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एडल्टरी पर महिलाओं को भी हो सजा? SC की संवैधानिक पीठ करेगी फैसला

मौजूदा कानून के मुताबिक, अभी अगर कोई शादीशुदा मर्द किसी शादीशुदा महिला से शारीरिक संबंध बनाता है, तो इसमें सिर्फ उस मर्द को ही सजा होगी

FP Staff

शादी से बाहर संबंध बनाने को लेकर कानून को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक पीठ यानी कॉन्स्टिट्यूशन बेंच को ट्रांसफर कर दी है. अब पांच जजों की बेंच इस मामले पर फैसला करेगी. मौजूदा कानून के मुताबिक, शादी के बाद किसी दूसरी महिला से संबंध बनाने पर अभी तक सिर्फ पुरुष के लिए ही सजा का प्रावधान है. महिलाओं को इस मामले में कोई सजा नहीं होती. क्योंकि कानून में महिला शब्द का कोई जिक्र ही नहीं है.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि जब आपराधिक कानून महिला-पुरुष के लिए समान है, तो फिर सेक्शन 497 में ऐसा क्यों नहीं होता?


आईपीसी के सेक्शन 497 पर 1954 में चार जजों की बेंच असहमति जता चुकी है. ऐसे में अब सिर्फ पांच जजों की बेंच इस कानून की वैधता पर पुनर्विचार करेगी.

सेक्शन 497 के मुताबिक, अभी अगर कोई शादीशुदा मर्द किसी शादीशुदा महिला से शारीरिक संबंध बनाता है, तो इसमें सिर्फ उस मर्द को ही सजा होगी. इस मामले में शादीशुदा महिला पर न तो व्यभिचार (एडल्टरी) करने और न ही बहकाने के आरोप लगेंगे. एडल्टरी के मामले में आरोपी पुरुष के लिए पांच साल की सजा का प्रावधान है.

पिटिशन में इस कानून की संवैधानिकता पर सवाल उठाए गए हैं

इस पिटीशन पर सेक्शन 497 के संवैधानिकता पर सवाल उठाए गए हैं. पिटीशन में कहा गया है कि अगर शादीशुदा पुरुष और शादीशुदा महिला की आपसी सहमति से संबंध बने, तो सिर्फ पुरुष आरोपी कैसे हुआ? पिटीशन में कहा गया है कि 150 साल पुराना ये कानून मौजूदा दौर में बेमानी है. ये कानून उस समय का है, जब महिलाओं की हालत काफी कमजोर थी. इस तरह एडल्टरी के मामलों में ऐसी महिलाओं को पीड़िता का दर्जा मिल गया.

इटली में रहने वाले केरल मूल के एक सोशल एक्टिविस्ट जोसेफ शाइन ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दायर की है. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. शुक्रवार को कोर्ट ने इस पिटीशन को पांच जजों की बेंच को रेफर कर दिया है.

बदलते समय के साथ पूर्व के फैसलों पर पुनर्विचार की जरुरत

सुप्रीम कोर्ट ने पिटीशन रेफर करते हुए कहा, "खासतौर पर समाजिक प्रगति, बदल चुकी अवधारणा, लैंगिक समानता और लैंगिक संवेदनशीलता को देखते हुए पूर्व फैसलों पर पुनर्विचार की जरूरत है. इस सबके अलावा संविधान के अनुच्छेद 15 में महिलाओं के लिए सकारात्मक अधिकार के पहलू पर अलग ढंग से ध्यान देने की जरूरत है."

कोर्ट ने कहा कि जीवन के हर तौर-तरीकों में महिलाओं को समान माना गया है. इस मामले में अलग बर्ताव क्यों? जब गुनाह महिला-पुरुष दोनों की रजामंदी से किया गया हो, तो महिलाओं को सुरक्षा या राहत क्यों?

सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि जब समाज ने प्रगति की है. चीजें बदली हैं. पुरुष और महिलाओं के एक समान अधिकारों की बात हो रही है. तो मौजूदा समय में इस कानून की समीक्षा की जरूरत है.