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भारतीय पोर्ट्स पर कस्टम के माफियाराज पर मोदी लगाएंगे लगाम?

सिस्टम और कस्टम के बीच झूलते भारतीय ड्राई पोर्ट्स और सी पोर्ट्स

Ravishankar Singh

सरकार काले धंधे पर लगाम कसने की तमाम कोशिशें कर रही है. लेकिन देश के सैकड़ों पोर्ट्स और कंटेनर डिपो में खुलेआम स्मगलिंग का धंधा फलफूल रहा है और वो भी सरकार की नजरों के नीचे.

तस्कर रोज नए-नए तरीके से स्मगलिंग के जरिए सामान देश में ला रहे हैं. आए दिन सुनने को मिलता रहता है कि पपीते में, चप्पल-जूतों में सोना-चांदी लाया जा रहा है. कंटेनरों में लदे सामान की रसीद कुछ और होती है और कंटेनर खोलने पर सामान कुछ और निकलता है.


ब्यूरोक्रेसी और राजनीति की मिलीभगत से माफियातंत्र सरकारी खजाने को हर साल लाखों करोड़ रुपए का चूना लगा रहा है.

सीबीईसी पर खडे़ होते हैं सवाल

सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज एंड कस्टम (CBEC) विभाग के अंतगर्त आने वाले कस्टम विभाग को लेकर हमेशा सवाल खड़े होते रहते हैं. सीबीईसी, वित्त मंत्रालय के तहत आता है. सीबीईसी विभाग में काम करने वाले अधिकारी देश के सबसे रईस अफसरों में गिने जाते हैं.

भारत सरकार के टैक्स डिपार्टमेंट लगातार कहते रहते हैं कि हमने डीलर्स स्मगलरों और व्यापारियों पर काफी हद तक नकेल कस दी है, पर सच्चाई इसके उलट है. देश के मेन एंट्री प्वांइट जैसे कंटेनर डिपो, रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों और पोर्ट्स पर धड़ल्ले से स्मगलिंग का सामान इधर-उधर हो रहा है.

कुछ महीने पहले ही खबर आई थी कि दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर स्मगलरों से बरामद लगभग 100 किलो सोना गायब हो गया. वित्त मंत्रालय ने गायब सोने की जांच सीबीआई को सौंपी. सीबीआई को आज तक सोना चोर का कोई सुराग नहीं मिला है.

देश के अतिसुरक्षित आईजीआई एयरपोर्ट पर अगर इस तरह का वाकया हो सकता है तो देश के सैकड़ों पोर्ट का क्या आलम होता होगा, यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. जहां सोना, इलेक्ट्रॉनिक गुड्स, महंगी शराब और फैब्रिक्स हर रोज उतरते रहते हैं.

सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था नहीं

देशभर के लगभग 350 पोर्ट्स (ड्राई-पोर्ट्स और सी-पोर्टस) आज भी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं. इन पोर्ट्स पर आज भी आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नहीं के बराबर हो रहा है.

देश के इन पोर्ट्स पर करोड़ों का सामान रोज लोड-अनलोड हो रहा है. उसकी निगरानी और जांच के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं. देशभर के इक्का-दुक्का पोर्ट पर ही एक-दो स्कैनर मशीनें लगी हैं. कुछ जगहों पर एक्स-रे मशीन हैं पर वह चालू हालत में नहीं है.

वक्त की कमी

फर्स्टपोस्ट हिंदी ने दिल्ली के दो डिपो तुगलकाबाद और पटपड़गंज में जाकर कंटेनर को लोड और अनलोड करने का तरीका जाना, जो बेहद हैरान करने वाला था. एक कस्टम इंसपेक्टर को जांच के लिए 10-10 कंटेनर मिलते हैं. जबकि एक कंटेनर की सही जांच के लिए कम से कम दो घंटे चाहिए. अगर कस्टम इंस्पेक्टर सही तरीके से जांच करे तो 10 कंटेनर को जांच करने में लगभग 20 घंटे लगेंगे. जबकि एक कस्टम इंस्पेक्टर की ड्यूटी सात से आठ घंटे की होती है.

अपनी पहचान गोपनीय रखने पर पटपड़गंज के एक कस्टम इंस्पेक्टर ने बताया, ऊपर के अधिकारियों को सब पता होता है. हम लोग सिर्फ एक औपचारिकता पूरी करने के लिए जांच करते हैं. हम अगर सिस्टम के साथ नहीं चलेंगे तो हमें दूसरे विभाग में भेज दिए जाएगा.

