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एनजीटी विवाद: अपने अक्खड़पन में मजाक तो नहीं बन रहे हैं श्री श्री

संत होने के बावजूद श्री श्री रविशंकर में इतना अहंकार होना ठीक नहीं है

Sandipan Sharma

रविशंकर जब आइना देखते हैं, तो उन्हें अपना चेहरा कैसा दिखाई देता है?लहराते काले बाल, घनी काली दाढ़ी, एक शानदार मुस्कुराहट के बीच चमकती आंखें, नारी के समान लहराते हाथ और सफेद वस्त्र के साथ नृत्य, इन सभी विशेषताओं के साथ जो तस्वीर सामने आती है. शायद यही श्री श्री रविशंकर की बाहरी पहचान है.

क्यों नहीं नजर आता पछतावा?


मगर, क्या वह किसी विवेक के प्रतीक भी हैं? क्या उनमें पछतावे का कोई लक्षण भी दिखाई पड़ता है? अपने अहंकार को दफन करने और यमुना डूबक्षेत्र को उनके संगठन की वजह से हुई क्षति पर उन्हें किसी तरह का खेद भी है?

क्या श्री श्री विनम्रतापूर्वक माफी मांगने की कला जानते हैं? मंगलवार को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने श्री श्री को इतनी कड़ाई से फटकार लगायी कि शायद कोई भी व्यक्ति शर्म से इतना गड़ गया होता कि वह अपना मुंह कहीं दिखा नहीं सके.

क्या कहा एनजीटी ने?

एनजीटी ने कहा, 'आपके भीतर जिम्मेदारी का कोई अहसास नहीं है क्या, आपको लगता है कि आप जो भी चाहते हैं, उसे करने की आपको आजादी है?'

यमुना नदी के डूब क्षेत्रों में आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन से हुए नुकसान के आरोपों की सुनवाई कर रहे ट्रिब्यूनल ने श्री श्री के संस्थान के खिलाफ पक्षपात वाले श्री श्री के आरोपों की परवाह नहीं की.

ट्रिब्यूनल ने याचिकाकर्ता से रिकॉर्ड पर श्री श्री के बयान के विवरण को दर्ज करने के लिए याचिका दायर करने को कहा.

डूब क्षेत्र के भारी नुकसान के लिए श्री श्री और उनके संगठन पर एनजीटी ने बार-बार अभियोग लगाया है.

नुकसान की भरपाई पर कितना होगा खर्च?

न्यायाधिकरण की ओर से नियुक्त विशेषज्ञों की एक समिति ने रिपोर्ट दी थी कि एओएल के 'वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल' के जरिए यमुना डूब क्षेत्र को भारी नुकसान हुआ है. इसकी भरपाई करने में 13.29 करोड़ रुपए और करीब 10 साल का समय लगेगा.

गलती मानने को क्यों तैयार नहीं श्री श्री 

एनजीटी की इस रिपोर्ट पर श्री श्री रविशंकर के जो जवाब आए हैं वो चौंकाने वाले हैं. सबसे पहले तो उन्होंने अपने कार्यक्रम की वजह से यमुना को होने वाले नुकसान के लिए केंद्र और एनजीटी को दोषी ठहराया है.

फिर उन्होंने तर्क दिया है कि उनके संगठन पर जुर्माना लगाने के बजाय, केंद्र और राज्य सरकारों और एनजीटी को ही डूब क्षेत्र को हुए नुकसान के लिए दंडित किया जाना चाहिए.

कारण स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा है कि अगर वे इलाके इतने ही नाजुक थे, तो यहां कार्यक्रम आयोजित करने के लिए उन्हें अनुमति ही क्यों दी गई?

तर्क पर गौर करें

आइए, जरा इस विशेष तर्क के भीतर झांकें. मार्च 2016 में श्री श्री ने यमुना तट पर भारत के सबसे बड़े नृत्य-और-ध्यान कार्यक्रम की शुरुआत की.

आर्ट ऑफ लिविंग के निमंत्रण पर हजारों लोग इस स्थल पर इकट्ठा हुए. उनकी सुविधा के लिए जमीन को समतल किया गया.

स्थानीय पेड़-पौधों को नष्ट किया गया. कुछ किसानों को वहां से हटाया गया और बहुत बड़े मंच का निर्माण किया गया.

