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दिल्ली के 74 प्राइवेट स्कूलों ने पिछले 2 साल में नहीं दिया एक भी गरीब बच्चे को एडमिशन

कानून के मुताबिक यह अनिवार्य है कि प्राइवेट स्कूलों में 25 फीसदी गरीब बच्चों को रिजर्वेशन का लाभ दिया जाए

FP Staff

दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों से जुड़ी चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है. डीसीपीसीआर की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में 74 प्राइवेट स्कूलों ने बीते दो सालों में आर्थिक रूप से कमजोर एक भी बच्चे का एडमिशन नहीं किया और उन्हें राइट टू एजुकेशन एक्ट का लाभ नहीं दिया.

न्यूज18 के मुताबिक डीसीपीसीआर ने पाया कि 48 प्राइवेट स्कूलों ने 2016-17 में EWS/DG कैटेगरी के तहत एक भी छात्र का एडमिशन नहीं किया. वहीं 2017-18 में इनमें से 7 स्कूलों ने गरीब बच्चों का दाखिला नहीं लिया. वहीं इन दो साल में 19 स्कूल आरटीई मापदंडों का पालन करने में असफल रहे.


धारा12(1)सी राइट टू चिल्ड्रन टू फ्री एण्ड कंपलसरी एजुकेशन एक्ट 2009 के मुताबिक यह अनिवार्य है कि प्राइवेट स्कूलों में 25 फीसदी गरीब बच्चों को रिजर्वेशन का लाभ दिया जाए.

कमीशन ने शिक्षा निदेशालय को नोटिस भेजा है और प्राइवेट स्कूलों के इस कारनामे के बारे में बताया है. कमीशन इस मामले की खुद जांच करवाना चाहता है इसलिए उसने निदेशालय से मामले से जुड़े दस्तावेज मांगे हैं.

डीसीपीसीआर के एक सदस्य अनुराग कुंडू ने बताया कि हम इंडस एक्शन नाम के एक एनजीओ के साथ काम कर रहे हैं. यह एनजीओ स्कूलों में एडमिशन और सीटों के आवंटन के बारे में विश्लेषण करता है. इसलिए जानकारी निकालने में हमें 9 महीने लगे.

कुंडू ने बताया कि EWS/DG एडमिशन को ऑनलाइन लोड किया जाता है लेकिन एक भी छात्र का एडमिशन नहीं किया गया. वहीं निदेशालय का कहना है कि वह पहले कमीशन की रिपोर्ट का विश्लेषण करेंगे फिर कार्रवाई होगी.

शिक्षा निदेशालय के डायरेक्टर संजय गोयल ने कहा, 'जानकारी को इकट्ठा किया गया है, इसमें कुछ दिनों का समय लगेगा, इसके बाद ही मैं टिप्पणी कर सकूंगा. फाइल प्रक्रिया में है, हम इस बात को एग्जामिन कर रहे हैं कि कमीशन को जानकारी दें या न दें, कमीशन यह काम करने के लिए अधिकृत है या नहीं है.'

गोयल ने कहा, 'जहां तक स्कूलों की बात है, हम 74 स्कूलों की जांच कर रहे हैं और मिली जानकारी का विश्लेषण कर रहे हैं. अगर कमीशन के दावों में सच्चाई है तो हम उन्हें जवाब देंगे और कार्रवाई करेंगे.'

गोयल ने यह भी कहा कि निदेशालय इस बात की भी जांच करेगा कि पिछले सालों में किस तरह से सीटों का आवंटन किया गया. हालांकि कमीशन, निदेशालय की बातों से संतुष्ट नहीं दिख रहा है.