भ्रष्टाचार पर पीएम ने भी दिया था आश्वासन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में मुंबई के कस्टम ऑफिस का दौरा किया था जहां पर कस्टम विभाग के कुछ ईमानदार अधिकारियों ने विभागीय भ्रष्टाचार को लेकर एक रिपोर्ट सौंपी थी. प्रधानमंत्री मोदी ने उन अधिकारियों को आश्वासन दिया था कि बहुत जल्द ही कस्टम विभाग को चुस्त-दुरुस्त किया जाएगा.

19 मार्च 2014 को देश के शिपिंग मंत्रालय के डिप्टी सेकेट्री अनंत किशोर शरण ने भारतीय पोर्ट के ताजा हालात और चुनौती पर एक रिपोर्ट थी. जिसमें कई वजहों का जिक्र था.

कस्टम विभाग के एक रिटायर अधिकारी कहते हैं, अगर इस सिस्टम में बदलाव लाना है तो देश के सभी पोर्ट्स में पावरफुल एक्सरे मशीन और स्कैनर मशीन लगाने होंगे.

उन्होंने कहा, ‘देश की सभी इनवेस्टीगेशन एजेंसी मसलन आईबी, सीबीआई को कस्टम विभाग पर निगरानी रखने का अधिकार देना चाहिए, ताकि कस्टम विभाग के अधिकारियों की मॉनिटरिंग हो सके.’

इम्पोर्टेड सामान का बीमा नहीं

कस्टम विभाग के अधिकारी आगे कहते हैं कि सी-पोर्ट और ड्राई-पोर्ट के जरिए भारत लाए जाने वाले विदेशी उत्पाद पर बीमा करवाने की अनिवार्यता नहीं है. लिहाजा तस्कर इसका पूरा फायदा उठाते हैं. जबकि, प्लेन से आने वाले विदेशी उत्पाद के लिए बीमा अनिवार्य है.

अधिकारी के मुताबिक, ‘रिकॉर्ड बताता है कि हर साल कस्टम इंस्पेक्टर, सहायक कमिश्नर, डिप्टी कमिश्नर और कमिश्नर मिलकर 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कलेक्शन करते हैं.’

फर्स्टपोस्ट हिंदी ने इस बारे में पटपड़गंज डिपो के कस्टम कमिश्नर बीबी गुप्ता से बात करनी चाही, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद उन्होंने मिलने से इंकार कर दिया. वैसे उन्होंने अपने पीए के जरिए दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों से बात करने की सलाह जरूर दी.

कैसे होता है गोल-माल

तहकीकात के दौरान राजस्व कर बचाने और चोरी के नए तरीकों का पता चला. विदेशी शराब, विदेशी सिगरेट, नशे का सामान, गोल्ड, विदेशी घंड़ियां और फैब्रिक्स को कैसे इंपोर्ट और एक्सपोर्ट किया जा रहा है.

दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट, मुंबई के छत्रपति शिवाजी ट्रर्मिनल, जयपुर एयरपोर्ट और अहमदाबाद के एयरपोर्टों पर सोने की तस्करी सबसे ज्यादा होती है. इसके अलावा देश के दूसरे एयरपोर्टों पर भी सोने की तस्करी होती रहती है. खास कर दुबई से सोने की तस्करी ज्यादा होती है. लगभग एक किलो सोना भारत में बेचने पर तस्करों को लगभग तीन से चार लाख रुपए की बचत होती है.

कस्टम विभाग के एक रिटायर्ड अधिकारी बताते हैं कि हवाई अड्डों पर पकड़े गए तस्करों की संख्या 2 से 4 प्रतिशत के बीच होती है. बचे तस्कर कस्टम विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से भागने में सफल हो जाते हैं. चोरों के तरीके भी बदल गए हैं. वे चप्पल-जूतों के साथ पपीता जैसे खाने-पीने के सामान में छुपा कर सोना लाते हैं.

अवैध रूप से लाए गए सोने को अधिकारियों और स्कैनर से बचाने के लिए एक विशेष प्रकार की कार्बन शीट से लपेटने के बाद एक काले रंग के पाइप रैपिंग टेप से लपेटकर किसी इलेक्ट्रॉनिक आइटम की बैटरी का शेप देकर उसको फिट कर दिया जाता है. जिससे वे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की आंख में धूल झोंक सके.

