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सरकारी कर्मियों की अभिव्यक्ति की आजादी का मुद्दा संवैधानिक बेंच के पास

बेंच ने कहा कि लोग गलत सूचनाएं, यहां तक कि अदालत की कार्यवाही संबंधी गलत सूचनाएं भी प्रसारित कर रहे हैं

Bhasha

सुप्रीम कोर्ट ने उस मुद्दे को पांच जजों की संवैधानिक बेंच के पास भेज दिया है जिनमें सवाल उठाए गए हैं कि क्या कोई भी सरकारी कर्मचारी या मंत्री ऐसे संवेदनशील मामले पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दावा करते हुए अपने विचार जाहिर कर सकता है जिस मामले में जांच जारी है?

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली जस्टिस एएम खानविलकर तथा जज डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं हरीश साल्वे और फली एस नरीमन ने जो सवाल उठाए हैं, उन पर बड़े बेंच को विचार करने की जरूरत है. बेंच ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए कहा कि लोग गलत सूचनाएं, यहां तक कि अदालत की कार्यवाही संबंधी गलत सूचनाएं भी प्रसारित कर रहे हैं.


एमाइकस क्यूरी (न्यायमित्र) के रूप में सहयोग कर रहे नरीमन ने बेंच की राय पर सहमति जताते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं और खराब भाषा की भरमार है और उन्होंने ऐसी सूचनाओं को देखना ही बंद कर दिया है.

साल्वे ने कहा, 'मैंने अपना ट्विटर अकाउंट ही बंद कर दिया.' उन्होंने बताया कि एक बार वह क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज से संबंधित मामले के लिए पेश हुए थे और उसके बाद उनके ट्विटर हैंडल पर जो कुछ भी हुआ, उसे देखते हुए उन्होंने अकाउंट ही डिलीट कर दिया.

उन्होंने कहा कि निजता का अधिकार अब केवल सरकार तक ही सीमित नहीं रह गया है बल्कि अब इसमें निजी कंपनियों का दखल भी बढ़ गया है.