view all

द इकोनॉमिस्ट की सलाह, रतन टाटा ने झंझट शुरू किया, उन्हें ही करना होगा समाधान

अंतरिम चेयरमैन को जल्दी ही इन समस्याओं का समाधान करना होगा.

FP Staff

रतन टाटा और सायरस मिस्त्री  के झगड़े को एक महीने हो गए हैं. एक दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोपों से दोनों के बीच की कड़वाहट बढ़ती ही जा रही है.

सायरस मिस्त्री को बहुत ही अनौपचारिक तरीके से टाटा संस के बोर्ड ने चेयरमैन के पद से हटने को मजबूर कर दिया था और रतन टाटा को फिर से अंतरिम चेयरमैन के रूप में नियुक्त करके सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था.


रतन टाटा को निकालना होगा रास्ता

पहली नजर में यह लगा कि पिछले चार सालों के कार्यकाल के दौरान मिस्त्री का बहुत ही अधिक नरम व्यवहार ग्रुप के बिजनेस हितों को नुकसान पहुंचा रहा था और यही उनके हटाए जाने का कारण बना. लेकिन जैसे-जैसे आने वाले हफ्तों में अन्य बातें सामने आई, उससे कहानी में नया मोड़ आया और यह सोच बनी कि मिस्त्री के कुछ कड़े निर्णय उनके निकाले जाने का कारण बने.

सार्वजनिक रूप से तथ्यों के सामने आने से और मिस्त्री को अन्य लिस्टेड कंपनियों के चेयरमैन पद से हटाने के फैसले के कारण ग्रुप को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. कई लोग यह महसूस कर रहे हैं कि वर्तमान अंतरिम चेयरमैन को जल्दी ही इन समस्याओं का समाधान करना होगा, जिसकी शुरुआत उन्होंने कुछ हफ्ते पहले की थी.

द इकोनॉमिस्ट के आर्टिकल के अनुसार रतन टाटा को जल्दी से काम करने की जरूरत है ताकि जिस झमेले की शुरुआत उन्होंने की है, उससे वह बाहर निकल सकें. द इकोनॉमिस्ट के आर्टिकल में लिखा है- ‘मिस्टर टाटा ने इस झमेले को खड़ा किया है और यह उनके ऊपर है कि वे इसे कैसे खत्म करते हैं.’ रिपोर्ट के अनुसार, टाटा अपने ट्रस्टों के जरिए मिस्त्री को अपने नियंत्रण वाली अन्य कंपनियों से निकालने की कोशिश कर रहे हैं.

टाटा ग्रुप सही या मिस्त्री ?

रिपोर्ट के मुताबिक मिस्त्री को कभी भी स्वतंत्र तरीके से काम नहीं करने दिया गया और टाटा शुरू से ही उनके गर्दन पर सवार थे. हालिया मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक टाटा ग्रुप मिस्त्री के यूरोप में टाटा स्टील के संपत्तियों को बेचने के फैसले और टाटा-डोकोमो की डील को गलत तरीके संभालने के कारण नाराज था. साथ ही लाभांश भुगतान के बंटवारे पर मिस्त्री द्वारा लिए गए फैसले से भी टाटा संस को उनके नियंत्रण वाली कंपनियों से कम आय प्राप्त हुई.

पिछले सप्ताह टाटा ग्रुप फर्म की प्रोमोटर कंपनी ने मिस्त्री पर आरोप लगाया कि उन्होंने विश्वासघात किया है और 68155 करोड़ रुपए वाली ग्रुप की मुख्य कंपनियों पर कब्जा करने की कोशिश की.

मिस्त्री के चार साल के प्रदर्शन पर भी सवालिया निशान खड़ा किया गया. इनके कार्यकाल के दौरान टाटा स्टील यूरोप, डोकोमो-टाटा टेली का साझा वेंचर और टाटा मोटर्स का भारत में कामकाज ‘समस्याग्रस्त कंपनियों’ की लिस्ट में आ गया और इन कंपनियों के ‘कामकाज में विशेष बढ़त’ नहीं हुई. लगातार बढ़ते घाटों, कर्जों और घटते मार्केट शेयर से समस्या दिन-ब-दिन और गहरी होती गई.

मिस्त्री को टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज के चेयरमैन पद से हटा दिया गया है और टाटा ग्लोबल बिवरेजस के डायरेक्टर्स ने भी इस फैसले का समर्थन किया. हालांकि मिस्त्री अभी भी ग्रुप की कुछ मुख्य कंपनियों जैसे टाटा मोटर्स और टाटा स्टील के चेयरमैन पद पर बने हुए हैं, जिसमें टाटा संस के मालिकाने का बहुमत नहीं है. टाटा संस ने इन कंपनियों के शेयरहोल्डर्स की मीटिंग बुलाई ताकि मिस्त्री को हटाया जा सके.

दूसरी तरफ मिस्त्री ने इसके उलट आरोप लगाए और कहा कि टाटा ग्रुप की कंपनियों की अधिकतर मुश्किलें अतीत में लिए गए लापरवाही भरे फैसलों के कारण है. मैं केवल इन गड़बड़ियों को कुछ कड़े फैसलों द्वारा ठीक करने की कोशिश कर रहा था.

टाटा को करना होगा पूर्ण नियंत्रण

असल में, टाटा ग्रुप फर्म के कुछ स्वतंत्र डायरेक्टर्स, जिसमें वाडिया ग्रुप के चेयरमैन नुस्ली वाडिया भी शामिल हैं, सायरस मिस्त्री का लगातार समर्थन कर रहे हैं और उन्हें निकाले जाने के फैसले को गलत कह रहे हैं.

लेकिन इन दोनों कॉरपोरेट दिगज्जों के आरोप-प्रत्यारोप के दौर के बीच, विशेषज्ञों का मानना है कि रतन टाटा को इस झमेले से जितना जल्दी संभव हो सके निकलना होगा ताकि ग्रुप को प्रभावी तरीके से चलाया जा सके. रिपोर्ट के मुताबिक हाल के दिनों में गलत एकाउंटिंग और गैरकानूनी डीलों के आरोपों से ग्रुप के ऊपर आधिकारिक जांच का भी खतरा है.

द इकोनॉमिस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रुप के ऊपर नियंत्रण करने के लिए टाटा को ग्रुप के ढांचे में सुधार करना होगा और इसकी शुरुआत उन्हें अपने नियंत्रण वाली मुख्य कंपनियों से करनी होगी.आर्टिकल के मुताबिक ट्रस्ट को अपनी पूर्ण नियंत्रण वाली कंपनियों में से अपने शेयर के हिस्से को 50 फीसदी से कम करना चाहिए और इनकी संपत्तियों का बंटवारा करके सामूहिक जिम्मेदारी को तय करना चाहिए.

रिपोर्ट के मुताबिक टाटा को एक साल तक चेयरमैन बने रहना चाहिए इसके बाद ही वे ग्रुप पर अपने पूर्ण नियंत्रण की घोषणा कर सकते हैं.