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माँ और भगवान का 'विकल्प' है गाय: हैदराबाद हाई कोर्ट

गाय को पवित्र राष्ट्रीय धरोहर बताते हुए यह भी कहा कि गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा मिलना ही चाहिए

FP Staff

हैदराबाद हाई कोर्ट के एक जज ने शुक्रवार को गाय को लेकर बड़ी टिप्पणी की है. जस्टिस बी शिवाशंकर राव ने कहा कि गाय माँ और भगवान का 'विकल्प' है. साथ ही उन्होंने गाय को पवित्र राष्ट्रीय धरोहर बताते हुए यह भी कहा कि गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा मिलना ही चाहिए. कुछ दिन पहले ही राजस्थान हाई कोर्ट ने भी गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा देने की बात कही थी.

जस्टिस शिवाशंकर राव ने सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर का जिक्र करते हुए कहा कि बकरीद के मौके पर मुस्लिम धर्म के लोगों को स्वस्थ्य गाय को काटने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है.


टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार जज ने उन पशु-डॉक्टरों को आंध्रप्रदेश गोहत्या एक्ट 1977 के अंतर्गत लाने की मांग भी की जो कि धोखे से सेहतमंद गाय को अनफिट करार देकर सर्टिफिकेट देकर कह देते हैं कि वे दूध नहीं दे सकती. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उन गायों को काटने की इजाजत है जो कि बूढ़ी हो चुकी हैं और दूध नहीं देती हों.

दरअसल पशु व्यवसायी रामावत हनुमा की हाई कोर्ट में दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए जज ने यह बात कही. रामावत उसकी जब्त की गई 63 गायों की कस्टडी के लिए निचली अदालत के पास पहुंचा था.

निचली अदालत में अपील खारिज होने के बाद उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. वहां जस्टिस राव ने हनुमा की दलील यह कहकर ठुकरा दी कि वह ट्रायल कोर्ट के फैसले में दखल नहीं देना चाहते.

रामवत का कहना है कि वह गायों को चराने के लिए अपने गांव के पास कंचनपल्ली गांव लेकर गया था. वहीं उस पर आरोप है कि वह अपने कुछ साथियों के साथ पास के किसानों से उन गायों और बैलों को लेकर आया था ताकि बकरीद पर उनको काट सके.

बाबर ने भी लगाई थी गोहत्या पर पाबंदी

जज ने बाबर का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने गोहत्या पर पाबंदी लगाई थी. जज ने कहा कि बाबर ने अपने बेटे हूमायूं को भी ऐसा ही करने को कहा था. जज ने कहा कि अकबर, जहांगीर और अहमद शाह ने भी गोहत्या पर पाबंदी रखी थी.

बता दें कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में गायों को कत्लगाह में ले जाने की अनुमति तभी है जब डॉक्टरों द्वारा यह सर्टिफिकेट दे दिया जाए कि गाय अब दूध दे सकने में समर्थ नहीं हैं. जस्टिस राव ने यह भी बताया कि अब एपी काउ स्लॉटर ऐक्ट 1977 में संशोधन के बाद अब इस अपराध को गैरजमानती और गंभीर भी माना जाएगा.