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दिल्ली: मेट्रो ट्रेनों में पकड़ी गईं 94 फीसदी पिकपॉकेटिंग महिलाओं ने की, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

सीआईएसएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, 236 मेट्रो स्टेशनों पर अधिक कर्मचारी तैनात किए गए थे और अतिरिक्त कर्मियों को, दोनों पुरुषों और महिला पिकपॉकेट को पकड़ने के लिए संवेदनशील स्थानों पर तैनात किया गया था

FP Staff

साल 2017 में दिल्ली मेट्रो में 1392 पिकपॉकेटिंग के मामले सामने आने के बाद CISF को पता चला कि इस गिनती में कमी लाने के लिए उसे और कठोर कदम उठाने होंगे. साल 2018 में सिर्फ 497 मामले दर्ज किए गए जिनमें से लगभग 94% में महिला पिकपकेट्स शामिल थीं. वहीं 2017 में महिलाओं की हिस्सेदारी 85 फीसदी थी. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार 2017 की गिनती के बाद केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) को बड़ा झटका लगा, जो कि मेट्रो सुरक्षा की देखभाल करता है. इसके बाद सीआईएसएफ के अधिकारियों ने ह्यूमन इंटेलिजेंस और सीसीटीवी कैमरों दोनों का उपयोग कर संदिग्धों की पहचान करना शुरू कर दिया और उन्हें मेट्रो स्टेशन के प्रवेश द्वार पर ही परिसर में एंट्री करने से रोकना शुरू किया है.

2017 में 1292 महिलाएं और 100 पुरुष पकड़े गए


सीआईएसएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, 236 मेट्रो स्टेशनों पर अधिक कर्मचारी तैनात किए गए थे और अतिरिक्त कर्मियों को, दोनों पुरुषों और महिला पिकपॉकेट को पकड़ने के लिए संवेदनशील स्थानों पर तैनात किया गया था. पुलिस ने चार कॉन्स्टेबलों की एक विशेष टीम के साथ भी इन्हें पकड़ने का कदम उठाया था, जो इन गैंगों के पसंदीदा ठिकानों पर, बहुत ज्यादा भीड़ के समय मेट्रो स्टेशनों पर चेक करती थी. पिकपॉकेट्स और स्नैचरों पर नजर रखने के लिए सादे कपड़े पहने ये पुलिस आसपास के सभी स्टेशनों पर जांच करते थे. 2017 में 1292 महिलाएं और 100 पुरुष पकड़े गए जबकि 2018 में ये संख्या क्रमशः 470 और 28 है.

महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक महंगा सामान लेकर ट्रैवल करती हैं

CISF और पुलिस अधिकारियों के अनुसार महिला पिकपॉकेट्स ज्यादातर मध्य दिल्ली जाने वाली ट्रेनों को चुनती हैं और आम तौर पर उसमें आना-जाना करती हैं. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि यात्रियों को सतर्क रहना चाहिए. अगर वे कुछ महिलाओं या किसी महिला को असामान्य व्यवहार करते देखती हैं तो उन्हें सचेत होने की जरूरत है. अधिकारी ने कहा कि पुरुष अक्सर महिला कोच में चढ़ने के लिए क्रॉस-ड्रेस पहनते हैं क्योंकि महिलाएं आमतौर पर पुरुषों की तुलना में अधिक महंगा सामान लेकर ट्रैवल करती हैं. वो सलवार सूट पहन लेते हैं और अपने सिर को ढक लेते हैं. बच्चों के साथ अक्सर उनसे चिपके रहते हैं, जिससे यात्रियों के लिए यह पता लगाना लगभग असंभव हो जाता है कि वह पुरुष महिलाओं की तरह कपड़े पहने हुए हैं.

ये अपराधी आमतौर पर खाली स्टेशनों से मेट्रो पर चढ़ते हैं

महिला पिकपॉकेट्स ज्यादातर बच्चा लेकर या फिर ग्रुप में ट्रैवल करती हैं. ट्रेन में भीड़ का फायदा उठाकर महिला पिकपॉकेट्स गैंग की एक महिला किसी यात्री के पर्स का चेन खोलती है. वहीं गैंग की दूसरी महिला सदस्य सही मौका देखकर

उसमें से महंगे सामान निकालकर तीसरी महिला सदस्य को सौंप देती है. पुलिस अधिकारी के अनुसार इस तरह से अग किसी यात्री को किसी महिला पर पिकपॉकेट का शक भी होता है तो उसके पास से कोई सामान नहीं मिलता. उन्होंने कहा कि ये अपराधी आमतौर पर खाली स्टेशनों से मेट्रो पर चढ़ते हैं और भीड़भाड़ वाले स्टेशनों पर उतरते हैं. ये बड़ी संख्या में आने-जाने वाले यात्रियों का फायदा उठाते हैं.

चोरी के सामानों की सूची में मोबाइल फोन और लैपटॉप सबसे ऊपर

उनमें से कुछ चोरी किए गए आइटम को दूसरे गिरोह के सदस्य को सौंपने के लिए स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर घूमते रहते हैं. साल 2018 में हर महीने औसतन लगभग 40 महिला पिकपॉकेट्स पकड़ी गईं. अप्रैल एक मात्र ऐसा महीना रहा जब कोई हाथ नहीं आया. चोरी के सामानों की सूची में मोबाइल फोन और लैपटॉप सबसे ऊपर रहे. डीसीपी (मेट्रो) दिनेश कुमार गुप्ता ने कहा कि विशेष पुलिस दल के पास स्टेशनों के आसपास के इलाकों की सुरक्षा और विश्लेषण का

काम भी था. वह स्टेशनों के भीतर और आसपास महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं.