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Exclusive: PM की अध्यक्षता वाले पैनल के सामने आलोक वर्मा पर CVC ने लगाए थे दस्तावेजों में जालसाजी के आरोप

सतर्कता एजेंसी छह और गंभीर गड़बड़ियों के आरोपों में वर्मा की भूमिका की जांच कर रही है

Yatish Yadav

सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक कुमार वर्मा ने भले ही नौकरी से इस्तीफा दे दिया है, लेकिन उन्हें कुछ गंभीर आरोपों पर केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) की जांच का सामना करना पड़ेगा, जो जांच एजेंसी के सेवारत अधिकारियों ने उनके खिलाफ लगाए हैं. उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले पैनल को सौंपी गई सीवीसी रिपोर्ट में कम से कम 6 मामलों को उजागर किया गया था, जिन्हें वर्मा ने एजेंसी के मुखिया के रूप में कथित तौर पर प्रभावित करने की कोशिश की थी.

यह आरोप लगाया गया है कि वर्मा ने आईडीबीआई बैंक फ्रॉड मामले में एयरसेल के पूर्व मालिक सी. शिवशंकरन के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर को हल्का किया था. सीबीआई अधिकारियों के मुताबिक वर्मा ने कथित तौर पर शराब कारोबारी विजय माल्या के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर को भी हल्का किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाले पैनल के सामने पेश सीवीसी नोट की फ़र्स्टपोस्ट की ओर से किए गए अध्ययन से पता चलता है कि वर्मा ने अपनी आंख की किरकिरी बने राकेश अस्थाना की पदोन्नति को रोकने के लिए सीवीसी सलेक्शन पैनल को भेजे गए गुप्त नोट में भी जालसाजी की थी.


सीवीसी ने अपने नोट में लगाए थे ये आरोप

पीएम की अध्यक्षता वाले पैनल को सौंपे सीवीसी नोट में कहा गया है, 'जांच के दौरान और विशेष निदेशक (अस्थाना) के आवेदन का परीक्षण करते समय यह पाया गया कि दिनांक 21.10.2017 को सीवीसी अधिनियम 2003 की धारा 26 के तहत गठित चयन समिति के समक्ष रखा गया गुप्त नोट पूरी तरह जालसाजी किए दस्तावेज जैसा लगता है. दस्तावेज तैयार करने वाले ने कहा कि उसे दस्तावेज निदेशक द्वारा दिया गया था. जबकि, संबंधित अधिकारी (डीआईजी एसयू) द्वारा तैयार किए दस्तावेज में ऐसे कुछ हानिकारक पैराग्राफ नहीं थे. किसी भी अधिकृत व्यक्ति द्वारा इन हानिकारक पैराग्राफ को लिखे जाने की बात साबित नहीं हो सकी है. इससे आलोक वर्मा की ईमानदारी पर गंभीर संदेह होता है, जिन्होंने इस दस्तावेज को समिति के सामने रखा था और आयोग द्वारा बार-बार अनुरोध किए जाने के बाद भी इस ‘सीक्रेट नोट’ में लगाए आरोपों पर ना तो कोई रिपोर्ट दी और ना ही कोई दस्तावेज सौंपे.'

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सीवीसी सीबीआई अधिकारियों से प्राप्त आरोपों की भी जांच शुरू करेगा. अधिकारियों ने यह आरोप लगाया है कि वर्मा ने उत्तर प्रदेश के कुख्यात एनएचआरएम घोटाले में अभियुक्तों को आपराधिक मुकदमा चलने और सजा से बचाया.

सीवीसी सीबीआई अधिकारियों से प्राप्त आरोपों की भी जांच शुरू करेगा. अधिकारियों की ओर से यह आरोप लगाया गया है कि वर्मा ने उत्तर प्रदेश के कुख्यात एनएचआरएम घोटाले में अभियुक्तों को आपराधिक मुकदमा चलाए जाने और सजा से बचाया. यह भी आरोप लगाया गया है कि उन्होंने बैंक फ्रॉड के दो आरोपियों को बचाया और नीरव मोदी मामले में आंतरिक ईमेल लीक होने को छिपाने की कोशिश की. सीवीसी ने 26 दिसंबर 2018 को सीबीआई से इन आरोपों से संबंधित दस्तावेजों को पेश करने के लिए कहा था, लेकिन एजेंसी ने 8 जनवरी 2019 को विजय माल्या के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर से संबंधित फाइलों और दस्तावेजों को पेश किया.

जिस बैठक में वर्मा के तबादले का फैसला हुआ उसमें पीएम की अध्यक्षता वाले पैनल को सीवीसी ने बताया कि, 'शेष मामलों के संबंध में दस्तावेज/फाइलें अभी तक सीबीआई ने पेश नहीं की हैं. इस मामले की जांच जारी है.'

मोईन कुरैशी मामले की आपराधिक जांच की मांग

सीवीसी ने यह भी कहा कि जांच के दौरान कैबिनेट सचिव की ओर से पेश की गई शिकायत में दर्ज कुछ आरोप प्रथमदृष्टया सच पाए गए हैं और वह संबंधित अधिकारी व संस्था की ईमानदारी पर बहुत गंभीर असर डाल रहे हैं. सीवीसी ने यह भी कहा कि मीट एक्सपोर्टर मोईन कुरैशी के मामले में वर्मा का आचरण संदिग्ध है और इसके लिए पूरी तरह से आपराधिक जांच की जरूरत है. सतर्कता निगरानी संस्था ने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि वर्मा ने सीबीआई निदेशक के रूप में आईआरसीटीसी घोटाले की प्राथमिकी में मुख्य साजिशकर्ता के नाम को जानबूझकर बाहर रखा और संदिग्ध अधिकारी की मदद की कोशिश की.

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सीवीसी ने आगे कहा कि, 'कुछ आरोपों की आगे विस्तृत जांच किए जाने की जरूरत है, जो कि अगर आलोक वर्मा जांच करने वाली उसी संस्था के प्रमुख बने रहेंगे, तो संभव नहीं होगा. चयन समिति के सामने जालसाजी किए/नकली दस्तावेजों को पेश करना ईमानदारी और निष्पक्षता के अभाव को दर्शाता है.'

सुप्रीम कोर्ट ने 26 अक्टूबर को सीवीसी को सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जस्टिस एके पटनायक की निगरानी में दो सप्ताह के भीतर जांच पूरी करने को कहा था. जांच के दौरान, सीवीसी ने कई दस्तावेज, रिकॉर्ड देखने के साथ ही सीबीआई अधिकारियों व अन्य को बुलाया और उनका बयान दर्ज करने के बाद सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंप दी थी.