दोनों सरकारें राजनीति करने से नहीं मान रही हैं. जहां पूरा केंद्रीय मंत्रिमंडल दिल्ली में रहता है दिल्ली की हवा में सांस लेता है तो भी उन्हें इस दिल्ली की चिंता नहीं है.

केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन ने बुधवार को ट्विट कर कहा कि पहले दिल्ली सरकार को सड़क साफ करने के अन्य उपायों की कीमत जांचनी चाहिए. अगर उसे लगता है कि हेलीकॉप्टर से पानी का छिड़काव सस्ता उपाय है तो वो ऐसा करने के लिए स्वतंत्र है.

जहां एक तरफ हर्षवर्धन के कंधों पर पूरा देश साफ करने की जिम्मेदारी है. राजधानी की हालत गैस चेंबर जैसी हो गई है तब भी वर्धन को सिर्फ दिल्ली सरकार की कमियां नजर आ रही हैं. हेलीकॉप्टर से पानी का छिड़काव केंद्र भी करवा सकती है. इसके लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री को पूरी जोड़-भाग बताकर हर्षवर्धन क्या जताना चाहते हैं? ट्वीट कर समय बर्बाद कर शायद ही दिल्ली और दिल्लीवासियों का कोई भला कर पाएं मंत्री जी.

राजनीति चमकाने से ज्यादा काम करना बेहतर होगा

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से मिलने की इच्छा जाहिर की थी. इस पर दोनों मुख्यमंत्रियों में ट्विटर वॉर छिड़ गया. दोनों ही राज्यों के मुख्यमंत्री प्रदूषण के लिए केंद्र सरकार को कोसने में जुट गए. पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाए जाने को भी प्रदूषण के बढ़ने का एक बड़ा कारण बताया गया.

इसके बाद आम आदमी पार्टी के नेता सुखपाल सिंह खैरा की पराली जलाते हुए एक वीडियो भी वायरल हुई थी. यह वाकई में शर्मनाक है जहां एक तरफ लोगों को सांस नहीं आ रहा था वहीं दूसरी तरफ नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस तरह की शर्मनाक हरकत कर रहे थे.

जब दिल्ली के मुख्यमंत्री से उनकी पार्टी के नेता की इस हरकत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा 'मैंने वीडियो देखा नहीं है. अगर खैरा ने केवल विरोध जताने के लिए ये किया है तो गलत है. जहां तक किसानों की बात है वह तो मजबूरी में कर रहे हैं.'

पंजाब के मुख्यमंत्री ने तो खुद को इतना बेचारा बता दिया. मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके पास प्रदूषण रोकने के लिए पैसे तक नहीं बचे हैं. अमरिंदर ने ट्वीट किया 'हालात गंभीर हैं. समस्या के रूप में पंजाब असहाय है और राज्य में फसलों के प्रबंधन के लिए किसानों की क्षतिपूर्ति के लिए कोई पैसा नहीं है.'

प्रदूषण और जनसंख्या दो ऐसी समस्याएं हैं जिसके लिए हम खुद जिम्मेदार हैं. हम चाहें तो इसे कम कर सकते हैं, लेकिन हमारी तो आदत है जब परेशानियां हमारी जान नहीं लेती हैं तब तक हमें इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ता. सीएनएन के मुताबिक 2015 में 6 में से एक मौत प्रदूषण से होती है. पूरे विश्व में करीब 9 मिलियन मौतें किसी ना किसी रूप में प्रदूषण के प्रभाव से ही हुई थीं.

राज्य सरकार की निगाह में केंद्र सरकार जिम्मेदार है. केंद्र की निगाह में राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं. जटिलता इतनी ज्यादा है कि सब एक दूसरे के सिर ठीकरा फोड़कर बचना चाहते हैं. इसमें पिस सिर्फ आम इंसान रहा है.