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दिल्ली की सांसें थम रही हैं, लेकिन न ही नेताओं को चिंता है न जनता को

क्रिसमस और इसके पांच दिन बाद नए साल के जश्न पर आतिशबाजी हुई तो पहले से ही गैस चैंबर में तब्दील हो चुकी दिल्ली के हाल और खस्ता हो जाएंगे

FP Staff

दिल्ली में प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया है कि अब इसे मापने के लिए किसी मीटर की जरूरत नहीं है. लोगों की आंखों में हो रही जलन और सांस लेने में हो रही तकलीफ इसका नया मापक बन गया है. हवा की गुणवत्ता को देखें तो रविवार को इस साल का सबसे प्रदूषित दिन रहा.

आज यानी क्रिसमस वाले दिन भी प्रदूषण 'गंभीर' स्तर पर है. और जिस तरह से कारों का सैलाब आज (मंगलवार को) सड़कों पर देखने को मिल रहा है उस से पूरी उम्मीद है कि क्रिसमस पर इसके बढ़ने के ही आसार हैं.


क्रिसमस और न्यू ईयर सेलीब्रेशन पर और बिगड़ जाएगा हाल

राजधानी दिल्ली में प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में यह हमेशा टॉप पर ही रहता है. ऐसे में क्रिसमस और इसके पांच दिन बाद नए साल के जश्न पर आतिशबाजी हुई तो पहले से ही गैस चैंबर में तब्दील हो चुकी दिल्ली के हाल और खस्ता हो जाएंगे.

दुविधा की बात यह है कि इस समय न ही पंजाब में पराली जलाई जा रही है, न ही राजधानी दिल्ली में कोई निर्माण कार्य हो रहा है और दीवाली को तो महीनों बीत गए हैं. फिर भी प्रदूषण का कारण न ही समझ आ रहा है और न ही इसपर काबू पाया जा रहा है.

चिंता की बात तो यह भी है कि क्योंकि यह कोई राजनीतिक मसला नहीं है तो इस मुद्दे पर राजनेताओं का ध्यान भी बमुस्किल ही जा रहा है. मालूम हो कि केंद्र में बीजेपी की सरकार है, राज्य में आम आदमी पार्टी सत्ता में है और जिस राज्य से दिल्ली में पराली का धुआं आता है वहां कांग्रेस के हाथ सत्ता की बागडोर है. हालांकि इन तीनों ही पार्टियों का दिल्ली को जानलेवा प्रदूषण से बचाने का योगदान शून्य के बराबर ही प्रतीत होता है.

क्या हमारे पास ऑड-ईवन के अलावा नहीं है कोई ठोस हल?

राजनेताओं के पास भीषण प्रदूषण से मुक्ति का कोई हल है तो वह गिना-चुना ऑड-ईवन तक ही सीमित है. इसके इलावा कोई ठोस कदम उठाया नहीं जा रहा है. ऐसा ही सवाल जब राजधानी के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से पूछा गया. तो उनका जवाब था, हम इस ओर कई कदम उठा रहे हैं जैसे कि पेड़ लगाना, 3,000 बसों की खरीद वगेराह.

उन्होंने बताया कि पिछले दिनों मेट्रो के एक और बड़े फेज को भी मंजूरी दी गई है. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो एक बार फिर से ऑड-ईवन स्कीम लागू की जा सकती है. अरविंद केजरीवाल ने एक सुझाव के रूप में कहा कि हर व्यक्ति को प्रदूषण का स्तर कम करने में खास भूमिका निभानी होगी.

हालांकि गंभीर समस्या होने के बाद भी प्रदूषण के इस दानव के खिलाफ जनता और राजनेता दोनों में से कोई भी सक्रीयता नहीं दिखा रहा है. बहरहाल दिल्ली गैसचैंबर बन चुका है और इसका असर भी दिखने लगा है.

बात करें एक्यूआई इंडेक्स की तो इस पर आने वाले आंकड़े जाड़ों के दिनों में तो 'बहुत खराब' श्रेणी के पार ही होते हैं. और अगर मीटर की भाषा में न समझ सकें तो इसके लक्षण तो दिल्ली वाले क्रिसमस के जश्न के बीच में आंखों में जलन, खांसी और सिरदर्द से तो जरूर समझ सकते हैं.