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मायावती के इस्तीफे से बीजेपी तो खुश ही होगी!

बीजेपी तो खुश होगी क्योंकि वक्त से पहले एक सीट का इजाफा जो होने वाला है

Amitesh

बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने राज्यसभा से अपना इस्तीफा सौंपा तो निशाने पर बीजेपी ही थी. लेकिन, उनके इस्तीफे से तो बीजेपी फिलहाल खुश ही दिख रही हैं. बीजेपी नेता मायावती के इस्तीफे को महज सियासी ड्रामा बता रहे हैं. लेकिन, उनके भीतर की खुशी छिपाए नहीं छिप रही.

मायावती के राज्यसभा से इस्तीफे के बाद बीजेपी के खाते में एक और सीट का इजाफा जो होने वाला है. मायावती के राज्यसभा का कार्यकाल अगले अप्रैल तक बचा हुआ है. यानी अभी भी आठ महीने का वक्त है. अगर राज्यसभा का उपचुनाव होता भी है तो बीजेपी के खाते में सीट आनी तय है. फिर जब अप्रैल में राज्यसभा की खाली सीटों के लिए वोटिंग होगी तो यूपी में उस वक्त भी बीजेपी का ही पलड़ा भारी रहेगा.


बीजेपी के खाते में जो सीट अप्रैल में आने वाली थी, वो सीट मायावती के इस्तीफे के कारण कुछ वक्त पहले भी मिल सकती है. अब भला इस फायदे से बीजेपी नाराज क्यों होगी?

लेकिन, मायावती की तरफ से दिया गया इस्तीफा अबतक स्वीकार ही नहीं किया गया है. क्योंकि अपने इस्तीफे में उन्होंने इस्तीफे के तमाम कारणों का जिक्र कर दिया है. इतने लंबे राजनीतिक और संसदीय करियर वाली मायावती को क्या इस्तीफा देने का तरीका पता नहीं है?

क्या उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि इस्तीफे में किन बातों का जिक्र किया जाता है. लेकिन, लगता है मायावती इस्तीफे के कारणों का जिक्र कर इस्तीफे में भी पॉलिटिकल माइलेज लेना चाहती हैं.

हालांकि इस बात की कम संभावना है कि मायावती अपने इस्तीफे पर दोबारा विचार करें. अगर ऐसा नहीं हुआ तो मायावती बीजेपी की दलित राजनीति की हवा निकालने के लिए एक बार फिर से मैदान में निकल पड़ेंगी और यहीं से दलित राजनीति की पुरानी नेता और दलित जनाधार पर नजर गड़ाई बैठी बीजेपी के बीच नए सिरे से टकराव देखने को मिलेगा.

बीजेपी ने अपनी रणनीति के केंद्र में दलित समुदाय को रखा है. रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर बीजेपी ने अपनी मंशा साफ भी कर दी है. हालांकि, ये कवायद बहुत पहले से चल रही है.

पिछले लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने अपनी रणनीति को नई धार देते हुए दलित नेताओं को अपने साथ जोड़ना शुरू कर दिया. दलित नेता रामविलास पासवान से लेकर रामदास अठावले तक को साधकर बीजेपी ने दलितों में अपनी पैठ मजबूत की है. यहां तक कि उदित राज जैसे अलग संगठन चलाने वाले दलित चेहरे को भी बीजेपी ने अपनी पार्टी से जोड़कर सांसद भी बना दिया. ये सब बीजेपी की रणनीति का हिस्सा था.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की सोशल इंजीनियरिंग के केंद्र में भी दलित राजनीति ही रही, जिसमें शाह ने गैर-जाटव दलित समुदाय को पार्टी के साथ जोड़कर पहले लोकसभा चुनाव और फिर विधानसभा चुनाव में यूपी में ऐतिहासिक जीत दिलाई.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कुंभ के दौरान मध्यप्रदेश के उज्जैन में दलित साधुओं के स्नान कर पार्टी के दलित प्रेम की अनूठी मिसाल पेश की. इस धार्मिक आयोजन में दलित समुदाय के साधु-संतों के साथ स्नान को सियासी ड्रामे से ज्यादा कुछ नहीं माना गया लेकिन, इस पूरी कवायद ने बीजेपी को लेकर दलित समुदाय के नजरिए को काफी हद तक बदल दिया.

यूपी चुनाव से पहले दलित के घर जाकर भोजन करना अमित शाह के एजेंडे का ही हिस्सा था. राहुल गांधी के दलित प्रेम को पॉलिटिकल टूरिज्म का नाम देने वाली बीजेपी ने उसी फॉर्मूले को बखूबी अपनाया है. अब यूपी के बाद ओडिशा में भी अमित शाह दलित के घर खाना खाते दिख जाते हैं.

मोदी सरकार आने के बाद बीजेपी अब बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की विरासत को भी हथियाने की लगातार कोशिश कर रही है. बीजेपी ही नहीं संघ का भी अंबेडकर प्रेम इस बात की तरफ इशारा भी करता है.

मायावती को बीजेपी का यही अंबेडकर प्रेम रास नहीं आ रहा है. लिहाजा अब एक बार फिर से मायावती अंबेडकर की विरासत को आगे बढ़ाने के नाम पर अपने खोए जनाधार को वापस लाने की कोशिश करेगी. यही कोशिश बीजेपी और मायावती के बीच अगले टकराव का कारण होगा. फिलहाल बीजेपी तो खुश होगी क्योंकि वक्त से पहले एक सीट का इजाफा जो होने वाला है.