तीन दिनों तक पर्यावरण के लिहाज से बेहद संवेदनशील क्षेत्र में गंदगी फैलती रही. यहां लोगों ने नृत्य किया, मल-मूत्र त्याग किया, खाया-पीया, गहरी सांसें ली और ऐसी बहुत सारी चीजें जो पर्यावरण के लिए ठीक नहीं थी, यहां छोड़कर चलते बने.

क्यों दी अनुमति?

श्री श्री अब कह रहे हैं कि अगर यह क्षेत्र पर्यावरण के लिहाज से इतना ही नाजुक था तो उन्हें अनुमति ही क्यों दी गई. अगर वे ही इसके लिए जिम्मेदार थे, तो फिर एनजीटी के बताए नुकसान की  जिम्मेदारी उन्हें क्यों नहीं लेनी चाहिए.

श्री श्री का विवादास्पद रहा है इतिहास

असल में श्री श्री के हास्यास्पद बयानों का इतिहास रहा है. 2016 में उन्होंने दावा किया कि नोबल पुरस्कार को उन्होंने ठुकरा दिया है.

बाद में उन्होंने कहा कि मलाला युसूफ़ज़ई में शांति के लिए नोबल पुरस्कार लेने की पात्रता ही नहीं थी.

फिर उन्होंने उन लोगों के लिए सजा मांग ली जिन्होंने उन्हें रिकॉर्ड के लिए कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति दी थी.

एनजीटी ने अनुमति को पहले तो रद्द कर दिया था. लेकिन बाद में उस कार्यक्रम को 'पूरा हुआ कार्य' कहकर फिर से अनुमति दे दी थी.

दरअसल कार्यक्रम की तैयारी अपने आखिरी चरण में थी. लिहाजा कहा गया था कि इसकी तैयारी में श्री श्री ने अपने आप को झोंक दिया था.

इंसानियत से दूर ये कैसा भगवान?

अपनी ही शैली वाले देवता की तरह खुद को व्यक्त करने वाले श्री श्री की समस्या ही यही है कि वो खुद को साधारण मनुष्यों से ऊपर उठने वाले कई पहलुओं पर विचार करना शुरू कर देते हैं.

प्रशंसा और भक्ति भाव से गदगद अनुयायी यह विश्वास करना शुरू कर देते हैं कि वास्तव में श्री श्री अवतार हैं.

किसी देवता के एक आधुनिक अवतार. और श्री श्री ये विश्वास करते हैं कि उन्होंने मानव जाति के कल्याण के लिए अवतार लिया है, इसलिए जीवन के साधारण नियम, देश के कानून, ट्रिब्यूनल के फैसले उन पर लागू नहीं होते.

उनके चाहने वाले मानते हैं कि श्री श्री मानवीय निन्दा और न्याय के परे किसी भगवान की तरह हैं.

अपने आदर्शों को खुद क्यों नहीं मानते श्री श्री  

जिन आदर्शों की श्री श्री शिक्षा देते हैं, क्या वो उन्हें खुद मानते हैं. एक बार उन्होंने बच्चों से कहा था कि वो पटाखे नहीं फोड़ें, क्योंकि पटाखे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं.

अगर वो इस पर थोड़ा भी विचार करते, तो वो ट्रिब्यूनल के फैसले को सम्मानपूर्वक स्वीकार कर लेते और यमुना डूब क्षेत्र के नुकसान के लिए हर्जाना भरते.

लेकिन अपने अक्खड़ तर्कों के साथ वे अपने आप में एक व्यंग्य बन गए हैं. अपने ही प्रवचन का जवाब बन गए हैं.

जिन उसूलों पर चलने के लिए अपने अनुयायियों को दिशा निर्देश देते हैं, उन्हीं पर वो खुद नहीं चल पा रहे हैं.

शायद श्री श्री को फिर से आईने में अपना चेहरा देखना चाहिए. अपने उन लहराते काले बालों और पारंपरिक सफेद वस्त्रों के पीछे वो किसी ऐसे इंसान को ढूंढ सकते हैं, जो अहांकार से भरा हुआ है.

जिसमें पर्यावरण को लेकर किसी तरह की ज़िम्मेदारी का अहसास नहीं है और जिसमें अपनी गलतियों को स्वीकार करने का साहस तक नहीं है.