समुद्री पोर्ट

देश में 7, 500 किमी समुद्री एरिया है. जिसमें लगभग 180 पोर्ट काम कर रहे हैं. देश में 12 मेजर पोर्ट हैं. 6 पोर्ट ईस्ट कोस्ट में है तो 6 पोर्ट वेस्ट कोस्ट में है. देश के इन 12 पोर्ट्स पर ही देश की 60 प्रतिशत ट्रैफिक लोड होता है. बाकी बचे 176 पोर्ट्स पर ट्रेफिक का भार 40 प्रतिशत होता है.

ड्राइ-पोर्ट

सी-पोर्ट की तरह ही भारत में लगभग 247 ड्राइ पोर्ट हैं. जिसमें 170 पोर्ट काम कर रहे हैं. बाकी बचे पोर्ट पर अभी काम नहीं हो रहा है. काम कर रहे ड्राइ पोर्ट्स में 40 प्रतिशत डिपो कंटेनर कॉरपर्रेशन या सेंट्रल वेयर हाउस के अंतर्गत आते हैं. बाकी बचे प्राइवेट सेक्टरों के पास है. पोर्ट्स पर सामानों की पहचान को लेकर कोई ठोस इंतजाम नहीं हैं.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

सुरक्षा मामले के जानकार कमर आगा कहते हैं कि ‘भारत में बड़ा मुश्किल है सामानों को चेक करना. जो सामान पकड़े जाते हैं वो पहले से ट्रेस हो जाते हैं, इसलिए वे पकड़े जाते हैं. दाउद जैसे लोगों ने देश में पूरा जाल बिछा रखा है. वह पैसे बांट कर काला कारोबार करता है. भारतीय सिस्टम उसके लिए मुफीद है.’

कमर आगा आगे कहते हैं,'भारत में एक-एक कंटेनर खोल कर देखे नहीं जा सकते. स्कैनर होना चाहिए, पर स्कैनर के साथ दिक्कत ये है कि जो सामान होते हैं वे मेटल के होते हैं. खोल-खोल कर देखा नहीं जा सकता. अमेरिका जैसे देशों का सिस्टम एडवांस है, और वहां पर इस तरह की सख्ती नहीं है. एक निश्चित मात्रा में आप गोल्ड ले जाओ या ले आओ, करेंसी ले जाओ ले आओ कोई पूछने वाला नहीं है. वहां टोटली फ्री मार्केट इकनॉमी है. तो, बहुत सी चीज बच जाती है. हमारे यहां कंट्रोल्ड और मिक्स्ड इकनॉमी है और स्कैनर नहीं है.’

कमर आगा कहते हैं ‘हमारे यहां भी अमेरिका और यूरोप मॉडल वाला सिस्टम लगाना ही होगा. जिस तरह सिंगापुर, हांगकांग में सिस्टम है उसी सिस्टम को हमलोगों को लाना ही पड़ेगा. इन देशों के सिस्टम ऑटोमेटिक है. दूसरी तरफ हमारे यहां नियमों में बदलाव लाने पड़ेंगे. जब तक एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म नहीं होंगे ब्यूरोक्रेसी इसी तरह काम करती रहेगी. भ्रष्टाचार का एक बहुत बड़ा कारण है पुराने नियम कायदें हैं, जिनका दाउद जैसे तस्कर फायदा उठाते हैं. 100 साल पहले के नियम कायदों को बदलना होगा. ब्यूरोक्रेसी के पूरे स्वरूप को बदलना होगा तभी इस पर कुछ हद तक लगाम लग सकती है.'

भारत के तीन पड़ोसी देश चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश ने अपने-अपने देशों के सिस्टम में बदलाव किया है. चाइना के सारे बंदरगाह पर आधुनिक टेक्नोलॉजी का प्रयोग हो रहा है. बांग्लादेश ने भी हाल ही में अपने मेन पोर्ट चिटगांव सहित तीन पोर्ट्स को आधुनिक बनाने के काम शुरू कर दिया है. चीन की सहभागिता से तीनों पोर्ट्स पर मोबाइल स्कैनर लगाया जा रहा है.

देश में आज-कल हर तरफ कालेधन की बात हो रही है. नोट बंदी को लेकर विपक्ष सड़क से लेकर संसद तक मार्च कर रही है. सरकार काले कारोबारियों पर नकेल कसने के लिए एक के बाद एक फैसले ले रही है.

जरूरत है काले कारोबार पर लगाम कसने की एक ठोस रणनीति की. जिससे देश के सैंकड़ों पोर्ट और कंटेनर डिपो को स्मगलिंग के काले कारोबार का हब बनने से रोका जा सके.