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'पद्मावत' पर सुनवाई के दौरान गांधी से लेकर जीसस तक की हुई चर्चा

साहित्य में दर्ज कई पात्रों का जिक्र हुआ तो मराठी थिएटर के दो नए कलाकारों की भी चर्चा हुई. इतना ही नहीं, 'लेडी चैटरलीज लवर' के अंग्रेजी लेखक डीएच लॉरेंस और जीसस क्राइस्ट को भी याद किया गया.

FP Staff

पद्मावत विवाद मामले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में गहमागहमी रही. कोर्ट नंबर एक में बहस के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की चर्चा हुई तो उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे का भी नाम आया. प्राचीन भारत के साहित्य में दर्ज कई पात्रों का जिक्र हुआ तो मराठी थिएटर के दो नए कलाकारों की भी चर्चा हुई. इतना ही नहीं, 'लेडी चैटरलीज लवर' के अंग्रेजी लेखक डीएच लॉरेंस और जीसस क्राइस्ट को भी याद किया गया.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच विवादित फिल्मों, किताबों और नाटकों पर आधारित एक चर्चा में हिस्सा ले रही थी. बेंच ने फिल्म पद्मावत की रिलीज का रास्ता साफ कर दिया और राज्यों के उस आदेश को निरस्त कर दिया जिसमें रिलीज रोकने की बात कही गई थी. इस दौरान चीफ जस्टिस ने कहा, अगर हम ऐसा करते हैं (फिल्म के खिलाफ बहस) तो 60 फीसद साहित्य, यहां तक कि भारत का क्लासिकल साहित्य भी नहीं पढ़ा जा सकेगा.


एंड्रयू लॉयड के म्यूजिक पर हंगामा

सूली पर चढ़ाने से पहले की जीसस की जिंदगी का जिक्र हुआ. दरअसल एक म्यूजिकल प्रोडक्शन जिसमें एंड्रयू लॉयड वेबर का म्यूजिक है, उसे 1971 में जारी किया गया था. इसमें बाइबिल के कुछ अंश जोड़े गए, यहां तक कि उस यहूद का भी वर्णन था जिसने जीसस को धोखा दिया था. इस म्यूजिकल शो की काफी आलोचना हुई थी जिसमें कुछ इसाई समुदायों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और ईशनिंदा के आरोप लगाए गए. कुछ देशों में इस म्यूजिकल शो और इस पर बने नाटक तक को बैन कर दिया गया.

नल-दमयंती की प्रेम कहानी

नल और दमयंती की पौराणिक प्रेम कहानी का कई मजमूनों में जिक्र किया गया है. महाभारत से लेकर 12वीं सदी के श्रीहर्ष की संस्कृत कविता नैशधा चरित में भी इन दोनों का वर्णन मिलता है. यह प्रेम कहानी कई भाषाओं के अनुवाद में, सूफी भक्ति और राजा रवि की पेंटिंग्स में भी मिलती है.

चीफ जस्टिस ने ओडिशा के एक विद्वान की अनुवादित कहानी का जिक्र करते हुए कहा, वे विक्टोरियन नैतिकता से प्रभावित नियमनिष्ठ व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी कविता के कुछ अंश यह कहते हुए छोड़ दिया क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि इसे पढ़ा जाए.

लेडी चैटरलीज लवर

पद्मावत के प्रोड्यूसर वायाकॉम18 की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे सुप्रीम कोर्ट में जिरह कर रहे थे. उन्होंने डीएच लॉरेंस का उपन्यास लेडी चैटरलीज लवर का जिक्र किया जो इंग्लैंड में 30 साल से ज्यादा वर्षों तक बैन रहा और इसके लिए पेंगुइन पर अश्लीलता के आरोप लगे, इसके बावजूद उपन्यास धड़ल्ले से बिका. इस पर सीजेआई ने कहा कि 70 के दशक में जिसने यह किताब नहीं पढ़ी थी उसे कुछ विषयों पर चर्चा के लिए अयोग्य माना जाता था.

धोबी घाट

आमिर खान अभिनित और किरण राव निर्देशित फिल्म धोबी घाट के खिलाफ 2010 में केस इसलिए दर्ज किया गया क्योंकि इसके टाइटल में धोबी शब्द था. कई राज्यों के धोबियों ने फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन किया और उनका मानना था कि फिल्म में उनकी छवि बिगाड़ कर पेश की गई है. तब दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मिश्रा ने इस फिल्म पर दायर याचिका को ओछी मानते हुए खारिज कर दिया था और कानूनी प्रक्रिया पर लांछने लगाने के लिए याचिकाकर्ता पर 25,000 रुपए का जुर्माना ठोका था.

मी नाथूराम गोडसे बोलतोय

प्रदीप दलवी के इस मराठी नाटक पर 10 साल तक बैन रहा. बाद में महाराष्ट्र और केरल सरकारों ने भी कुछ शो चलने के बाद बैन कर दिया. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने 2001 में इसे इजाजत दी, उसके बाद भी कांग्रेस और एनसीपी विरोध करते रहे. इन दोनों पार्टियों की दलील थी कि नाटक में गांधी के हत्यारे को महिमामंडित किया गया है जो ज्यादा दिन तक नहीं चलेगा. यह नाटक दुबारा 2011 में शुरू हुआ. जस्टिस चंद्रचूड़ 2001 में इस केस की सुनवाई कर रहे थे. उन्होंने याद करते हुए बताया, उस वक्त महाराष्ट्र ने चिंता जाहिर की थी कि यह नाटक दिखाने से कानून व्यवस्था खराब हो सकती है.

सखाराम बिंदर

विजय तेंदुलकर के इस नाटक की काफी आलोचना हुई थी और कहा गया था कि इसमें हिंसा और सेक्स के कुछ खास संदर्भ प्रस्तुत किए गए हैं जिससे शादी-विवाह की विचारधारा पर असर पड़ेगा. महाराष्ट्र सरकार ने शुरू में इसे बैन करना चाहा, लेकिन बाद में जारी तो किया लेकिन 32 कट के साथ. इससे नाटक की आत्मा मर गई. सीजेआई ने 1974 में बैन किए गए इस नाटक का जिक्र किया.

गांधी पर ओछे आरोप

जैड एडम की 2011 में आई बायोग्राफी में महात्मा गांधी को साजिशकर्ता, छोटा आदमी, सेक्स के प्रति विकृत रवैया रखने वाला करार दिया गया था. इस पुस्तक की भी काफी आलोचना हुई और इसे बैन करने की मांग उठी. सीजेआई ने बताया कि कोर्ट ने कैसे इस पुस्तक की अभिव्यक्ति की आजादी का संरक्षण किया.