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इस बार लिंगायत और वोक्कालिगा की जगह दलित, मुस्लिम तय करेंगे कर्नाटक का भविष्य?

कर्नाटक में दलित 19.5 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 5 प्रतिशत, मुसलमान 16 प्रतिशत, कुरुबा 7 प्रतिशत, बाकी के ओबीसी 16 प्रतिशत, लिंगायत 14 प्रतिशत, वोक्कालिगा 11 प्रतिशत, ब्राह्मण 3 प्रतिशत, ईसाई 3 प्रतिशत, बौद्ध व जैन 2 प्रतिशत बाकी के 4 प्रतिशत हैं

FP Staff

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से पहले जातिगत जनगणना पूरे सामाजिक- राजनीतिक परिदृश्य को बदल सकता है. 'सामाजिक-आर्थिक सर्वे' नाम की यह जनगणना फिलहाल सरकार के संरक्षण में है.

कई समूहों ने इस 'जातिगत जनगणना' का यह कहते हुए विरोध किया था कि राज्य सरकार को ऐसा काम करने की अनुमति नहीं है. सरकार जनगणना से मिले तथ्यों को सार्वजनिक करने से झिझक रही है. उसका कहना है कि ये 'स्टेट सीक्रेट' है.


सर्वे के मुताबिक राज्य में दो ऊपरी जाति लिंगायत और वोक्कालिगा के राजनीतिक दबदबे को कम कर सकते हैं. आजादी के बाद से ही ये दो प्रमुख जातियां राज्य की राजनीति को नियंत्रित कर रही हैं. सत्ता में कोई भी पार्टी हो पर राज्य के 50 फीसदी विधायक और सांसद इसी जाति से रहे हैं. यहां तक कि लिंगायत एक अलग धर्म का दर्जा चाहते हैं और सिद्धारमैया सरकार इसका समर्थन कर रही है.

न्यूज़ 18 ने जनगणना के आंकड़ों में जो पाया उसके मुताबिक, दलितों और मुस्लिमों की संख्या लिंगायत और वोक्कालिगा की जनसंख्या से अधिक है. राज्य में अनुसूचित जातियों की संख्या कुल आबादी की 19.5% है जो कि राज्य में सबसे बड़े जातीय समूह के रूप में उभरा है. इसके बाद मुस्लिमों का स्थान है जो कि राज्य की कुल जनसंख्या का 17 प्रतिशत हैं. इन दोनों समुदायों के बाद लिंगायत व वोक्कालिगा का स्थान आता है जो कि क्रमशः 14 फीसदी व 11 फीसदी हैं.

अन्य पिछड़ा वर्गों में कुरुबा राज्य की कुल जनसंख्या में अकेले 7 फीसदी हैं. बता दें कि राज्य में 20 फीसदी जनसंख्या अन्य पिछड़ा वर्ग की है.

आंकड़ों के अनुसार राज्य में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, मुसलमान व कुरुबा की जनसंख्या को मिला दें तो ये राज्य की कुल जनसंख्या की 47.5 फीसदी जनसंख्या हो जाती है. मुख्यमंत्री के AHINDA (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और दलित) वर्ग को अपनी ओर करने का समीकरण अचूक है, जिसकी सफलता कांग्रेस को जीत के काफी नजदीक ला सकती है.

हालांकि लिंगायत व वोक्कालिगा दोनों जातियों ने इस डेटा को नकारा है. वीराशैव-लिंगायत महासभा की राष्ट्रीय सचिव एचएम रेणुका प्रसन्ना ने कहा कि जस्टिस 'चिन्नप्पा रेड्डी कमीशन' की रिपोर्ट के अनुसार 1980 में हमारी जनसंख्या राज्य की कुल जनसंख्या की 16.92 फीसदी थी और 'हवनूर कमीशन' के अनुसार हमारी जनसंख्या 17.23 फीसदी थी. तो ये कैसे संभव है कि 30 सालों बाद हमारी आबादी अब घटकर मात्र 14 फीसदी रह गई हो.

सरकार ने ऐसा कोई डेटा जारी ही नहीं किया है?

प्रसन्ना ने आरोप लगाया कि सिद्धारमैया वास्तविक आंकड़ों के साथ अपने लाभ के अनुसार खेल रहे हैं. वोक्कालिगा समुदाय का भी यही मानना है. सरकार में ही वोक्कालिगा समुदाय के एक मंत्री ने कहा कि वोक्कालिगा की कुल जनसंख्या राज्य की कुल जनसंख्या की 16 फीसदी है न कि 11 फीसदी.

एक वोक्कालिगा ब्यूरोक्रेट ने कहा कि यदि ये आंकड़े सही हैं तो पिछले 70 सालों से जो दबदबा कर्नाटक की राजनीति में वोक्कालिगा और लिंगायत का बना हुआ था वो खत्म हो जाएगा और आगे से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, कुरुबा व मुसलमान ही कर्नाटक के भाग्य का निर्णय करेंगे.

हालांकि मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने इसे अफवाह बताया और कहा कि सरकार ने ऐसा कोई डेटा जारी ही नहीं किया है. उन्होंने इस पर कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया. कर्नाटक के बीजेपी अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा और जेडीएस के राज्य प्रमुख एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि सिद्धारमैया सरकार राज्य को फिर एक बार जातिगत आधार पर बांटने की कोशिश कर रही हैं.

सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस सरकार अभी दुविधा में है कि रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए कि नहीं क्योंकि इससे वोक्कालिगा व लिंगायत समुदाय नाराज़ हो सकता है और इससे सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल मच सकती है. एक अधिकारी ने बताया कि चुनावों के पहले जातिगत जनगणना के आधार पर मिले आंकड़ों को जारी नहीं किया जायेगा, क्योंकि ये बहुत खतरनाक साबित हो सकता है.

जातिगत जनगणना के अनुसार राज्य में दलित 19.5 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 5 प्रतिशत, मुसलमान 16 प्रतिशत, कुरुबा 7 प्रतिशत, बाकी के ओबीसी 16 प्रतिशत, लिंगायत 14 प्रतिशत, वोक्कालिगा 11 प्रतिशत, ब्राह्मण 3 प्रतिशत, ईसाई 3 प्रतिशत, बौद्ध व जैन 2 प्रतिशत बाकी के 4 प्रतिशत हैं. कर्नाटक की कुल जनसंख्या 6 करोड़ है जिसमें 4.90 करोड़ रजिस्टर्ड मतदाता हैं.

(न्यूज़18 के लिए डी.पी सतीश की रिपोर्ट)