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लिव इन पार्टनर के बीच सहमति से बना शारीरिक संबंध कोई रेप नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह भी कहा, 'अगर आरोपी ने पीड़िता के साथ यौन इच्छा की पूर्ति के एकमात्र उद्देश्य से वादा नहीं किया है तो इस तरह का काम बलात्कार नहीं माना जाएगा'

FP Staff

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लिव इन पार्टनर के बीच सहमति से बना शारीरिक संबंध बलात्कार या रेप नहीं होता, अगर व्यक्ति अपने नियंत्रण के बाहर की परिस्थितियों के कारण महिला से शादी नहीं कर पाता है. शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र की एक नर्स द्वारा एक डॉक्टर के खिलाफ दर्ज कराई गई प्राथमिकी को खारिज करते हुए यह बात कही. दोनों 'कुछ समय तक' लिव इन पार्टनर थे.

गलत मंशा या झूठा वादा करना ठगी या धोखा करना होता है


न्यायमूर्ति ए. के. सिकरी और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर की बेंच ने हाल में दिए गए एक फैसले में कहा, 'बलात्कार और सहमति से बनाए गए यौन संबंध के बीच स्पष्ट अंतर है. इस तरह के मामलों को अदालत को पूरी सतर्कता से परखना चाहिए कि क्या शिकायतकर्ता वास्तव में पीड़िता से शादी करना चाहता था या उसकी गलत मंशा थी और अपनी यौन इच्छा को पूरा करने के लिए उसने झूठा वादा किया था क्योंकि गलत मंशा या झूठा वादा करना ठगी या धोखा करना होता है.'

आरोपी ने चाहते हुए भी ऐसी परिस्थितियों में उससे शादी नहीं की होगी

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह भी कहा, 'अगर आरोपी ने पीड़िता के साथ यौन इच्छा की पूर्ति के एकमात्र उद्देश्य से वादा नहीं किया है तो इस तरह का काम बलात्कार नहीं माना जाएगा.' प्राथमिकी के मुताबिक विधवा महिला चिकित्सक के प्यार में पड़ गई थी और वह दोनों साथ-साथ रहने लगे थे. पीठ ने कहा, 'इस तरह का मामला हो सकता है कि पीड़िता ने प्यार और आरोपी के प्रति लगाव के कारण यौन संबंध बनाए होंगे न कि आरोपी द्वारा पैदा किए गलतफहमी के आधार पर. हो सकता है कि आरोपी ने चाहते हुए भी ऐसी परिस्थितियों के तहत उससे शादी नहीं की होगी, जिस पर उसका नियंत्रण नहीं था. इस तरह के मामलों को अलग तरह से देखा जाना चाहिए.'

अदालत ने कहा कि वह दोनों कुछ समय से साथ रह रहे थे

अदालत ने कहा कि अगर व्यक्ति की मंशा गलत थी या उसके छिपे इरादे थे तो यह स्पष्ट रूप से बलात्कार का मामला होता. मामले के तथ्यों का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा कि वह दोनों कुछ समय से साथ रह रहे थे और महिला को जब पता चला कि व्यक्ति ने किसी और से शादी कर ली है तो उसने शिकायत दर्ज करा दी. पीठ ने कहा, 'हमारा मानना है कि अगर शिकायत में लगाए गए आरोपों को उसी रूप में देखें तो आरोपी (डॉक्टर) के खिलाफ मामला नहीं बनता है.' व्यक्ति ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था जिसने उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी.